जर्काता. की सेना न आखिरकार महिला कैडेट्स के लिए लंबे समय से चले आ रहे वर्जिनिटी टेस्ट को खत्म कर दिया है. पिछले दिनों खुद चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ की तरफ से इस बात का ऐलान किया गया. इंडोनशिया के सुरक्षाबलों में इस अमानवीय कृत्य के बारे में दुनिया को साल 2014 में पहली बार पता लगा था. तब ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस प्रैक्टिस का खुलासा अपनी एक रिपोर्ट में किया था.
1965 से जारी थी परंपरा
ह्यूमन राइट्स वॉच की तरफ से हुई एक जांच के मुताबिक वर्जिनिटी टेस्ट का चलन महिला कैडेट्स पर साल 1965 में शुरू हुआ था. राष्ट्रीय पुलिस सिद्धांतों के विपरीत इसे मंजूरी मिली थी. पुलिस सिद्धांतों के मुताबिक पुरुष हो या महिला दोनों का रिक्रूटमेंट बिना किसी भेदभाव के और मानवीय आधारों पर ही होना चाहिए.
इसी साल इंडोनेशिया की राजनीति, कानून और सुरक्षा मामलों की को-ऑर्डिनेटिंग मिनिस्टर टेडजो एधी ने मीडिया से कहा था कि इस तरह के टेस्ट महिलाओं के लिए जरूरी हैं और मिलिट्री रिक्रूटमेंट भी इनकी जरूरत है. न सिर्फ महिला कैडेट्स के लिए ये टेस्ट जरूरी थी बल्कि वो महिला जो किसी सैनिक से शादी करने वाली होती थी, उसे भी वर्जिनिटी टेस्ट से गुजरना पड़ता था. राष्ट्रीय पुलिस भर्ती में इस प्रैक्टिस पर साल 2015 में ही रोक लग दी थी मगर मिलिट्री में ये जारी थी.
क्या होता है वर्जिनिटी टेस्ट
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के मुताबिक वर्जिनिटी टेस्ट को हाइमन, टू फिंगर या फिर वजाइनल एग्जामिनेशन के तौर पर भी जानते हैं. ये दरअसल एक तरह का निरीक्षण होता है जिसमें महिला के जननांगों को परखा जाता था कि कहीं वो महिला या फिर कोई लड़की एक्टिव सेक्स में शामिल तो नहीं रही है. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट ने वर्जिनिटी टेस्ट को वो प्रैक्टिस करार दिया है जिसकी वजह से लिंग आधारित हिंसा को बढ़ावा मिलता है.
इंडोनेशियन मिलिट्री कमांडर्स की पिछले माह हुई एक टेलीकॉन्फ्रेंसिंग में आर्मी चीफ जनरल अंदिका पेरकासा ने पहली बार इस तरफ इशारा किया था कि जल्द ही इस प्रैक्टिस को खत्म कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा था कि महिला कैडेट्स की रिक्रूटमेंट के लिए एग्जामिनेशन बिल्कुल वैसा ही होना चाहिए जैसा कि पुरुषों के लिए होता है. उन्होंने कहा था कि अभ्यर्थियों की भर्ती सिर्फ उनकी शारीरिक क्षमता के आधार पर होनी चाहिए.
उन्होंने आर्मी यूनिट्स को भी निर्देश दिए थे कि वो सिर्फ उन आर्मी ऑफिसर्स की प्रशासनिक जांच करें जिसकी शादी होने वाली है. किसी भी ऑफिसर्स की भावी पत्नी को वर्जिनिटी टेस्ट से गुजरने की जरूरत नहीं है.
WHO के मुताबिक वर्जिनिटी टेस्टिंग पर एक के बाद एक हुए कुछ परीक्षणों में पता लगता है कि इस परीक्षण की कोई भी वैज्ञानिक योग्यता या फिर मेडिकल आधार नहीं है. स्टडी में माना गया है कि इस तरह कोई भी टेस्ट मौजूद नहीं है वजाइन इंटरकोर्स की हिस्ट्री के बारे में बता सके.
स्टडी में इस तरह के टेस्ट्स को खतरनाक बताया है. इसमें यह भी कहा गया है कि इस तरह के टेस्ट्स के ऐसे खतरनाक नतीजे हो सकते हैं जिनमें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर महिला को खासा नुकसान हो सकता है.
रिपोर्ट में वर्जिनिटी को सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक वजहों से जुड़ा हुआ बताया गया है जिसका किसी भी वैज्ञानिक या मेडिकल आधार से कोई लेना-देना नहीं है. साल 2015 में इंडानेशिया की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री नीला मोलोएक ने खुलकर इस टेस्ट का विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि मिलिट्री और पुलिस फोर्स में इस तरह का टेस्ट सुरक्षाबलों की योग्यता, जरूरतों और उनकी क्षमता पर सवाल खड़े करता है. यह मसला यूरोपियन यूनियन तक पहुंचा था जिसने इस प्रैक्टिस को पक्षपाती और असम्मानजनक करार दिया था.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में आज लखनऊ में तिरंगा यात्रा निकालेगी AAP
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