*नृसिंह भगवान,(नृसिंह जयंती 25.05.2021)*
*नृसिंहजयंती पूजा समय-4:26 pm से 7:11 pm*
*पूजा की अवधि-2 घंटे 45 मिनट*
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चौथा अवतार नृसिंह हैं. इस पावन दिन नरसिंह भगवान की पूजा-अर्चना करने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिल जाती है.
इस अवतार में लक्ष्मीपति विष्णु जी, नर-सिंह मतलब आधे शेर और आधे मनुष्य बनकर प्रकट हुए थे . इसमें भगवान का चेहरा शेर का था और शरीर इंसान का था . नृसिंह अवतार के रूप में उन्होंने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए उसके पिता राक्षस हिरणाकश्यप का वध किया था .
धर्म ग्रंथों के अनुसार दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था.
हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु ना तो किसी इंसान के हाथ से होगी और ना ही किसी देवता, पक्षी अथवा पशु के हाथ से. वह ना दिन में मरेगा और ना ही रात को, ना किसी अस्त्र और ना ही किसी शस्त्र, ना तो धरती और ना आकाश, ना बाहर और ना अंदर, इस प्रकार उपरोक्त कथन के अनुसार किसी भी प्रकार से उसकी मृत्यु नही हो पायेगी.
उसके राज्य में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था.
उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था. प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था. यह बात जब हिरण्यकशिपु का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया.
हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया. हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई. तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई. इस प्रकार होलिका की मृत्यु के उपरांत जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब हिरण्यकश्यप जैसे दैत्य का विनाश कर सृष्टि को पाप मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह का अवतार लिया था. मनुष्य के शरीर और सिंह के मुख वाले नृसिंह भगवान हिरण्यकश्यप के महल के एक स्तंभ से प्रकट हुए थे.
भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया.
नृसिंह देव, जो ना पूरे पशु थे और ना पूरे मनुष्य, उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध अस्त्रों या शस्त्रों से नहीं बल्कि अपनी जंघा पर बिठाकर अपने नाखूनों से उसकी छाती चीर कर की थी. उसे तब मारा गया जब दिन और रात आपस में मिल रहे थे और वह भी चौखट पर बैठकर. इस तरह ईश्वर के वरदान का भी महत्व रह गया और हिरण्यकश्यप जैसी बुराई का भी नाश हुआ.
किंतु अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हो रहा था. लाल आंखें और क्रोधित चेहरे के साथ वे इधर-उधर घूमने लगे. उन्हें देखकर हर कोई भयभीत हो गया.
भगवान नृसिंह के क्रोध से तीनों लोक कांपने लगे, इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता गण ब्रह्मा जी के साथ भगवान शिव के पास गए. उन्हें यकीन था कि भगवान शिव के पास इस समस्या का हल अवश्य होगा. सभी ने मिलकर महादेव से प्रार्थना की कि वे नृसिंह देव के क्रोध से बचाएं.
भगवान शिव ने पहले वीरभद्र को नृसिंह देव के पास भेजा, लेकिन ये युक्ति पूरी तरह नाकाम रही. वीरभद्र ने भगवान शिव से यह अपील की कि वे स्वयं इस मसले में हस्तक्षेप करें और व्यक्तिगत तौर पर इस समस्या का हल निकालें.
भगवान महेश, जिन्हें ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली माना जाता है, वे नृसिंह देव के सामने कमजोर पड़ने लगे. महादेव ने मानव, चील और सिंह के शरीर वाले भगवान शरभेश्वर का स्वरूप लिया. शरभ उपनिषद के अनुसार भगवान शिव ने 64 बार अवतार लिया था, भगवान शरभेश्वर उनका 16वां अवतार माना जाता है. शरभेश्वर के आठ पैर, दो पंख, चील की नाक, अग्नि, सांप, हिरण और अंकुश, थामे चार भुजाएं थीं.
