स्त्री कुंडली फलादेश

स्त्री कुंडली फलादेश

प्रेषित समय :21:18:42 PM / Mon, Aug 9th, 2021

प्रथम भाव-
जन्म कुंडली में प्रथम भाव सबसे महत्वपूर्ण होता है जिसे लग्न भी कहा जाता है अतः जिस स्त्री की जन्म कुंडली के प्रथम भाव अर्थात लग्न में सूर्य और मंगल विद्यमान होते हैं तो उस स्त्री को जीवन में पति का वियोग उठाना पड़ता है और अगर यदि लग्न में राहु केतु विद्यमान हो तो ऐसी जन्मकुंडली वाली स्त्री को अपने जीवन में संतान का दुख सहन करना पड़ता है और शनी केंद्र में विद्यमान हो तो दरिद्रता प्रदान करता है शुक्र और बुध अथवा बृहस्पति केंद्र में हो तो ऐसी जन्म कुंडली वाली स्त्री साध्वी सबको प्रिय होती है और चंद्रमा अगर लग्न में विद्यमान हो तो आयु को कम करता है

द्वितीय भाव :
इसी प्रकार अब हम स्त्री की जन्म कुंडली के द्वितीय भाव का विश्लेषण करते हैं यदि किसी स्त्री की जन्म कुंडली के द्वितीय भाव में शनि राहु केतु और मंगल दूसरे भाव में स्थित हो तो वो स्त्री बहुत ही गरीब व दुखी होती है और यदि द्वितीय भाव में बृहस्पति शुक्र अथवा बुध विद्यमान हो तो ऐसी स्त्री सौभाग्यवती और बहुत अधिक धनवान होती है तथा पुत्र पुत्र आदि से संपन्न होकर के अपना सुखमय जीवन व्यतीत करती
है

यथा  -
कुर्वंन्ति भास्कर शनैश्चरराहु भोमा:,
दारिद्र्य दु:खमतुलम सतत द्वितीये,
वितेश्वरीम् विधवाम् गुरु शुक्र सौम्ये:,
नारी प्रभुतानयाम कुरुते शशांक:.

तृतीय भाव 
इसी प्रकार अब हम स्त्री जन्म कुंडली के तृतीय भाव का विश्लेषण करके सामान्य रूप से उनके फलों को जानने का प्रयास करते हैं यदि किसी भी स्त्री के तीसरे भाव में शुक्र चंद्रमा मंगल बृहस्पति सूर्य अथवा बुध इनमें से कोई भी ग्रह बैठा हो तो वह स्त्री पतिवर्ता वह पुत्र सुख को प्राप्त करने वाली होती है तथा आर्थिक दृष्टि से भी धनवान होती है यदि तृतीय भाव में शनि विद्यमान हो तो ऐसी जन्म कुंडली वाली स्त्री बहुत अधिक धनवान होती है परंतु यदि तीसरे भाव में राहु केतु विद्यमान हो तो ऐसी स्त्री शरीर से बहुत ही हष्ट पुष्ट होती है लेकिन साथ ही रक्त विकार मोटापा बल्ड प्रेशर आदि बीमारी से ग्रसित होती

चतुर्थ भाव -:

यदि किसी स्त्री की जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में मंगल अथवा शनि स्थित हो तो ऐसी जन्मकुंडली वाली स्त्री के आंचल में दूध की कमी होती है और यदि तीसरे भाव में चंद्रमा विद्यमान हो  वह स्त्री सरल व सौभाग्यवती होती है राहु और मंगल यदि किसी  स्त्री की जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में हो तो ऐसी स्त्री के कन्याओं की संख्या अधिक होती है किंतु ऐसी स्त्री को अपने जीवन में भूमि तथा धन लाभ होता है बुध और बृहस्पति अथवा शुक्र जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में हो तो ऐसे जन्मकुंडली वाली स्त्री अनेक प्रकार के सुखों से संपन्न होती है तथा सभी भौतिक सुख-सुविधा को प्राप्त करते हुए अपने जीवन को व्यतीत करती है

