गृहस्थी में पूजा कैसे करें ? बहुत ही सरल एवं सुन्दर विधि ?

गृहस्थी में पूजा कैसे करें ? बहुत ही सरल एवं सुन्दर विधि ?

प्रेषित समय :19:49:54 PM / Sun, May 23rd, 2021

पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पाठ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं, वे नियम कुछ इस प्रकार हैं ?

1 सूर्य, श्रीगणेश, दुर्गा, शिवजी एवं श्रीविष्णु ये पांच देव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए। इससे धन, लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है।
2 श्रीगणेश जी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
3 दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए।
4 सूर्यदेव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोड़ना चाहिए जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं, उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते।
6 रविवार, एकादशी, द्वादशी, पूर्णिमा, अमावस्या संक्रान्ति तथा संध्याकाल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए। 
7 दीपक के नीचे चावल अवश्य रखने चाहिए।
8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए।
9 कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
10 बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
11 तुलसी की पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
12 हाथों में रखकर हाथों से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
13 तांबे के पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए।
14 दीपक-से-दीपक नहीं जलाना चाहिए जो दीपक-से-दीपक जलाते हैं, वे रोगी होते हैं।
15 पतला चंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए।
16 प्रतिदिन की पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा में अपने दोष, दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें, अवश्य सफलता मिलेगी और मनोकामना पूर्ण होगी।
17 चर्मपात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए।
18 स्त्रियों और शूद्रों को शंख नहीं बजाना चाहिए यदि वे बजाते हैं तो लक्ष्मी वहाँ से चली जाती है।
19 देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए. सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म बेला में प्रथम पूजन और आरती होनी चाहिए। प्रात:9 से 10 बजे तक द्वितीय पूजन और आरती होनी चाहिए, मध्याह्न में तीसरा पूजन और आरती, फिर शयन करा देना चाहिए शाम को चार से पांच बजे तक चौथा पूजन और आरती होनी चाहिए, रात्रि में 8 से 9 बजे तक पाँचवाँ पूजन और आरती, फिर शयन करा देना चाहिए। 
20 आरती करने वालों को प्रथम चरणों की चार बार, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार और समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए।
21 पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर की ओर मुँह करके करनी चाहिए, हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में करें।
22 पूजा जमीन पर ऊनी आसन पर बैठकर ही करनी चाहिए, पूजागृह में सुबह एवं शाम को दीपक, एक घी का और एक तेल का रखें।
23 पूजा-अर्चना होने के बाद उसी जगह पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएँ करें।
24 पूजाघर में मूर्तियाँ 
1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेशजी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।
25 श्रीगणेशजी या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिङ्ग दो, शालिग्राम, दो सूर्य प्रतिमा, दो गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार, काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें, यह अमंगलकारक है एवं इनसे विपत्तियों का आगमन होता है।
26 मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है, अपने पूज्य माता-पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।
27 विष्णु की चार, गणेश की तीन, सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिवजी की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।
28 प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में कलश स्थापित करना चाहिए कलश जल से पूर्ण, श्रीफल से युक्त विधिपूर्वक स्थापित करें यदि आपके घर में श्रीफल कलश उग जाता है तो वहाँ सुख एवं समृद्धि के साथ स्वयं लक्ष्मी जी नारायण के साथ निवास करती हैं तुलसी का पूजन भी आवश्यक है।
29 मकड़ी के जाले एवं दीमक से घर को सर्वदा बचावें अन्यथा घर में भयंकर हानि हो सकती है।
30 घर में झाड़ू कभी खड़ा कर के न रखें झाड़ू को लांघना, पाँवसे कुचलना भी दरिद्रता को निमंत्रण देना है दो झाड़ू को भी एक ही स्थान में न रखें इससे शत्रु बढ़ते हैं।
31 घर में किसी परिस्थिति में जूठे बर्तन न रखें, क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि रात में लक्ष्मीजी घर का निरीक्षण करती हैं यदि जूठे बर्तन रखने ही हो तो किसी बड़े बर्तन में उन बर्तनों को रख कर उनमें पानी भर दें और ऊपर से ढक दें तो दोष निवारण हो जायेगा।
32 कपूर का एक छोटा-सा टुकड़ा घर में नित्य अवश्य जलाना चाहिए, जिससे वातावरण अधिकाधिक शुद्ध हो वातावरण में धनात्मक ऊर्जा बढ़े।
33 घर में नित्य घी का दीपक जलावें और सुखी रहें।
34 घर में नित्य गोमूत्र युक्त जल से पोंछा लगाने से घर में वास्तुदोष समाप्त होते हैं तथा दुरात्माएँ हावी नहीं होती हैं।
35 सेंधा नमक घर में रखने से सुख, श्री (लक्ष्मी) की वृद्धि होती है।
36 रोज पीपल वृक्ष के स्पर्श से शरीर में रोग प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है।
37 साबुत धनिया, हल्दी की पांच गांठें,11 कमलगट्टे तथा साबुत नमक एक थैली में रख कर तिजोरी में रखने से बरकत होती है श्री (लक्ष्मी) व समृद्धि बढ़ती है।
38 दक्षिणावर्त शंख जिस घर में होता है, उसमें साक्षात लक्ष्मी एवं शांति का वास होता है वहाँ मंगल ही मंगल होते हैं पूजा स्थान पर दो शंख नहीं होने चाहिएँ।
39 घर में यदा कदा केसर के छींटे देते रहने से वहाँ धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है पतला घोल बनाकर आम्र पत्र अथवा पान के पत्ते की सहायता से केसर के छींटे लगाने चाहिएँ।
40 एक मोती शंख, पाँच गोमती चक्र, तीन हकीक पत्थर, एक ताम्र सिक्का व थोड़ी-सी नागकेसर एक थैली में भरकर घर में रखें श्री (लक्ष्मी) की वृद्धि होगी।
41 आचमन करके जूठे हाथ सिर के पृष्ठ भाग में कदापि न पोंछें, इस भाग में अत्यंत महत्वपूर्ण कोशिकाएँ होती हैं।
42 घर में पूजा पाठ व मांगलिक पर्व में सिर पर टोपी व पगड़ी पहननी चाहिए।                 
43 पूजा-पाठ बिना आसन के नहीं करना चाहिए, जब पूजा करके खड़े हों तब आसन के नीचे जल की दो बूँद डालकर 
ॐ शक्राय नमः
ॐ इन्द्राय नमः

