सीताराम गुप्ता. तेज़ रफ़्तार कार ने ली बारहवीं की ऑल इंडिया टॉपर कॉलेज स्टूडेंट की जान. दो बीटेक स्टूडेंट्स की रोड एक्सीडेंट में मौत. तेज रफ़्तार की वजह से दो और नौजवानों की जान चली गई. यह एक्सीडेंट तेज़ स्पीड बाइक के रोड डिवाइडर से टकराने से हुआ. दोनों स्टूडेंट बाइक से काफी दूर जाकर गिरे और उनके सिरों में गंभीर चोट लगने से घटना स्थल पर ही उनकी मृत्यु हो गई. मेन रोड पर ग़लत दिशा से आ रही एक कार को ट्रक ने कुचल दिया. कार सवार न केवल मेन रोड पर ग़लत दिशा से आ रहे थे अपितु शराब के नशे में धुत्त थे और ख़तरनाक ढंग से ड्राइविंग कर रहे थे.
टैम्पो-बाइक की टक्कर में तीन किशोरों की मौत. बारह और चौदह साल के बीच के चार किशोर एक बाइक पर अपने स्कूल जा रहे थे कि टेंपो ने टक्कर मार दी जिससे तीन किशोरों की घटना स्थल पर ही मौत हो गई. चौथा किशोर गंभीर रूप से घायल होकर ट्रामा सेंटर में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इन किशोरों ने हेलमेट नहीं पहन रखे थे और बाइक भी तेज़ी से चला रहे थे. इस प्रकार के असंख्य समाचारों से रोज़ ही समाचार पत्रों के पन्ने भरे रहते हैं. इन दुर्घटनाओं के मूल में कौन से कारण हो सकते हैं? क्या इन कारणों का पता लगा कर उन्हें दूर करना संभव नहीं?
सड़क दुर्घटनाओं के मूल में असंख्य तकनीकी कारण भी होते हैं लेकिन एक सबसे बड़ा कारण है हमारे जीवन में सहजता व सहिष्णुता का अभाव. हमारा जीवन भाग-दौड़ का पर्याय बनकर रह गया है. हम सबसे आगे निकलना चाहते हैं चाहे इसके लिए हमें नियमों को तोड़ना पड़े अथवा दूसरों के या स्वयं के जीवन को संकट में डालना पड़े. यह भाग-दौड़ प्रारंभ होती है सुबह-सुबह बच्चों को स्कूल पहुँचाने की प्रक्रिया के साथ. हम घर से स्कूल तक के मार्ग को जिस गति से पार करते हैं और जैसे पार करते हैं, वो न केवल ख़तरनाक होता है अपितु बच्चों के कोमल मन पर भी दुष्प्रभाव डालता है जो आगे जाकर उनके संतुलित विकास में बाधक बनता है.
हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर बड़े आदमी बनें. वैसे शिक्षा का उद्देश्य बड़ा आदमी बनाना नहीं एक अच्छा इंसान और सभ्य नागरिक बनाना होता है. अपने बच्चों को बड़ा आदमी बनाने की कवायद में पेरेंट्स अच्छे से अच्छे स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला करवाते हैं. अब स्कूल चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो, बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवानी है तो उन्हें दूर भी भेजना पड़ेगा. वैसे अब यदि स्कूल पास हो तो भी बच्चे ख़ुद स्कूल नहीं जाते. बच्चों के स्कूल आने-जाने की व्यवस्था या तो स्कूल करता है या फिर बच्चे स्वयं रिक्शा, ऑटो अथवा कैब से आते-जाते हैं.
कई पैरेंट्स ख़ुद अपने बच्चों को अपने स्कूटर या कार पर उनके स्कूल छोड़ने और लेने जाते हैं. अब बच्चों को बड़ा आदमी बनाना है तो इतना कष्ट तो उठाना ही पड़ेगा लेकिन क्या बच्चा सचमुच बड़ा आदमी बनने का सपना पूरा कर रहा है? उस दौरान हम जिन बच्चों को विद्यालय में अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए छोड़ने जाते हैं, हम स्वयं पूरे रास्ते उन्हें ग़लत शिक्षा देते हुए पहुँचते हैं. ऐसे भी यदि वह तथाकथित बड़ा आदमी बन भी जाए तो क्या वो एक अच्छा इंसान, एक अच्छा नागरिक भी बन रहा है? शायद नहीं. हालात तो यही बतला रहे हैं. सुबह-सवेरे अपने आसपास के नज़ारों को ध्यान से देखिए. सुबह-सुबह सबको स्कूल पहुँचने या पहुँचाने की जल्दी होती है और इसी जल्दी का बहाना लेकर हमारी सुरक्षा और यातायात के सुचारू संचालन के लिए बने ट्रैफिक रूल्स की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं.
