नजरिया. किसान आंदोलन को आठ माह होने को हैं और किसानों की मांगे मोदी सरकार मानेगी या नहीं मानेगी, यह तो कहा नहीं जा सकता है, लेकिन इतना तय है कि इससे बीजेपी को बड़ा सियासी नुकसान होगा.
इस आंदोलन में समय-समय पर लाखों किसान शामिल हुए हैं, मतलब- इन लाखों किसान परिवारों से तो बीजेपी के लिए वोट हासिल करना आसान नहीं है? इनमें लाखों किसान ऐसे भी होंगे जिन्होंने पिछले चुनावों मेें बीजेपी को वोट दिया होगा! क्या अब देंगे?
किसान आंदोलन का असर देखें तो पंजाब में बीजेपी के लिए कोई खास जगह बची नहीं है, हरियाणा में मंत्रियों तक के कार्यक्रमों का विरोध हो रहा है, तो यूपी में चुनावी नतीजे क्या रहेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता है!
उधर, मोदी टीम यह सोच कर खुश है कि प्रदर्शनकारी किसानों की संख्या कम हो रही है, परन्तु इसका मतलब यह तो नहीं है कि सबने आंदोलन खत्म कर दिया है और मोदी सरकार को माफ कर दिया है? समय आने पर किसानों की यही नाराजगी वोट के रूप में निकलेगी!
खबर है कि भारतीय किसान यूनियन ने गाजीपुर बॉर्डर में प्रदर्शनकारियों की संख्या संतुलित करने के लिये नयी रणनीति अपनाई है, जिसके तहत एक गांव से 10 प्रदर्शनकारियों को 15 दिन तक प्रदर्शन में हिस्सा लेने का निर्देश दिया गया है.
जाहिर है, प्रदर्शनकारियों को भी समझ में आ गया है कि आंदोलन लंबा चलेगा, इसलिए ज्यादा भीड़ जुटाने के बजाए, किसान आंदोलन रोटेशन पर फोकस हो रहा है, जिससे आंदोलन भी चलता रहे और खेती-किसानी का काम भी नहीं रूके.
सियासी सयानों का मानना है कि किसान आंदोलन से बीजेपी का काफी नुकसान तो हो चुका है, यदि मोदी सरकार यह चाहती है कि आगे नुकसान नहीं हो, तो आंदोलन को दबाने के बजाए किसानों के लिए सम्मानजनक समाधान पर ध्यान देना होगा!
https://twitter.com/RakeshTikaitBKU/status/1414856014088728578
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