प्रदीप द्विवेदी (खबरंदाजी). फिल्म शोले में जय अपने दोस्त वीरू का रिश्ता लेकर मौसी के पास जाता है और जिस अंदाज में अपने दोस्त की तारीफ करता है, ताजा सर्वे ने उसकी याद दिला दी?
सर्वे में हर मोर्चे पर फेल मोदी सरकार के प्रमुख नरेंद्र भाई को मेरिट में पहुंचाने की कवायद भी कुछ-कुछ वैसी ही है!
वैसे, सर्वे-मीडिया की दाद देनी होगी कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में इतनी बेइज्जती होने के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारी है?
जब लोगों से सर्वे के दौरान यह पूछा गया कि वे केन्द्र सरकार के कामकाज से कितना संतुष्ट हैं? तो, जवाब में 31 प्रतिशत लोगों ने बहुत संतुष्ट बताया. जबकि 28 प्रतिशत ने कम संतुष्ट और 37 प्रतिशत ने असंतुष्ट बताया. केवल 4 प्रतिशत ने कहा कि वे इस बारे में कुछ भी नहीं बता सकते हैं.
अब, यदि 18-18 घंटे काम करने के बाद भी लोग संतुष्ट नहीं हैं, तो मोदी क्या करें? वैसे भी कहा गया है- संतोषी सदा सुखी, जनता में संतोष का अभाव है, इसीलिए लोग सुखी नहीं हैं!
महंगे पेट्रोल-डीजल के लिए कौन जिम्मेदार है? इस सवाल के जवाब में 44 प्रतिशत शहरी और 48 प्रतिशत ग्रामीणों ने केन्द्र सरकार को जिम्मेदार बताया, जबकि 19 प्रतिशत शहरी और 22 प्रतिशत ग्रामीण राज्य सरकार को पेट्रोल-डीजल की दरों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं. इतना ही नहीं, 21 प्रतिशत शहरी और 17 प्रतिशत ग्रामीण बढ़ती तेल कीमतों के लिए तो तेल कंपनियों को ही कसूरवार बता रहे हैं, जबकि 16 प्रतिशत शहरी और 13 प्रतिशत ग्रामीणों का यह कहना है कि उन्हें इसके बारे में कुछ भी नहीं कहना है?
अब सोचो! यदि सरकार, जनता का तेल नहीं निकालेगी, तो सरकार की गाड़ी कैसे चलेगी? ऐसे हालात को देखते हुए ही पीएम मोदी ने तो अपनी सर्वप्रिय विदेश यात्राएं तक बंद कर दी हैं!
लोगों का क्या है? 44 प्रतिशत शहरी और 40 प्रतिशत ग्रामीणों ने कहा कि कोरोना से निपटने में सरकारी नाकामी रही है, तो 20 प्रतिशत शहरी लोगों ने और 25 फीसदी ग्रामीणों ने कहा है कि कृषि कानून के मोर्चे पर सरकार नाकाम रही है, जबकि 10 प्रतिशत ग्रामीण और 7 प्रतिशत शहरी लोगों ने भारत-चीन सीमा विवाद को नाकामी का प्रमुख मुद्दा बताया है!
कोरोना से बचने का एक ही तरीका है- छुपकर बैठ जाओ? सरकार तो छुपकर बैठ गई है, लेकिन जनता नहीं मानती है!
सर्वे में जब यह सवाल किया गया कि आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार से किसे सबसे ज्यादा फायदा है? तो, इसके जवाब में 61 प्रतिशत शहरी और 66 प्रतिशत ग्रामीणों ने बड़े उद्योगपतियों को बताया, जबकि 16 प्रतिशत शहरी और 16 प्रतिशत ग्रामीणों ने छोटे कारोबारियों को बताया, वहीं 9 प्रतिशत शहरी और 7 प्रतिशत ग्रामीणों ने बताया कि नौकरीपेशा लोगों को फायदा हुआ है.
अब लोगों को यह कौन समझाए कि बड़े उद्योगपतियों को देख कर ही तो विश्व को पता चलता है कि भारत की मालीहालत कैसी है? गरीबी को तो हटाने की जरूरत नहीं है, उसे तो दीवार के पीछे भी ढका जा सकता है!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज से वे कितना संतुष्ट हैं? इस यक्ष-प्रश्न के जवाब में 37 प्रतिशत लोगों ने बहुत संतुष्ट बताया, तो 25 प्रतिशत लोगों ने कम संतुष्ट बताया, खैर, कोई बात नहीं, अगले सर्वे में इमेज और सुधर जाएगी!
इसी सर्वे में जनता से एक और सवाल किया गया कि अगर आपको सीधे पीएम चुनना हो तो किसे चुनेंगे? इस पर भी सबसे ज्यादा लोगों ने पीएम नरेंद्र मोदी का चुनाव किया है. सर्वे में पीएम मोदी को 50 प्रतिशत लोगों ने चुना, तोे राहुल गांधी को केवल 30 प्रतिशत लोगों ने सीधे प्रधानमंत्री चुनने की बात कही है, मतलब- आपको भरोसा हो या ना हो, आधे भारत को अब भी पीएम मोदी पर भरोसा है, सर्वेे-मीडिया को तो पूरा-पूरा भरोसा हैै कि फायरप्रूफ काठ की हांडी 2024 में भी आसानी सेे चढ़ा दी जाएगी!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-ममता बैनर्जी का बड़ा आरोप: मैंने नहीं, पीएम मोदी ने मुझे कराया था इंतजार
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