यथा-:

स्वल्पं पय:क्षितिज सूर्यसुते चतुर्थे,
सौभाग्य शीलरहितामसे कुरुते शशांक:.
राहु विनिष्सटतयाम क्षितिजोल्पबीजाम ,
दध्दाद  बुध:सुरगुरु :भृगुजश्भचसौख्यम,

पंचम भाव-:
इसी प्रकार यदि किसी स्त्री की जन्म कुंडली के पंचम भाव में यदि सूर्य मंगल विद्यमान हो तो ऐसी जन्मकुंडली वाली स्त्री के संतान नष्ट होते हैं बुध और शुक्र यदि स्त्री की जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित हो तो वह स्त्री अनेक पुत्र वाली होती है राहु और केतु संतान सुख से वंचित करते हैं और यदि पंचम भाव में शनी विद्यमान होता है तो संतान रोगी उत्पन्न होती है और यदि पंचम भाव में चंद्रमा विद्यमान हो तो ऐसी स्त्री के कन्याए अधिक होती है पुत्र सुख से वंचित रहना पड़ता है

षष्टम भाव:
यदि स्त्री की जन्म कुंडली के अष्टम भाव में शनि सूर्य राहु केतु बृहस्पति अथवा मंगल इनमें से कोई भी ग्रह बैठा हो तो वह स्त्री सौभाग्यवती शुभ आचरण करने वाली सबको प्रिय व  पति सेवा में निपुण होती है इसी प्रकार यदि छठे स्थान में चंद्रमा विद्यमान हो तो उस स्त्री को पति सुख से वंचित होना पड़ता है  यदि शुक्र अष्टम भाव में स्थित हो तो वह स्त्री गरीब व दरिद्रता में अपना जीवन व्यतीत करती है इसी प्रकार यदि अष्टम भाव में बुध बैठा हो तो ऐसी स्त्री कलह  प्रिय व परिवार में अशांति का कारण बनती है

यथा -:
षष्ठे शनैश्चरकुजौ  रविराहुजीवा: ,
नारीं करोति शुभगाम पतिसेविनीम,
चंद्र:करोति विधवामुशना दरिद्राम,
वेश्यां शशांक तनय :कलह प्रियाम वा,

सप्तम भाव-:
जिस स्त्री की जन्म कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य विद्यमान होता है तो उस स्त्री को पति सुख प्राप्त नहीं होता है अथवा यों कहें पति और पत्नी दोनों के बीच में मतभेद होता है तथा दांपत्य जीवन निराशा में भरा हुआ होता है इसी प्रकार यदि जन्मकुंडली के सप्तम भाव में मंगल विद्यमान होता है तो मांगलिक योग का निर्माण होता है अगर समय पर मांगलिक योग का निवारण नहीं किया जाए तो उस स्त्री को अल्पकाल में ही उसका पति छोड़ कर के चला जाता है अथवा वह स्त्री अल्पकाल में ही विधवा हो जाती है इसी प्रकार यदि सप्तम भाव में शनि विद्यमान हो तो ऐसी स्त्री का विवाह देरी से होता है तथा चंद्रमा सप्तम भाव में हो तो वह स्त्री बहुत ही सौभाग्यशाली होती है और यदि सप्तम भाव में बृहस्पति विद्यमान हो तो सर्व संपन्न अपना ग्रस्त जीवन जीती है तथा यदि सप्तम भाव में शुक्र विद्यमान होता है तो ऐसी स्त्री भी सभी प्रकार के सौभाग्य से युक्त हो करके अपना जीवन व्यतीत करती है

अष्टम भाव :-
जिस स्त्री की जन्म कुंडली के अष्टम भाव में बृहस्पति अथवा बुध विद्यमान हो तो उस स्त्री को पति का वियोग होता है तथा यदि अष्टम भाव में चंद्रमा शुक्र राहु केतु स्थित हो तो स्त्री की अल्पकाल में ही मृत्यु योग बनता है और यदि अष्टम भाव में सूर्य विद्यमान हो तो ऐसी स्त्री को अपने जीवन में पति सुख प्राप्त नही  होता है परंतु यदि अष्टम भाव में मंगल विद्यमान हो तो मंगल ऐसी स्त्री को सदाचरण करने बनाता है और शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो ऐसी स्त्री को पुत्र अधिक होते हैं तथा वह अपने पति को प्रिय होती है