बच्चों को स्कूल ले जाने वाले पैरेंट्स न केवल तेज़ रफ़्तार से गाड़ी चलाते हैं अपितु रास्ते में पड़ने वाली रेड लाइट्स को भी जंप करते हुए गुज़रते हैं. स्कूटर चालक प्रायः हेलमेट नहीं पहनते. स्कूल के पास गाड़ी को निर्धारित सुरक्षित स्थान पर न रोक कर बीच सड़क पर कहीं भी अपनी सुविधा से गाड़ी रोककर बच्चों को उतार कर न केवल ट्रैफिक को बाधित करते हैं बल्कि बच्चों के लिए भी खतरा उत्पन्न करते हैं. बच्चे गाड़ी से उतर कर बेतहाशा स्कूल गेट की ओर भागते हैं जिससे उनके दुर्घटनाग्रस्त होने की पूरी-पूरी संभावना रहती है. यह न केवल नियमों का उल्लंघन और अपराध है अपितु अत्यंत ख़तरनाक भी है.
जब बच्चे अपने पैरेंट्स को रोज़-रोज़ ट्रैफिक रूल्स तोड़ते देखते हैं तो यह उनके लिए भी सामान्य बात हो जाती है और बाद में वे ख़ुद भी ऐसा ही करते हैं. ऐसे पैरेंट्स अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं, ग़लत शिक्षा दे रहे हैं. उनकी शिक्षा और उनके भावी जीवन की बुनियाद ही ग़लत रख रहे हैं. उनके जीवन को संकट में डाल रहे हैं. उन्हें अनुशासित विद्यार्थी और सभ्य भावी नागरिक नहीं, असभ्य भावी नागरिक और असामाजिक तत्त्व बनाने में जुटे हैं. ट्रैफिक रूल्स तोड़ना जिनके लिए सामान्य बात है और जो इसे उचित सिद्ध करने का प्रयास करते हैं वे ऐसे ही पैरेंट्स की शिक्षा के मारे होते हैं.
कुछ पैरेंट्स ने अपने नाबालिग बच्चों को स्कूटी अथवा बाइक्स दिलवा रखी हैं. ऐसे बच्चे स्वयं अपने वाहनों पर स्कूल जाते हैं. इनमें से अधिकांश विद्यार्थी न तो कभी हेल्मेट ही पहनते हैं और न ट्रैफिक रूल्स का ही पालन करते हैं. न उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस ही होता है. उनके आई कार्ड पर उनकी जन्मतिथि अलग होती है और ड्राइविंग लाइसेंस पर अलग. सोचने की बात है कि जो बच्चे अपने अभिभावकों के साथ बीस-पच्चीस अथवा अधिक सालों से स्थायी रूप से किसी महानगर में रह रहे हैं उनके पास बाहर का लाइसेंस कैसे और कहाँ से आया?
कुछ के पास ड्राइविंग लाइसेंस तो होता है लेकिन अपने शहर से बाहर का. गाड़ी कहीं और लाइसेंस कहीं का. ये सब लाइसेंस फ़जऱ्ी होते हैं. आज वे फ़जऱ्ी लाइसेंस बनवाकर धड़ल्ले से ट्रैफिक रूल्स की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं तो कल वे ही दूसरे फ़जऱ्ी काम भी ज़रूर करेंगे. फ़जऱ्ी मार्कशीट्स और फ़जऱ्ी डिग्रियाँ बनवा कर अच्छे शिक्षा संस्थानों में दाखि़ले का जुगाड़ भी कर लेंगे. क्या यही बड़ा आदमी बनना है? क्या यही परिणति है अच्छा इंसान और सभ्य नागरिक बनने की? और सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न क्या आज ट्रैफिक की समस्याओं और बढ़ती दुर्घटनाओं के मूल में उपरोक्त स्थितियाँ उत्तरदायी नहीं हैं?
आज महानगरों में तो यातायात की स्थिति अत्यंत गंभीर हो चुकी है. नियमों का पालन न करना आम बात हो गई है. जो बच्चे ऐसे परिवेश में बड़े होते हैं उनमें भी ऐसी ही आदतें विकसित हो जाती हैं. बड़े होकर वे भी नियमों का पालन नहीं करते और नियमों का पालन न करना सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण है, इसमें संदेह नहीं. यदि हम चाहते हैं कि हमारी सड़कें हमारे लिए सुरक्षित रहें तो हमें अपने बच्चों में यातायात के नियमों के पालन के प्रति अत्यंत सतर्क एवं सचेत रहने के संस्कार डालने होंगे और ये तभी संभव है जब हम स्वयं हर हाल में यातायात के नियमों का कड़ाई से पालन करें.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-एमपी: भोपाल के गांधी नगर में विमान दुर्घटनाग्रस्त, 3 पायलट घायल
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