कीर्ति सक्सेना. पिछले 24 घंटे बहुत भारी रहे, इस दौरान मैंने अपने बड़े भाई बबलू भाई को खो दिया। मां गायत्री की सेवा में लीन इक ज्योति अनंत में विलीन हो गई और इक तारा असमय ना जाने कहा खो गया। जीवन में कुछ ही लोग होते हैं जिनसे मन की हर बात की जा सकती है और इस विश्वास के साथ कि वह उन भावनाओं को समझ कर सही रास्ता दिखाएगा। अपने बुआजी के पुत्र संतोष वर्मा, इंजीनियर बिजली विभाग विदिशा को खोकर यहीं अहसास हो रहा है कि एक बड़े भाई का कंधा उठ गया। प्रार्थना नहीं पूरा विश्वास है कि उनकी आत्मा रूपी ज्योति को मां गायत्री अपनी दिव्य ज्योति में जगह देंगी और किसी बड़े समाजकार्य में वह ज्योति फिर लोगों को रास्ता दिखाएगी। कोरोना काल की निर्दयी कहानियों में यह सच्चाई मन को कचौट गई। गीता का चाहे कितना ज्ञान सुन लें, मगर जब एक बुजुर्ग मां की आंखों के सामने बेटे की चिता जलती है तो मन को झकझोर देती है और आंख के आंसू ही थोड़ा सहारा बनते है। दो-दो बड़े भाइयों, एक हंसमुख छोटे भाई, पत्नी, भाभियों, भतीजा-भतीजियों, पुत्र-पुत्री के सामने जब एक नश्वर शरीर ही सही, पर जब जलता है तो हृदय के अंतरंग तक इसकी तेज आंच जाती है। ऐसे ही दृश्य को देखना किसी कुठाराघात से कम नहीं है। भले ही इसे परमपिता परमेश्वर की इच्छा कहकर मन को बहला लिया जाए पर सच तो यह है कि ये जिस पर गुजरती है बस वो ही इसकी पीड़ा को महसूस कर सकता है। बबलू भाई ने अपनी मामी और मेरी मां के अंतिम संस्कार के समय विधि-विधान के साथ एक मंझे हुए पुरोहित की भूमिका निभाते हुए अंतिम संस्कार करवाया था। हम दोनों अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार गए थे और गायत्री परिवार में पूरे विधि-विधान के साथ मां का अस्थि विसर्जन किया था। बचपन में खेलने से लेकर, स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के संघर्ष व नौकरी की तैयारी के लिए भोपाल में साथ में गुजारे गए समय की ढेर सारी स्मृतियां बादलों की तरह हृदय पटल पर एक कहानी बयां कर रही है, मगर अफसोस इस कहानी का अंत हो गया। सभी का मन दुखी और स्तब्ध है, लिखने को शब्द बौने पढ़ रहे हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि आदरणीय विनोद वर्मा व महेंद्र वर्मा, मंटू भाई के छोटे भाई, बार एसोसिएशन विदिशा के अध्यक्ष अतुल वर्मा के बड़े भ्राता संतोष वर्मा, बबलू भाई को वह अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें और हमें इस आशीष से नवाजें कि बबलू भाई का आशीर्वाद उनके सभी परिजनों, रिश्तेदारों, साथियों व उनके जानने वालों पर सदैव बना रहे।
गीत की इन पंक्तियों के साथ आपको नमन, आप बहुत याद आओगे..
रस्ता वही और मुसाफिर वहीं
इक तारा ना जाने कहा छिप गया....
दुनिया वहीं और दुनिया वाले वहीं,
कोई क्या जाने किसका जहां लुट गया...
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-ग्लोबल वार्मिंग व बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के कारण आग उगल रहा है आसमान
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