ब्रह्मांड में उड़ते हुए भगवान शरभेश्वर, नृसिंह देव के निकट आ पहुंचे और सबसे पहले अपने पंखों की सहायता से उन्होंने नृसिंह देव के क्रोध को शांत करने का प्रयत्न किया. लेकिन उनका यह प्रयत्न बेकार गया और उन दोनों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया. यह युद्ध करीब 18 दिनों तक चला.
जब भगवान शरभेश्वर ने इस युद्ध को समाप्त करने के लिए अपने एक पंख में से देवी प्रत्यंकरा को बाहर निकाला, जो नृसिंह देव को निगलने का प्रयास करने लगीं. नृसिंह देव, उनके सामने कमजोर पड़ गए, उन्हें अपनी करनी पर पछतावा होने लगा, इसलिए उन्होंने देवी से माफी मांगी.
शरभ के वार से आहत होकर नृसिंह ने अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया और फिर भगवान शिव से यह प्रार्थना की कि वह उनकी चर्म को अपने आसन के रूप में स्वीकार कर लें.
भगवान शिव ने नृसिंह देव को शांत कर सृष्टि को उनके कोप से मुक्ति दिलवाई थी. नृसिंह और ब्रह्मा ने शरभेश्वर के विभिन्न नामों का जाप शुरू किया जो मंत्र बन गए.
तब शरभेश्वर भगवान ने यह कहा कि उनका अवतरण केवल नृसिंह देव के कोप को शांत करने के लिए हुआ था. उन्होंने यह भी कहा कि नृसिंह और शरभेश्वर एक ही हैं. इसलिए उन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता.
अपने प्राण त्यागने के बाद नृसिंह भगवान विष्णु के तेज में शामिल हो गए और शिव ने उनकी चर्म को अपना आसन बना लिया. इस तरह भगवान नृसिंह की दिव्य लीला का समापन हुआ.
नरसिंह भगवान पूजा विधि
इस पावन दिन नरसिंह भगवान की पूजा करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं. इस दिन व्रत रखने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस पावन दिन विधि- विधान से पूजा करने से जीवन आनंदमय हो जाता है.
1. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करे.
2. स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें.
3.भगवान नरसिंह को पुष्प, फल आदि अर्पित करके पंचोपचार पूजन करना चाहिए.
4. भगवान नरसिंह का अधिक से अधिक ध्यान करें.
5. इस पावन दिन भगवान नरसिंह को भोग भी लगाएं.
6. इस पूजा के उपरांत भगवान नरसिंह के मंत्रों का जाप तथा स्तोत्र इत्यादि का पाठ करने के उपरांत भगवान जी की आरती करें.
भयमुक्त जीवन, शत्रुओं से मुक्ति प्राप्ति हेतु तथा निम्नलिखित मंत्रों का श्रद्धापूर्वक जाप करना चाहिए
घोर संकटों से घिरे हुए मनुष्य, शत्रुओं से त्रस्त या पराजित, मुकद्दमें मे हार के नजदीक हो या राजकीय सजा-जुर्माने का सामना कर रहे हो, अथवा बल, पराक्रम और पुरुषार्थ पाने के लिए भक्तों को तो भगवान विष्णु या श्री नृसिंह भगवान के चित्र या प्रतिमा की पूजा करके निम्नलिखित नृसिंह महामंत्रो मे से किसी भी मंत्र का जाप करने से समस्त संकटों से छुटकारा मिलेगा
तथा अभीष्ट की प्राप्ति होगी.
भगवान नृसिंह का बीज मंत्र
*श्रौं'*
*संकटमोचन नृसिंह मंत्र
*ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं,*
*सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्.*
*अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्..*
*नृसिंह गायत्री मंत्र:-*
1. *ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि.*
*तन्नो नरसिंह प्रचोदयात् ॥*
2. *ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि.*
*तन्नः सिंहः प्रचोदयात् ॥*
नृसिंह भगवान के अन्य शक्तिशाली मंत्र
*1. ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्.*
*2. नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥*
*3. *ॐ नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः
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