गुरिन्द्र भरतगढि़या. हैदराबाद रियासत के सातवें निजाम नवाब उस्मान अली खां (1886-1967) को यदि संसार भर के महाकंजूसों का सम्राट कहा जाए तो कोई अचरज की बात न होगी. वह अरबों का मालिक था लेकिन बेहद कंजूस. उसकी कंजूसी के दिलचस्प, हास्यास्पद और विचित्र किस्सों की जितनी चर्चा देश विदेश में हुई है, उतनी शायद ही किसी अन्य शासक के बारे में हुई हो.
उसके सिर पर हर दम एक ही धुन सवार रहती थी कि विरासत में मिली बेशुमार दौलत को किस तरह बढ़ाया जाए. इसके लिए उसने बड़े अजीबो-गरीब तरीके अपना रखे थे. वह अपने विशिष्ट दरबारियों और रियासत के नामी-गिरामी रईसों को अक्सर दावतें देता रहता था. वह मेहमानों को अपने हाथों से शराब के जाम बना कर पेश करता था लेकिन दूसरे ही दिन निजाम द्वारा दिए गए इस सम्मान के बदले मेहमानों को भारी रकम निजाम को भेंट करनी पड़ती थी. इस तरह एक-एक दावत से उसे पांच-छः लाख रू मिल जाया करते थे.
धन प्राप्त करने के चक्कर में यह कंजूस निजाम अपनी प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगाने से संकोच नहीं करता था. कहते हैं, एक दफा नजराने में मिली एक मोहर छिटक कर नीचे जा गिरी तो उसनेे बौखला कर उसे ढूंढना शुरू कर दिया. हद तो उस समय हुई जब घुटनों के बल झुक कर वह तख्त के नीचे जा पहुंचा. जब तक उसने मोहर ढूंढ न ली, उसके चेहरे पर रौनक न लौटी. ऐसी घटिया हरकतें करने में वह जरा भी शर्म महसूस नहीं करता था.
रियासत के अमीर लोगों को ब्याह-शादी या अन्य खुशी के मौकों पर वह उपहार भेजना कभी नहीं भूलता था. जाहिर है, ये उपहार अत्यंत सस्ते होते थे और लोगों को धन्यवाद के रूप में उसे बहुमूल्य उपहार देने के लिए बाध्य होना पड़ता था. कई बार शादी-ब्याह के मौकों पर स्वयं उपस्थित हो जाने पर वह बिना किसी हिचक के दहेज में मिले महंगे गहनों को उठा लेता था और बेचारे वर-वधू खून के आंसू रोते हुए हाथ मलते रह जाते.
वह घटिया सिगरेट पीता था लेकिन आश्चर्य की बात तब होती जब वह मेहमानों द्वारा फेंके गए अधजले सिगरेट के टुकड़ों को उठा कर पीने लग जाता था. यदि कोई मेहमान उसे कीमती सिगरेट पेश करता तो वह बिना झेंप प्रकट किए एक के बजाए चार-पांच सिगरेट निकाल लेता. और तो और, पैसा बचाने के लिए उसने एक दफा बिजली का कनेक्शन तक कटवा दिया था. उसके बारेे में मशहूर था कि वह अपनी बेगमों की थालियों में से रोटियां उठा कर खा जाता था. उसका कहना था कि ज्यादा रोटियां खाने से वे मोटी हो जाएंगी.
उसके पास बड़े-बड़े शानदार महल थे लेकिन वह खुद ऐसे घटिया कमरे में रहता था, वहां उसका साधारण नौकर भी रहना पसंद न करता था. उसके घुटन भरे कमरे में एक ढीली-ढाली चारपाई, गंदा सा बिस्तर, दो मामूली कुर्सियां और एक छोटी सी मेज थी. अपार संपदा का स्वामी होते हुए भी वह सस्ते से मामूली बर्तनों में खाना खाता था. अपने अति विशिष्ट मेहमानों तक कोे वह एक प्याली चाय और एक बिस्कुट देता था.
दुबला-पतला, साधारण कद -काठी का वह अरबों पति निजाम कपड़ों के मामले में भी अपने कंजूस स्वभाव के कारण बेहद उदासीन रहता था. वह मोटे से कपड़े का ढीला ढाला पायजामा और कुर्ता पहना करता था तथा सिर पर झब्बेदार लाल तुर्की टोपी रखता था जिसके बारे में जानकारों का कहना था कि वह कम से कम 30-35 वर्ष पुरानी थी. वह टोपी फट गई थी और खस्ता हाल थी लेकिन निजाम को बेहद पसंद थी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-
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