आनंद कुमार अनंत. जब कभी कोई जड़ (निर्जीव) वस्तु अपनी इच्छाशक्ति से प्रेरित होकर कोई कार्य करने लगती है तो उसके पीछे कोई न कोई रहस्य अवश्य ही छिपा होता है। विज्ञान ऐसे तथ्यों को बेबुनियाद बताता है किंतु इतिहास में घटित घटनाओं को नकारा कैसे जा सकता है? इतिहास साक्षी है कि इस प्रकार की घटनाएं एक नहीं, अनेक बार घटित हो चुकी हैं।
लकड़ी तथा लोहे से बना एक यात्राी समुद्री जहाज का नाम ‘एस. एस. हमबोल्ड‘ था जो मालवाहक भी था। इस जहाज से समुद्री यात्रा का प्रारंभ सन् 1898 से किया गया था। अपने प्रारंभिक दौर में इस जहाज से यात्रा सीटल से अलस्का के बीच हुआ करती थी।
इस जहाज के कैप्टन का नाम था इलियाज जी. बोफमन। उनके जहाज के प्रारंभ होने के दिन से ही उन्हें जहाज कैप्टन का भार सौंप दिया गया था। कैप्टन बोफमन ने अपना समुद्री जीवन भी हमबोल्ट से ही आरंभ किया था। यह भी आरंभ से लेकर अंत तक एक विचित्रता ही रही कि न तो किसी अन्य कैप्टन ने इस जहाज का कभी संचालन किया था और न ही कैप्टन बोफमन ने ही किसी दूसरे जहाज का संचालन किया।
कुछ दिन तक यह जहाज सीटल बंदरगाह और अलस्का बंदरगाह के बीच चलने के बाद प्रशांत महासागर के उत्तर-पश्चिमी बंदरगाहों के बीच चलने लगा। कई बार जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच जाने के कारण इस जहाज को विघटित कर देने पर भी विचार किया गया परन्तु कैप्टन बोफमन के शालीन विरोध के कारण इस जहाज को विघटित नहीं किया जा सका। अपना जल जीवन उसी जहाज से आरंभ करने के कारण कैप्टन बोफमन का उस जहाज से विशेष लगाव था।
सन् 1934 में कैप्टन बोफमन ने जब नौकरी से अवकाश ग्रहण किया, तब हमबोल्ट को विघटित करने के लिए भेज दिया गया क्योंकि किसी भी अन्य कैप्टन ने उस जर्जर हो चुके जहाज का कार्यभार स्वीकार कर खतरा मोल लेना उचित नहीं समझा।
अवकाश प्राप्त करने के बाद 8 अगस्त 1935 के दिन कैप्टन बोफमन का कैलिफोर्निया में जिस समय निधन हुआ, ठीक उसी समय वहां से लगभग साढ़े छः सौ किलोमीटर दूर पेड़ो बंदरगाह पर खड़े हमबोल्ट जहाज के लंगर अपने-आप खुल गये और वह उत्तर दिशा की ओर कैलिफोर्निया के लिए अपने आप रवाना हो गया। इस जहाज को पेड़ो बंदरगाह पर विघटित करने के लिए लाया गया था और वहीं लंगर डालकर उसे खड़ा कर दिया गया था।
अपने आप चलने वाले इस जहाज को देखकर पेड़ो बंदरगाह पर मौजूद लोग आश्चर्यचकित रह गये थे क्योंकि बिना चालक ही वह जहाज अपनी दिशा में बढ़ने लगा था। लोग जब तक उस जहाज को रोकने का प्रयास करते, वह समुद्र में काफी अंदर पहुंच गया था।
उस समय जहाज में कोई भी व्यक्ति नहीं था। बिना ईंधन (तेल. कोयला के बिना ही) ही वह जहाज समुद्र में यात्रा करता रहा। एक अन्य कैप्टन की सहायता से उस जहाज को लगभग छः माह बाद वापस पेड़ो बंदरगाह में लाया जा सका था।
जहाज के अपने-आप चलने की घटना की जांच करने के लिए जांच कमीशन नियुक्त किया गया परन्तु नतीजा शून्य ही रहा। अन्त में यही मानकर संतोष कर लिया गया कि कैप्टन बोफमन की आत्मा से इसका संबंध रहा हो। उसे अंतिम विदाई देने के लिए जहाज सारे लंगरों को तोड़कर बिना तेल-कोयले के अपने आप चल दिया था।
इसी सीटल बंदरगाह की एक और घटना है। कैप्टन मार्टिन ओलसेन नामक एक मछुआ विगत अनेक वर्षों से ली-लायन नामक अपनी नौका की सहायता से साल्मन मछली का शिकार किया करता था। उसमें जीवन पर्यन्त अपनी उसी नौका से मछलियों का शिकार किया था।
मार्टिन ओलसेन जब बूढ़ा हो गया और शिकार के लिए जाना उसका संभव नहीं हुआ तो उसने अपने पेशे से अवकाश ले लिया। मोहवश उसने अपनी प्रिय नौका को समुद्र तट से दूर बालू में निवास स्थान के निकट रख दिया। दस वर्षों तक वह नाव खुले आकाश के नीचे रहने के कारण जीर्ण शीर्ण होकर बालू में धंस गयी थी।
जिस दिन ओलसेन का देहान्त हुआ, उस दिन समुद्र अपेक्षाकृत शांत था। किसी तरह का तूफान या ज्वर भी नहीं आया था परन्तु अप्रत्याशित रूप से वह नाव बालू से अपने-आप निकलकर समुद्र में चली गयी और समुद्र में अपने-आप तैरने लगी। तीन दिनों तक वह नाव बिना किसी नाविक के समुद्र में घूमती रही और उसके बाद आयरलैंड के तट के निकट उस स्थान पर जाकर खड़ी हो गयी जहां ओलसेन को दफनाया गया था। समुद्र में लहरें आती रहीं किंतु वह नाव बिना किसी सहारे उसी स्थान पर बारह वर्षों तक खड़ी रही।
ठीक बारह वर्षों के बाद उसी दिन जिस दिन ओलसेन का देहांत हुआ था, वह नाव पुनः समुद्र के रास्ते स्वयं ही चलकर उस स्थान पर पहुंच गई जहां ओलसेन ने उसे रखा था। इस घटना के बाद लोगों ने देखा कि ओलसेन का ताबूत उसी नाव के बीच में रखा था जबकि ओलसेन को आयरलैण्ड के निकट दफनाया गया था।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-लॉकडाउन में गई नौकरी तो पत्नी के साथ श्मशान घाट में करने लगा अंतिम संस्कार
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