विभाजन के बाद से पाकिस्तान की सेना, उनकी खुफिया एजेंसीज, उनकी सरकारें और यहां तक की उनके मुल्क के कुछ बाशिंदे भी भारत को अस्थिर करने को अपना मुख्य कार्य समझते हैं लेकिन खुद की तरक्की के लिए कुछ काम नहीं करते. यही कारण है भारत में पाकिस्तान कई आतंकवादी गतिविधियां प्रायोजित करता रहता है. कभी-कभी सफल भी हो जाता है. वाइल्ड डॉग फिल्म, ऐसे ही एक पाकिस्तानी आतंकवादी को पकड़ कर नेपाल से भारत लाने की कहानी है.
नेटफ्लिक्स पर हाल में रिलीज तेलुगु फिल्म वाइल्ड डॉग, इस मायने में अलग है कि इसमें आतंकवादी नेपाल में छिपा होता है और उसे वहां से भारत लाना है. इसके अलावा फिल्म में कुछ भी अलग या नया नहीं है.
अहिशोर सोलोमन, फिल्म वाइल्ड डॉग के निर्देशक हैं. फिल्म लिखी भी उन्होंने ही हैं, और संभवतः इसी वजह से वो नागार्जुन जैसे सीनियर एक्टर को फिल्म में ले सके क्योंकि नागार्जुन को फिल्म का नरेशन सुनते वक़्त, निर्देशक की बॉडी लैंग्वेज पढ़ने की आदत है. जब उन्हें लगता है कि निर्देशक को अपनी स्क्रिप्ट और अपने आप पर पूरा भरोसा है, वो फिल्म साइन कर लेते हैं. अहिशोर ने इस से पहले नसीरुद्दीन शाह और रणदीप हुड्डा अभिनीत फिल्म 'जॉन डे' निर्देशित की थी. उन पर अंग्रेजी फिल्मों का असर साफ देखा जा सकता है.
फिल्म में घटनाएं हैं, ऐसी कोई विशेष कहानी नहीं है. इन घटनाओं का रेफरेंस सत्य घटनाएं हैं. पटकथा थोड़ी लम्बी है, और बेहतर या छोटी हो सकती थी. नागार्जुन ने नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी के अफसर का रोल किया है और वो कमांडो की मानिंद काम करते हैं, साथ ही मां की गाली देना उनका प्रिय काम है. फिल्म में दिया मिर्ज़ा भी हैं, अतुल कुलकर्णी भी हैं और सैयामी खेर भी. पूरी फिल्म नागार्जुन के इर्द गर्ल बुनी गयी है इसलिए ज़्यादातर एक्शन भी उन्ही पर फोकस करती हुई है. इन्वेस्टीगेशन, टेररिस्ट को ट्रैप करना, टेररिस्ट का फोन बदल कर बात करना, देश भक्ति के डायलॉग जैसी कई बातें इस फिल्म में हैं.
नागार्जुन एक लार्जर दैन लाइफ हीरो हैं तो इस फिल्म में भी उन्हें उसी तरह रखा है. कुछ सीन्स में आपस में तारतम्य नहीं है और कुछ बातें लेखक ने देखकर अनदेखी कर दी हैं जैसे आतंकवादी अपना कन्फेशन लिखने के लिए पेन उठाता है और उसे पहले पता होता है कि उस पेन को घुमाने से पेन चालू होगा या फिर क्लाइमेक्स में नागार्जुन की टीम का एक सदस्य, भारतीय दूतावास के अधिकारी के भेष में आता है मगर उसके चेहरे पर मार के निशान साफ नजर आते हैं.
कोविड की वजह से इसकी शूटिंग फरवरी 2020 में रोकनी पड़ी थी. फिर सितम्बर 2020 से नवम्बर 2020 तक शूटिंग कर के फिल्म पूरी की गयी, जिन्होंने के के मेनन की स्पेशल ऑप्स या अक्षय कुमार की बेबी देखी है, उन्हें इस फिल्म में कुछ भी एक्साइटिंग न लगे ऐसा हो सकता है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी शनील देव ने की है जो कि ठीक ही है. एडिटर श्रवण कतिकानेनी ने फिल्म को अच्छी गति दी है हालांकि थोड़ी फिल्म छोटी हो सकती थी. तमिल और तेलुगु फिल्मों के सुपर हिट संगीतकार एस थमन ने इस फिल्म का संगीत दिया है. हालांकि फिल्म में कोई गाना है नहीं और उसकी गुंजाईश भी नहीं हैं मगर बैकग्राउंड म्यूजिक ने फिल्म की गति बनाये रखी है.
फिल्म एक एक्शन से भरी थ्रिलर है. इसमें 3 एक्शन डायरेक्टर्स हैं. सबसे पहले जाशुवा, जिन्होंने 'साहो' और 'द गाजी अटैक' जैसी फिल्मों का एक्शन निर्देशन किया था. इसके अलावा कुछ प्रमुख दृश्यों के लिए सुप्रसिद्ध श्याम कौशल ने जिम्मेदारी निभाई है. इनके अलावा निर्देशक अहिशोर ने हॉलीवुड से डेविड इस्मालोन को फिल्म के एक्शन के लिए मुख्य ज़िम्मेदारी दी है. डेविड स्वयं एक मार्शल आर्टिस्ट रह चुके हैं और हॉलीवुड की कई एक्शन फिल्में जैसे ओंग बाक या फ़ास्ट एंड द फ्यूरियस 7 में अपने जौहर का प्रदर्शन कर चुके हैं. एक्शन की वजह से ही फिल्म कहीं भी झोल नहीं खाती.
लॉकडाउन में घर बैठे हैं तो ये फिल्म देखी जा सकती है. फिल्म में कुछ भी नया नहीं है मगर रफ्तार और थ्रिल के शौकीनों को फिल्म में मजा आएगा. बड़े दिनों के बाद नागार्जुन को देखना भी एक सुखद अनुभव है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कोरोना काल में अटल विश्वास जगाती फिल्म- अर्थात!
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