प्राकृतिक रंगों संग मनायें होली का त्यौहार!

प्राकृतिक रंगों संग मनायें होली का त्यौहार!

प्रेषित समय :07:55:16 AM / Sun, Mar 28th, 2021

संतोष तिवारी. होली एक ऐसा त्यौहार है जिसमें हम आपसी बैर भाव को भूलकर एक दूसरे के साथ प्रेम से मिलकर एक नये विचार व भावनाओं के साथ बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते है। इस प्रेम के त्यौहार में यदि हम कास्मेटिक, सिन्थेटिक व केमिकल युक्त रंगों का प्रयोग करते हंै तो हमारे प्रेम में कभी कभी कड़वाहट भी घुल जाती है जिसे हमें जीवन भर लेकर ढोना पड़ता है।

यदि होली के इस पावन पर्व को हम केमिकल युक्त रंगों का प्रयोग न करके प्राकृतिक रंगों से होली खेलें तो होली का आनन्द दोगुना हो जायेगा क्योंकि जब हम केमिकल युक्त बाजारू रंगों का प्रयोग करते हंै तब हमें उसके फलस्वरूप ग्रीष्म ऋतु में उत्तेजना, चिड़चिड़ापन, खिन्नता, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), तनाव, अनिद्रा इत्यादि तकलीफों का सामना करना पड़ता है ।

आइये बात करते हंै कि होली के पावन मौके पर हम कैसे प्राकृतिक रंगों को स्वयं बनाकर होली को पवित्रा बनायें।

केसरिया रंग: पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर, उसे ठंडा करके होली का आनंद उठायें ।

लाल रंग: पान पर लगाया जानेवाला एक चुटकी चूना और दो चम्मच हल्दी को आधा प्याला पानी में मिला लें। कम-से-कम 10 लीटर पानी में घोलने के बाद ही उपयोग करें ।

सूखा पीला रंग: 4 चम्मच बेसन में 2 चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें । सुगंधयुक्त कस्तूरी हल्दी का भी उपयोग किया जा सकता है और बेसन की जगह गेहूँ का आटा, चावल का आटा, अरारोट का चूर्ण, मुलतानी मिट्टी आदि उपयोग में ले सकते हैं ।

गीला पीला रंग: एक चम्मच हल्दी दो लिटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम में आते हैं, उसका भी उपयोग कर सकते हैं या अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें।

पलाश के फूलों का रंग बनायें । पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता हैस

 प्राकृतिक रंगों से हमारे शरीर को एक सात्विकता, शान्ति इत्यादि की परम अनुभूति होती है जबकि रासायनिक रंगों से  हमें विभिन्न तरह की हानियां होती हैं। रासायनिक काले रंग में लेड आक्साइड पड़ता है जो हमारे गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी, हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व लाता है, सिल्वर रंग में अल्यूमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर कारक है जबकि नीले रंग में प्रूशियन ब्लू कान्टैक्ट डर्मेटाइटिस) से भयंकर त्वचारोग रोग की संभावना बढ़ती है, लाल रंग जिसमें मरक्युरी सल्फाइड होता है जिससे त्वचा का कैंसर होता है बैंगनी रंग में  क्रोमियम आयोडाइड होता है जिससे दमा और एलर्जी होने की संभावना बनी रहती है।

 अतः होली के पर्व को प्राकृतिक रंगों के साथ मनायें जिससे हमारे प्रेम में कहीं खटास न पैदा हो, प्राचीन काल में भी हमारे पूर्वजों, ऋषि मुनियों, विद्वानों, साधु महात्माओं ने प्रेम के प्रतीक इस त्यौहार को बडे़ ही सात्विकता व प्रेम से मनाया तो हम उनकी संतान क्यों केमिकल का प्रयोग करके अपने त्यौहार को गंदा बनायें? चिकित्सकों ने भी लोगों को केमिकल युक्त रंगों से होली मनाने के लिये मना करते हैं। 

*और स्वदेश की होली की धमाल विनय आनंद के संग....   

https://www.youtube.com/watch?v=SOsWVFrLzMw&feature=youtu.be


Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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