यथा -:

स्थाने अष्टमे  गुरुबुद्धौनियतम वियोगम ,
मृत्यु शशांक उशना अपि राहु केतु ,.
सूर्य: करोति विधवा शुभगाम महीज :
सूर्यात्मजो बहूसुताम पति वल्लभाम च..

नवम भाव-:
जिस स्त्री की जन्म कुंडली के नवम भाव में बुध शुक्र सूर्य और बृहस्पति विद्यमान होते हैं तो उस स्त्री की बुद्धि धर्म परायण होती है धर्म-कर्म में रूचि रखने वाली होती है और मंगल यदि नवम भाव में स्थित हो तो उस स्त्री को रक्तचाप जैसी बीमारियों से पीड़ित रहना पड़ता है और यदि शनि नवम भाव में हो तो उस स्त्री को अपने पति का विरोध झेलना पड़ता है तथा चंद्रमा बहू संतान प्रदान करने वाला होता है

दशम भाव-:
ज्योतिष में जन्म कुंडली के दशम भाव को कर्म भाव की संज्ञा दी जाती है अतः जिस स्त्री की जन्म कुंडली के दशम भाव में राहु स्थित होता है  वह स्त्री विधवा होती है और शनि व सूर्य स्त्री को पाप कार्यों की ओर प्रेरित करते हैं दशम भाव में स्थित मंगल धन का नाश करता है और रुग्णता प्रदान करता है चंद्रमा दसवें भाव में स्थित होकर स्त्री को स्वच्छंद विचरण करने वाली प्रकृति की बनाता है

यथा -:

राहु: करोति विधवाम यदि कर्मणि स्यात्,
पापे रतिम दिनकरश्च शनैश्चरश्च!
मृत्युर्कुजो  अर्थ रहिताम कुलटाम च चंद्र:.
शेषा ग्रहा धनवतीम शुभगाम च सा कुर्यु: !!

एकादश भाव -:

जिस स्त्री के ग्यारहवें भाव में सूर्य स्थित होता है तो वह स्त्री सु पुत्रवती होती है तथा ग्यारहवें भाव में मंगल स्थित हो तो उस स्त्री को पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा बनी रहती है इसी प्रकार यदि किसी स्त्री की जन्म कुंडली के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा स्थित हो तो वह स्त्री धनवान होती है और बृहस्पति 11 भाव में स्थित होकर स्त्री की आयु की वृद्धि करता है बुध राहु और केतु अपने पति से वियोग कराते हैं तथा शुक्र 11 भाव में अनेक प्रकार से धन लाभ करवाता है

द्वादश भाव-:
जन्म कुंडली के द्वादश भाव में यदि गुरु विद्यमान होता है तो उस स्त्री के जीवन में वैधव्य योग का निर्माण होता है चंद्रमा 12वे भाव में स्थित होकर स्त्री को अधिक खर्चा करने वाली बनाता है तो राहु 12वे भाव में बैठकर के स्त्री को स्वच्छंद विचरण करने वाली बनाता है बुध और शुक्र स्त्री को 12 भाव में बैठकर के पतिव्रता पुत्र पौत्र युक्त बनाता है तथा मंगल 12 भाव में स्थित होकर के स्त्री को पति की प्रिया बनाता है साथ ही मांगलिक दोष का निर्माण भी करता है

यथा -:
अंते गुरुहिं विधवां दिन कृद् दरिद्राम ,
चंदो धनव्यकरीम  कुलटाम च राहु: !
साध्वीं तथा भ्रुगू बुद्धौ बहु पुत्र पौत्राम ,
प्राण   प्रसक्तहदयाम सुहदाम  कुजश्च  ..

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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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