कोरोना काल में कहां गायब हो गईं आर्थिक भ्रष्टाचार की जांच करने वाली सरकारी एजेंसियां

कोरोना काल में कहां गायब हो गईं आर्थिक भ्रष्टाचार की जांच करने वाली सरकारी एजेंसियां

प्रेषित समय :22:05:22 PM / Sun, May 9th, 2021

अजय कुमार, लखनऊ. एक तरफ महामारी दूसरी तरफ कालाबाजारी से जनता त्राहिमाम कर रही है. जगह-जगह, शहर-शहर से अवयवस्था की खबरें आ रही हैं. जिला प्रशासन और पुलिस  ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी कर रहा है,लेकिन इस कार्रवाई की सार्थकता पर विपक्ष-मीडिया और तमाम स्वास्थ्य सेवाओं से जुडे़ लोग प्रश्नचिंह भी लगा रहा है. यहां तक की अदालतें भी केन्द्र और राज्य सरकारों की कोरोना से निपटने की नाकामी के खिलाफ गुस्से में है,लेकिन इस सबके बीच एक सवाल दब क्या है हमारी आर्थिक अपराधों के मामलों की जांच करने वाली एजेंसियां कहाॅ हैं? आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली एजेंसियां कहां गायब हैं ? या इनका दायर कुछ खास मामलों तक ही सीमित हो गया है. यह एजेंसियां क्यों नही उन निजी अस्पताल वालों या चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई करती हैं जो महामारी काल में मरीजों को लूटने का घिनौना काम करके करोड़ो की कमाई और बेनामी सम्पति जुटा रहे हैं. क्यों नहीं आक्सीजन की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है. क्या यह एजेंसियां उन्हीं मामलों मे कार्रवाई करती है जिसके बारे में इनसे कहा जाता है.

     कालाबारियों और निजी अस्पताल चलाने वालों के खिलाफ जो थोड़ी बहुत कार्रवाई हो रही है वह जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा की जा रही है,लेकिन इन लोगों के पास आर्थिक मामलों की जांच का इतना अनुभव नहीं होता है कि वह इस तरह के अपराधों की गहराईयों में जा सकें. बारीकी से पकड़ सकें. इसी लिए आर्थिक अपराध करने वाले कई लोग अदालतों से बच निकलते हैं.लब्बोलुआब यह है कि यदि ऐसे मामले  को अनदेखा करने वालों के खिलाफ क्यों नहीं कार्रवाई होना चाहिएं.

             बात आर्थिक अपराध से जुड़े मामलों की कि जाए तो आर्थिक मामलों से जुड़े सरकारी या निजी संपत्ति का दुरुपयोग आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है. इसमें संपत्ति की चोरी, जालसाजी, धोखाधड़ी आदि शामिल हैं. ऐसे मामलों में आर्थिक अपराध की श्रेणी के हिसाब से केस दर्ज किया जाता है. दूसरे अपराध की तरह आर्थिक अपराध की जांच भी कई एजेंसियां करती हैं. आर्थिक अपराध की जांच करने वाली एजेंसियों में पुलिस, इकोनॉमिक ऑफेंस विंग , सीबी-सीआईडी, प्रवर्तन निदेशालय  और केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो  शामिल हैं. जिस राज्य में आर्थिक अपराध की जांच करने वाली कोई एजेंसी नहीं होती, वहां पुलिस ही ऐसे मामलों की जांच करती है. लेकिन दिल्ली जैसे केंद्र शासित राज्यों में आर्थिक अपराध की जांच के लिए इकोनॉमिक ऑफेंस विंग  होती है. इसे हिन्दी में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ भी कहते हैं. एक करोड़ से अधिक की धोखाधड़ी या हेराफेरी के मामले की जांच इकोनॉमिक ऑफेंस विंग करती है. यह किसी भी बड़े आर्थिक अपराध में अपने आप केस दर्ज कर सकती है.

    दूसरी तरफ जिस आर्थिक अपराध में विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम  का उल्लंघन होता है उसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय करता है. यह एक आर्थिक खुफिया एजेंसी है, जो भारत में आर्थिक कानून लागू करने और आर्थिक अपराध पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी निभाती है. प्रवर्तन निदेशालय भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के रेवेन्यू डिपार्टमेंट के अंतर्गत आता है. प्रवर्तन निदेशालय का मुख्य उद्देश्य भारत सरकार के दो प्रमुख अधिनियमों, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999  और धन की रोकथाम अधिनियम 2002  का प्रवर्तन करना है. वहीं केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन भारत की एक प्रमुख जांच एजेंसी है. कई अपराधों की जांच के अलावा आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार की जांच भी सीबीआई करती है. सीबीआई के पास अलग से एंटी करप्शन यूनिट भी है. इसके अलावा सरकार और कोर्ट भी सीबीआई को आर्थिक अपराधों की जांच के आदेश दे सकती है. आमतौर पर बड़ी हस्तियों से जुड़े आर्थिक अपराध, बड़ी रकम की धोखाधड़ी या एक से अधिक राज्यों से जुड़े मामलों की जांच सीबीआई करती है.इसके अलावा आयकर विभाग के उपर भी बेनामी सम्पति और नंबर दो की कमाई करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी होती है.

        अफसोस की बात यह है कि उक्त सभी एजेंसियां जिन्हें इस समय चैकस दिखना चाहिएं था, हाथ पर हाथ धरे बैंठीं हैं. न ही इनसे सरकार कुछ पूछ रही है, न ही अदालतों की नजर इन पर पड़ रही है. केन्द्र सरकार को बार-बार आईना दिखाने वालीं अदालतें यदि इस ओर भी थोड़ा ध्यान देतीं तो हालात काफी सुधर जाते.        

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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