ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है!
व्योम पे देखो ज़रा क्या तम घना है ?
रुको देखूँ शायद ये मन की वेदना है ..
रक्त प्यादों का सड़क को रंग रहा है -
ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है .
आज ग़र कौटिल्य मिल जाये कदाचित
कहूँगा जन्म लो चाणक्य मेरी याचना है .
बंदूक से सत्ता के पथ खोजे जा रहें हैं-
जनतंत्र मेरे वतन का अब अनमना है ..
आयातित बकरियों, का चरोखर देश ये
कर्मयोगी बोलिये, अब क्या बोलना है ?
आज़ाद मुक्ति मांगते बेशर्म होकर -
मुक्ति की ये मांग कैसी, और कैसी चेतना है ?
आज़ फिर छत्तीसगढ़ की ज़मीं को रंगा उनने
दुष्टों का संहार कर दो भला अब क्या सोचना है ..
ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है!
- गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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