नवीन कुमार, मुंबई. महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी मिलकर जिस मुश्तैदी के साथ सरकार चला रही है. उसके बढ़ते प्रभाव की वजह से राज्य में भाजपा के जनाधार को काफी नुकसान पहुंच रहा है. सत्ता सुख से वंचित भाजपा बेहद परेशान है. उसकी बौखलाहट भी कोरोना महामारी के दौरान तरह-तरह के आंदोलनों से झलक रही है. अब उसकी दुखती रग पर भाजपा के ही सहयोगी दल रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने जमकर चोट ही नहीं किया है बल्कि उसे एहसास कराने की भी कवायद की है कि उसे (भाजपा) अपने दम पर सत्ता में वापसी का सपना नहीं देखना चाहिए. बीते दिनों नासिक में अपने कार्यकर्ताओँ के सामने आठवले कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी के गठबंधन वाली महाविकास आघाड़ी सरकार की वजह से राज्य में बदलते राजनीतिक समीकरण की हकीकत बयां करने से खुद को रोक नहीं पाए. उन्होंने कहा, 'महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी ने राज्य में राजनीतिक स्थिति बदल दी है जिससे अब कोई भी पार्टी अपने दम पर राज्य में सत्ता स्थापित नहीं कर सकती है. दो या तीन पार्टियों के गठबंधन करने से ही सरकार गठित हो सकती है.' भाजपा के लिए आठवले का यह आंकलन आईना दिखाने के समान है. क्योंकि, महाराष्ट्र के पिछले कुछ सालों के राजनीतिक इतिहास पर भी नजर डालें तो यहां शिवसेना-भाजपा की सरकार रही है और कांग्रेस-एनसीपी ने भी गठबंधन करके बेहतर ढ़ंग से कई सालों तक सरकार चलाई है. बावजूद इसके भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने के सपना देख रही है. आठवले ने यह भी कहा है कि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए महाविकास आघाड़ी में शामिल पार्टियां आगामी चुनाव एकजुट होकर लड़ने की बात कर रही है.
आठवले का सच बयां करना भले ही भाजपा को नागवार गुजरे. पर भाजपा के अंदर कई वफादार नेताओँ और कार्यकर्ताओं का गुस्सा जिस तरह से उबल रहा है उसे शायद पार्टी के आलाकमान भी महसूस कर रहे होंगे. इसीलिए पार्टी में बाहरियों को तरजीह दी जा रही है ताकि पार्टी के अंदर विरोधियों की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके. इस समय महाराष्ट्र में भाजपा के जिन केंद्रीय मंत्रियों ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली है उनमें से केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री डॉक्टर भागवत कराड और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को यात्रा के दौरान ही कार्यकर्ताओं के गुस्से का शिकार होना पड़ा है. डॉ. कराड को पार्टी ने राज्य की ओबीसी नेता पंकजा मुंडे की काट के तौर पर पेश किया है. डॉ. कराड की यात्रा में मुंडे तो दिखीं. मगर भाजपा के ओबीसी कार्यकर्ताओं ने डॉ. कराड के सामने अपने गुस्से का इजहार इस तरह से किया ताकि उनके गुस्से को आलाकमान नजरअंदाज न कर सके. दूसरी ओर, वसई-विरार में विधायक हितेंद्र ठाकुर की आवभगत में यात्रा निकालने पर केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के खिलाफ वहां के भाजपा जिलाध्यक्ष राजन नाईक ने खुलकर मोर्चा खोला. नाईक ने दलील दी कि ठाकुर के खिलाफ भाजपा सहित विपक्ष की पार्टियां हैं. लेकिन राणे का ठाकुर के साथ गलबहियां करने से वसई-विरार महापालिका के चुनाव में भाजपा को भारी हार का सामना करना पड़ेगा. राणे और डॉ. कराड के अलावा केंद्रीय मंत्री डॉ. भारती पवार और कपिल पाटील की यात्राओं में भी कोविड की वजह से लगी पाबंदियों की धज्जियां उड़ाई गई. पुलिस ने राणे की यात्राओं के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले दर्ज की है. लेकिन इन केंद्रीय मंत्रियों ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए सारे नियमों को तोड़कर जन आशीर्वाद यात्रा को चुनावी यात्रा में तब्दील कर दिया. इससे आम लोग नाराज हैं. क्योंकि, आम लोग कोरोना से निजात पाना चाहते हैं. वहीं, महाविकास आघाड़ी सरकार राज्य को कोरोना से मुक्त कराने की लड़ाई लड़ रही है. बावजूद इसके केंद्रीय मंत्री जन आशीर्वाद यात्रा निकाल कर राज्य को कोरोना की तीसरी लहर में ढ़केलने की कोशिश की है. राज्य के अल्पसंख्यक मंत्री नवाब मलिक ने भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों की इस राजनीतिक यात्रा की आलोचना करते हुए कहा है कि भाजपा को राज्य की जनता की जिंदगी की चिंता नहीं है. उसने सिर्फ सत्ता की लालच में आम जनता की जिंदगी को दांव पर लगाकर जन आशीर्वाद यात्रा निकाली है.
