जन्म कुंडली के अनुसार जानें कुछ प्रमुख राजयोग के बारे में। ..

जन्म कुंडली के अनुसार जानें कुछ प्रमुख राजयोग के बारे में। ..

प्रेषित समय :21:34:53 PM / Wed, Sep 8th, 2021

किसी राजयोग का फ़लित कहने से पूर्व एक ज्योतिषी के लिए जातक की जन्मपत्रिका के अन्य बुरे व अशुभ योगों का आनुपातिक अध्ययन करना आवश्यक है. केवल एक राजयोग का जन्मपत्रिका में सृजन हो जाने मात्र से जीवन सानंद व्यतीत होगा ऐसा नहीं कहा जा सकता जब तक कि जन्मपत्रिका के अन्य विविध योगों का अध्ययन ना कर लिया जाए.

राजयोग का नाम सुनते ही लोगों के में मस्तिष्क में किसी बड़े पद का ख़्याल आ जाता है. वे सोचने लगते हैं कि राजयोग यदि जन्मपत्रिका में है तो वे निश्चित ही कोई बड़े राजनेता, उद्योगपति या नौकरशाह बनेंगे. उन्हें अकूत धन-संपदा और सामाजिक प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी. लेकिन वास्तव में यह ज्योतिषीय राजयोग के मानक नहीं है.

मेरी ज्योतिषीय राजयोग परिकल्पना में राजयोग का अर्थ है वह जीवन जिसमें किसी भी प्रकार की असंतुष्टि ना हो, वह व्यक्ति जो अपने आप में पूर्ण संतुष्ट व आनंदित हो जैसे बुद्ध, महावीर.

ऐसा राजयोग बहुत कम फ़लित होता है. बुद्ध और महावीर राजपुत्र थे. बुद्ध की जन्मपत्रिका में राजयोग था लेकिन बुद्ध का राजयोग बड़े दूसरे प्रकार से फ़लित हुआ. सांसारिक अर्थों में तो बुद्ध भिक्षु थे लेकिन ऐसे अप्रतिम भिक्षु जिनके आगे सम्राट अपने मस्तक झुकाते थे. सामान्य जनमानस की राजयोग की परिभाषा अलग होती है लेकिन ज्योतिषीय राजयोग की बिल्कुल अलग.

आइए कुछ प्रमुख राजयोगों के बारे में जानते हैं:-

(1) विपरीत राजयोग--
जब छठे, आठवें, बारहवें घरों के स्वामी छठे, आठवे, बारहवें भाव में हो अथवा इन भावों में अपनी राशि में स्थित हों और ये ग्रह केवल परस्पर ही युत व दृष्ट हो, किसी शुभ ग्रह व शुभ भावों के स्वामी से युत अथवा दृष्ट ना हों तो 'विपरीत राजयोग' का निर्माण होता है. इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य धनी, यशस्वी व उच्च पदाधिकारी होता है.

(2 )नीचभंग राजयोग:-
जन्म कुण्डली में जो ग्रह नीच राशि में स्थित है उस नीच राशि का स्वामी अथवा उस राशि का स्वामी जिसमें वह नीच ग्रह उच्च का होता है, यदि लग्न से अथवा चंद्र से केन्द्र में स्थित हो तो 'नीचभंग राजयोग' का निर्माण होता है. इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य राजाधिपति व धनवान होता है.

अन्य राजयोग:-

(1) जब तीन या तीन से अधिक ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में होते हुए केन्द्र में स्थित हों.

(2-) जब कोई ग्रह नीच राशि में स्थित होकर वक्री और शुभ स्थान में स्थित हो.

(3) तीन या चार ग्रहों को दिग्बल प्राप्त हो.

(4) चंद्र केन्द्र में स्थित हो और गुरु की उस पर दृष्टि हो.

(5) नवमेश व दशमेश का राशि परिवर्तन हो.

(6) नवमेश नवम में व दशमेश दशम में हो.

(7) नवमेश व दशमेश नवम में या दशम में हो.

किसी भी प्रकार की समस्या समाधान के लिए आचार्य पं. श्रीकान्त पटैरिया (ज्योतिष विशेषज्ञ) जी से सीधे संपर्क करें -9131366453

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

जब शनि और सूर्य कुंडली में एक साथ रहे तो क्या प्रभाव होगा!

कुंडली के ग्रह बताते हैं कब होगा आपका भाग्योदय!

जन्मकुंडली में विदेश यात्रा के योग

कुंडली में शनि से बनने वाले विभिन्न ग्रह योग

कुंडली के अनुसार पुनर्विवाह या दूसरा विवाह सफल होगा या नहीं!

जन्म कुंडली में यदि मंगल उच्च का होता है तो व्यक्ति को प्रसिद्धि प्रदान करता

Leave a Reply