कहकर उन बूँदों को माथे से लगाकर फिर आसन के नीचे की भूमि को प्रणाम करके खड़ा होना चाहिए।
यदि ऐसा नहीं किया तो आपके पूजा-पाठ, जप आदि का फल देवराज इन्द्र ले जाते हैं।
44 यदि आप शंख की पूजा करते हैं, और उसमें पानी भरना है तो कभी भी डुबाकर नहीं भरना चाहिए, ऐसा करने से पूजा का कार्य सिद्ध नहीं होता।
शंख में आचमनी द्वारा ही जल डालें।
संकल्प के लिए जिस ताँबें या चाँदी की चम्मच का उपयोग किया जाता है, उसे ही आचमनी कहते हैं।
शंख को कभी भी पृथ्वी पर नहीं रखना चाहिए।
पूजा में यदि शंख की पूजा करते हैं, तो उसे अनाज की ढेरी पर रखना चाहिए, या किसी आसन पर स्थान दें, तभी शंख की कृपा प्राप्त होगी।
45 प्रसाद बाँटते समय धयान रखना चाहिए कि प्रसाद जमीन पर ना गिरे, यदि गिरता है, तो उसे तुरंत उठा लें और उसे किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें।
प्रसाद को जूठे हाथ से नहीं बाँटना चाहिए और न ग्रहण करना चाहिए, हाथों को धोकर
ही प्रसाद वितरित करें  एवं ग्रहण करें।
46 पूजा प्रारम्भ करने के पश्चात चाहे कैसी भी स्थिति हो, कभी भी जोर से नहीं बोले, किसी पर क्रोध करना अथवा अपशब्द कहना पूजा को खण्डित कर देता है।
47 फूल-फल चन्दन आदि को कभी भी सूँघना नहीं चाहिए, यदि आप ऐसा करते हैं, तो आपको पूजा करते हुए भी पाप लगेगा। क्योंकि सूँघने वाली कोई भी वस्तु देवी-देवताओं पर नहीं चढ़ती।
बासी फूल भगवान पर नहीं चढ़ते, यदि वे माली के घर रखें हैं, तो दोष नहीं लगता। विल्बपत्र चढ़ाने से एक दिन पहले तोड़कर रखने चाहिए।
48 फूलों को कभी तोड़कर नहीं चढ़ाना चाहिए। कुछ लोग एक फूल के बहुत-से टुकड़े करके चढ़ाते हैं, ऐसा भूलकर भी नहीं करें। यदि ऐसा किया तो पूजा में दोष लगेगा।
49 जप करनेवाली माला को बिना गोमुखी के खुले में जप नहीं करना चाहिए। यदि बिना गोमुखी के जप होगा तो उसका फल भूत-प्रेतों को प्राप्त होगा। 
50 प्रातः उठते समय इन पुण्यश्लोक पात्रों के नाम अवश्य लेने चाहिए।
 प्रातःस्मरणीय पात्र
         दोहा

       ।।1।।
पाणि मध्य बस सरस्वती,
करतल पंकज जात।
अग्रभाग कर इन्दिरा,
इनका दर्शन प्रात।। 
        ।।2।।
अश्वत्थामा व्यास बलि,
कृपाचार्य हनुमान।
परशुराम अरु विभीषण,
ये चिरजीव महान।।
          ।।3।।
शकुन्तला सुत भरत पृथु,
सहस्रार्जुन नल राम।
पूर्ण दिवस जाता भला,
जो लेता ये नाम।।
         ।।4।।
कुन्ती तारा द्रौपदी,
पचकन्या प्रख्यात।
अहल्या अरु मन्दोदरी,
सुमिरत नित अघ जात।।
         ।।5।।
कश्यप गौतम अत्रि अरु,
विश्वामित्र वशिष्ठ।
भरद्वाज अरु जमदग्नि,
ये ऋषि सात वरिष्ठ।।

वैसे ये पात्र और भी अनेक हैं जिनके नाम संस्कृत भाषा में श्लोकबद्ध हैं जिन्हें कुछ भाई-बहिन शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते इसलिए मैनें हिन्दी के दोहों में मुख्य पात्र और पञ्च कन्याओं के नामों की रचना की है इनके नाम प्रातःकाल लेने से बहुत लाभ मिलेगा।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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