इधर राजनीतिक पंडितों का मानना है कि प्रदेश भाजपा में अंदरूनी कलह बहुत ज्यादा है. आंदोलनों और रैलियों में भीड़ वास्तविक नहीं हैं. पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील राज्य में पार्टी के अंदर अलग-अलग ध्रुव के नेता माने जाते हैं. इससे पार्टी में एकजुटता की कमी दिख रही है तो पार्टी में दरकिनार किए गए नेता अपनी अलग रणनीति पर काम कर रहे हैं. इस वजह से पार्टी जमीनी स्तर पर कमजोर पड़ रही है. राज्य में आरक्षण का भी बड़ा मुद्दा है. भाजपा की गलती की वजह से राज्य में मराठा और ओबीसी के आरक्षण में कानूनी पेंच फंस गया है जिससे मराठा और ओबीसी के लोग भाजपा के खिलाफ खड़े दिख रहे हैं. मुंबई महापालिका सहित कई और महापालिकाओं के चुनाव होने वाले हैं. पर पार्टी में गुटबाजी से कई नगरसेवकों को लगने लगा है कि अगले चुनाव में उनका पत्ता कटने वाला है जिससे उन्होंने अपने वार्ड में मन से काम ही नहीं किए हैं और इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है. इसलिए भाजपा ने अपने नगरसेवकों के कामकाज की गुप्त रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा मुंबई महापालिका में अपने 82 नगरसेवकों में से 40 फीसदी नगरसेवकों को टिकट नहीं देने पर विचार कर रही है. भाजपा को यह डर सता रही है कि अगर सारे पुराने नगरसवेकों को फिर से टिकट दिया गया तो देश की सबसे अमीर महापालिका पर काबिज होने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा. वैसे, भाजपा के लिए यह सपना पूरा करना कठिन है. क्योंकि, शिवसेना को एनसीपी के अलावा भाजपा विरोधी पार्टियों का साथ मिलने वाला है. इधर प्रदेश की कमजोर भाजपा को मजबूत करने के लिए केंद्र के इशारे पर केंद्रीय एजंसियों का सहयोग मिल रहा है तो राज्य के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी भी राजभवन में भाजपा के नेताओँ की शिकायतें सुनते हैं और कुछ पत्र भी जारी कर देते हैं. लेकिन राज्य सरकार के साथ राज्यपाल का जो रवैया है वो विपक्ष की तरह दिखता है. राज्यपाल के पास 12 नामांकित विधायकों की सूची अब तक धूल चाट रही है. इसे राज्य सरकार ने कई महीने पहले अपनी अनुशंसा के साथ राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा था. राज्यपाल ने इस पर अब तक दस्तखत नहीं किए हैं. इससे भाजपा खुश रहती है. मगर महाविकास आघाड़ी सरकार वो काम करने से नहीं चूक रही है जिससे आम जनता को फायदा हो.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अभिमनोजः क्या महाराष्ट्र में नया सियासी समीकरण बनेगा?
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