प्रदीप द्विवेदी. बीजेपी को तीसरे मोर्चे से कोई खास खतरा नहीं है, क्योंकि उनके क्षेत्र में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ खास नहीं है. उसे असली सियासी खतरा तो कांग्रेस से है, यही वजह है कि बीजेपी इतने लंबे समय से कांग्रेस पर ही निशाना साधती रही है.
कहने को केंद्र में बीजेपी की सरकार है, लेकिन देश के करीब आधा दर्जन बड़े राज्यों में ही बीजेपी का आधार है और इनमें से ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस उसकी बराबरी पर खड़ी है.
तीसरे मोर्चे के प्रभाव वाले राज्यों में तो बीजेपी ने कुछ खास पाया ही नहीं है, तो खोने के लिए क्या है?
गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से बीजेपी को एक सौ से ज्यादा सीटे मिली हैं, यहां उसका मुकाबला कांग्रेस से ही है, मतलब- इन राज्यों में कांग्रेस मजबूत हुई, तो एक सौ सीटों का गणित बदल जाएगा, लिहाजा बीजेपी को बहुमत से नीचे लाने में तो कांग्रेस अकेली ही सक्षम है.
उत्तर प्रदेश ऐसा प्रदेश है, जहां यदि बीजेपी कमजोर पड़ी तो केंद्र की सत्ता उसके हाथ नहीं आनी है, यहां की करीब सात दर्जन सीटें तय करेंगी कि बीजेपी 2024 में वापसी कर पाएगी या नहीं.
इससे पहले यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में ही यह साफ हो जाएगा सियासी हवा किस ओर बह रही है.
पहले पंजाब-हरियाणा-दिल्ली ने बीजेपी को बहुत कुछ दिया था, लेकिन किसान आंदोलन के बाद पंजाब से तो कोई उम्मीद बेकार है, हरियाणा में भी खतरे की घंटी बज रही है और दिल्ली से क्या मिलेगा, यह तो समय ही बताएगा.
जहां तीसरे मोर्चे के दलों का प्रभाव है, वहां अव्वल तो बीजेपी को कुछ खास हासिल हुआ नहीं है और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव ने और भी साफ कर दिया है कि अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए इन राज्यों से कुछ भी हासिल करना बेहद मुश्किल होगा.
कुल मिला कर देश में कम-से-कम डेढ़ सौ ऐसी सीटें हैं, जो सियासी समीकरण बदलने पर कांग्रेस, बीजेपी से छिन सकती है.
अब यह इसलिए भी संभव है कि रोजगार, महंगाई, कोरोना महामारी नियंत्रण जैसे तमाम मोर्चो पर मोदी सरकार कामयाब नहीं हो पाई है.
अब तो बीजेपी के पास केवल इमोशनल मुद्दे बचे हैं, इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि यूपी इलेक्शन में ये कितने काम आते हैं, क्योंकि यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे ही 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की दशा और दिशा तय करेंगे!
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-पश्चिम बंगाल में मुकुल रॉय ने फिर दिया बीजेपी को झटका, पार्टी के कई नेताओं ने थामा टीएमसी का दामन
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