जमुई.बिहार के जमुई के धर्मेंद्र कुमार पहले फर्नीचर की दुकान चलाते थे. जब कोरोना काल में लॉकडाउन लगा तो घर पर ही रेडिमेड गारमेंट की फैक्ट्री खोल ली. अब इस फैक्ट्री में वैसे कारीगरों को काम मिल रहा है जो महानगरों में किसी न किसी गारमेंट कंपनी में काम करते थे और लॉकडाउन में घर लौटने को मजबूर हो गए. इस फैक्ट्री में स्पोर्ट्स संबधित कपड़े तैयार होते हैं, जिसकी मांग स्थानीय बाजार में काफी है.
जमुई शहर के बोधवन तालाब के पास बिठलपुर गांव जाने वाले रास्ते में 25 वर्षीय धर्मेंद्र ने अपनी फैक्ट्री शुरू की है. अब यहां दर्जनों लोगों को रोजगार मिल रहा है. साथ ही लाखों की कमाई भी हो रही है. यहां काम करने वाले कारीगरों का मानना है कि अब ये लोग महानगरों में नहीं जाएंगे. यहीं काम करना पसंद करेंगे. धर्मेंद्र की फैक्ट्री में काम करने वाले हंसडीहा के रहने वाले कुन्दन कुमार ने बताया कि पहले वह फरीदाबाद में एक गारमेंट कंपनी में कपड़े सिला करते थे. लॉकडाउन में घर लौटे तो कुछ महीने बेकार बैठे रहे. बाद में जब इस गारमेंट कंपनी के बारे में पता चला तो यहीं काम शुरू कर दिया. वह बताते हैं कि अब महीने में 12 से 13 हजार कमा लेते हैं.
कुन्दन के साथ काम करने वाले एक और कारीगर पवन जमुई के खैरा के खुटौना गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया कि वह दिल्ली के एक गारमेंट कंपनी में काम करते थे. पवन का कहना है कि अपने गांव के पास ही काम मिल जाने से बहुत खुश हैं. फैक्ट्री मालिक धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि फर्नीचर के धंधे में लॉकडाउन में जब घाटा होना शुरू हुआ तो रेडीमेड कपड़े खासकर स्पोर्ट्स के कपड़े की फैक्ट्री खुद के जमा पूंजी से खोल दी. कोलकाता से मैटेरियल और अत्याधुनिक सिलाई मशीन लाकर काम शुरू किया. लॉकडाउन में घर लौटे कारीगरों को भी यहां काम मिल गया. जो भी यहां कपड़े बनते हैं वो स्थानीय बाजार में ही बिक जाते हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कर्नाटक: भगवान से कम नहीं है डॉ. के मल्हार राव मल्ले, महज 20 रुपए में करते हैं इलाज
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