देश में जब लोग कोरोना वायरस और लॉकडाउन से जूझ रहे थे उस वक्त बेंगलुरु की रहनेवाली एक वकील किराना देवाडिगा अपने घर की छत पर खुद के द्वारा लगाये गये चमेली के फूलों के सुगंध का आनंद ले रही थी. आज नहीं जैस्मीन के फूलों ने किराना की जिंदगी बदल दी है. वह कहती है कि बढ़ती चमेली ने उसका जीवन बदल दिया.
किरण ने पिछले साल मार्च में लॉकडाउन के दौरान उडुपी चमेली, जिसे शंकरपुरा मल्लिगे के नाम से भी जाना जाता है, उगाना शुरू किया. चमेली देश के विभिन्न हिस्सों में उगाई जाती है और इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, उडुपी मल्लिगे में एक अद्वितीय सुगंध है, और भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग होने का गौरव प्राप्त है.
द बेटर इंडिया से बात करते हुए , किराना कहती हैं, “मेरी हमेशा से एक गुप्त इच्छा रही है कि मैं एक ज़मीन का मालिक बनूँ और उस पर खेती करूं. शहर की लड़की होने के नाते वह सपना कभी पूरा नहीं हुआ. हालांकि, लॉकडाउन एक वरदान के रूप में आया क्योंकि मैंने अपने जुनून – कृषि और खेती के बारे में सोचने में अधिक समय देना शुरू कर दिया.
किराना बताती है कि उनके इस फैसले का उनके घरवालों ने मजाक भी उड़ाया. उनके पति ने यह भी पूछा कि एक वकील किसान बनने के लिए क्या करेगा. पर किराना ने हार नहीं मानी और ऑनलाइन जैस्मीन की खेती के बारे में जानकारी लेती रही. किराना ने बताया कि मंगलुरु में सह्याद्री नर्सरी के मालिक राजेश ने ही किराना को उस पौधे की पहचान करने में मदद की जिसे वह उगा सकती थी. उस वक्त लॉकडाउन चल रहा था इसलिए चमेली के फूल भी आसानी से मिल गये. इसके अलावा, यह देखते हुए कि यह चमेली का मौसम किराना ने नर्सरी में करीब 90 पौधे खरीद लिए जिसकी लागत 3,150 रुपए आयी. अब उन्हें पौधे लगाने के लिए गमले की जरूरत थी. तब उन्होंने देखा कि एक स्ट्रीट वेंडर अपने 100 बर्तन बेचना चाहता था, क्योकि उसे लॉकडाउन में अपने घर जाना था. उस समय किराना ने उससे 65 रुपये की दर से सभी बर्तन खरीदे और उन्हें कार में लोड कर दिया.
इसके बाद उन्होंने अगले तीन दिन तक चमेली के पौधे लगाये. नर्सरी के मालिक से बात करके उन्होंने पौधे लगाने के बारे में भी कई जानकारी हासिल की थी. इसके बाद किराना और उनके पति ने अच्छे तरीके से फूलों की देखभाल की जब तीन महीने बाद पौधे फूल देने लगे तब और बेहतर की उम्मीद में उन्होंने फूल को नहीं तोड़ा. किराना बताती है कि फूलों की सुंगध ही हमे यह बताती है कि यह कितनी ताजी है. किराना ने छह महीने तक फूल तोड़ने से परहेज किया. फिर पौधे झाड़ीदार हो गये. जब उन्होंने पहली बार फूल तोड़ा तो काफी संख्या में फूल निकले.
किराना बताती है कि उन्होंने इस काम के लिए 12000 रुपए का निवेश किया था. फूलों की बिक्री करके अब तक वो 85000 रुपए कमा चुकी है. वो बतातीं है कि उनके लिए उर्रवरक खरीदना गहने खरीदने जितना ही सुकुन देता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-रक्षाबंधन के दिन सिटी सर्विस की बसों में फ्री में यात्रा कर सकेंगी महिलाएं
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