प्रदीप द्विवेदी. पेगासस जासूसी प्रकरण ने नरेंद्र मोदी के बचे हुए पाॅलिटिकल मेकअप को भी धो कर रख दिया है.
याद रहे, पेगासस जासूसी मामले में रिपोर्ट आने के पहले ही बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इसे लेकर ट्वीट किया था कि- इस तरह की अफवाह है कि वॉशिंगटन पोस्ट और लंदन गार्डियन एक रिपोर्ट छापने जा रहे हैं, जिसमें इसराइल की फर्म पेगासस को मोदी कैबिनेट के मंत्री, आरएसएस के नेता, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और पत्रकारों के फोन टैप करने के लिए हायर किए जाने का भंडाफोड़ होगा.
आजादी के बाद केंद्र सरकारों की मनमानी के खिलाफ जितने भी बड़े आंदोलन हुए हैं, जनहित के जितने भी प्रदर्शन हुए हैं, उनकी कामयाबी में आरएसएस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
आपातकाल के बाद जनता पार्टी को केंद्र की सत्ता तक पहुंचने में आरएसएस का खास योगदान रहा, तो केंद्र में जितनी भी गैर-कांग्रेसी सरकारें बनी उनका आधार भी संघ ही रहा, लेकिन इस बार संघ की खामोशी आश्चर्यजनक है.
वैसे तो, पहले कार्यकाल के बाद ही पीएम मोदी की सत्ता से विदाई हो जाती, यदि 2019 के लोकसभा चुनाव में संघ का सशक्त आधार नहीं मिला होता, परन्तु अब यह एकदम साफ हो गया है कि नरेंद्र मोदी न केवल बतौर प्रधानमंत्री असफल साबित हुए हैं, बल्कि संघ के सिद्धांतों से भी किनारे कर चुके हैं, क्या संघ नरेंद्र मोदी के कार्यों से सहमत है?
एक- कहां तो संघ की समर्पित सेवा और कहां मोदी सरकार की कोरोना काल में कागजी फर्जी राहत? बीस लाख करोड़ रुपए का राहत पैकेेज? अस्सी करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन? क्या संघ इन आंकड़ों पर भरोसा करता है?
दो- कोरोना संकट के दौरान ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई, जैसे सफेद झूठ पर क्या संघ भरोसा करता है?
तीन- मोदी आत्ममुग्ध नेता हैं और अपना एकाधिकार कायम करने के लिए संघ के तैयार किए गए, अटल सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहे तमाम प्रमुख और वरिष्ठ नेताओं को या तो सियासी संन्यास आश्रम में भेज चुके हैं या फिर बीजेपी से बाहर कर चुके हैं. यही नहीं, जिंदा रहते नरेंद्र मोदी के नाम पर स्टेडियम बनाकर व्यक्तिवाद की जो नई परंपरा शुरू की गई है, वह बेमिसाल है, क्या संघ इससे सहमत है?
चार- अटल सरकार तक प्रभावी नीति- सिद्धांत पहले, सत्ता बाद में, को बदल कर मोदी ने सत्ता पहले, सिद्धांत कभी नहीं, कर दिया है, यही वजह है कि कभी बीजेपी में सत्तर प्रतिशत से ज्यादा नेता संघ की पृष्ठभूमि से थे, अब कितने हैं? बंगाल में मूल भाजपाइयों को किनारे करके टीएमसी नेताओं को आगे किया गया, क्या मिला? क्या बंगाल में वर्षों संघर्ष करने वाले संघ-बीजेपी के कार्यकर्ताओं के साथ मोदी टीम का यह सियासी व्यवहार स्वीकार्य है?
पांच- सत्ता हासिल करने के लिए गैर-भाजपाई दलों के भ्रष्टों को भी बीजेपी में सम्मानजनक जगह दे दी गई है, कइयों को तो देश-प्रदेश में मंत्री बना दिया गया है, जिसके कारण बीजेपी के मूल कार्यकर्ताओं के समक्ष प्रश्नचिन्ह है कि- जिन भ्रष्ट नेताओं का लंबे समय तक बीजेपी कार्यकर्ता विरोध करते रहे, क्या अब वे उनके जयकारे लगाएंगे?
छह- गौ हत्या को लेकर मोदी सरकार कोई कानून क्यों नहीं बना रही है?
सात- स्वदेशी आंदोलन की जो हालत की है, वह सबके सामने है!
आठ- महंगाई, बेरोजगारी जैसी समस्याओं को लेकर मोदी सरकार जो लापरवाही दिखा रही है, क्या वह सही है?
नौ- किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार के रवैये से क्या संघ सहमत है? क्या संघ सेे जुड़े किसान संगठन, मजदूर संगठन आदि मोदी सरकार की उद्योगपति मित्रों को लाभ की नीति से सहमत हैं?
दस- इसमें कोई संदेह नहीं है कि नरेंद्र मोदी अपनी सियासी इमेज खो चुके हैं, इसलिए सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि- क्या मोदी की इमेज बचाने के लिए संघ सौ साल की साख दांव पर लगाएगा?
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