गुजरात मॉडल अकस्मात! इसीलिए अच्छे दिनों का राजीनामा?

गुजरात मॉडल अकस्मात! इसीलिए अच्छे दिनों का राजीनामा?

प्रेषित समय :22:09:29 PM / Wed, Sep 15th, 2021

प्रदीप द्विवेदी (खबरंदाजी). यदि हिंदी जानने वालों को अकस्मात और राजीनामा का गुजराती अर्थ पता होता तो साहेब से कोई शिकायत नहीं होती?

गुजरात मॉडल अकस्मात, हिंदी में बोले तो अचानक नहीं आया, बल्कि गुजराती में अकस्मात का मतलब है- दुर्घटना!

लिहाजा, देश में गुजरात मॉडल दुर्घटना हुई है?

राजीनामा हिंदी में भले ही सहमति का संदेश देता हो, लेकिन गुजराती में तो इसका मतलब है- इस्तीफा, इसलिए अच्छे दिनों का राजीनामा, अर्थात अच्छे दिनों का त्याग?

सियासी सच्चाई तो यही है कि गुजरात मॉडल जैसा कुछ है ही नहीं? यह तो ब्रांडिंगवालो का सियासी हंगामा भर है!

वैसे भी, किसी भी राज्य का मॉडल पूरे देश के लिए आदर्श हो ही नहीं सकता है?

देश तो क्या, कभी-कभी तो एक राज्य में भी एक जैसा असरदार नहीं हो सकता है!

दक्षिण राजस्थान के विकास का मॉडल, पश्चिम राजस्थान के किस काम का? दक्षिण राजस्थान में खेती-सिंचाई पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है, जबकि पश्चिम राजस्थान में पशुपालन अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण है!

पंजाब मॉडल को सक्सेस करने में बिहारियों का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन बिहार में पंजाब मॉडल किस काम का, क्यों?

क्योंकि, हर राज्य की प्राकृतिक, भौगोलिक परिस्थितियां अलग-अलग हैं, वहां रहने वाले लोगों की सोच, जरूरतें, आदतें, आर्थिक, शारीरिक क्षमताएं अलग-अलग हैं, लिहाजा एक राज्य का सफल मॉडल, जरूरी नहीं है कि पूरे देश में सफल हो!

यही वजह है कि नए कृषि कानून भी सभी के लिए उपयोगी नहीं हैं?

टीवी पर प्रवचन देना आसान है, लेकिन जमीनी हकीकत बहुत अलग होती है?

अस्सी के दशक तक दक्षिण राजस्थान में गंदे पानी से पनपने वाले नारू रोग का बड़ा खौफ था, नवभारत टाइम्स के जमाने में डूंगरपुर के एक गांव में जब मैंने ग्रामीणों से पूछा कि आप पानी छान कर क्यों नहीं पीते हो? तो, जवाब मिला- छान कर ही काम में लेते हैं, पर पहले पानी तो दो!

ठीक ऐसा ही जवाब तब मिला जब मैंने किसी से पूछा कि लेन-देन के लिए एटीएम का उपयोग क्यों नहीं करते हो? उसने कहा- खाते में पैसे तो हों!

सोचने की बात है, इंदौर के पोहे मुंबई में कितने चलेंगे? या मुंबई का वड़ा पाव जयपुर में कितना चलेगा? या पाली का गुलाब हलवा, अलवर का मिल्क केक चेन्नई में कितना बिकेगा?

हर जगह की पसंद अलग-अलग है, जरूरतें अलग-अलग हैं, इसलिए कोई मॉडल देखने-सुनने में तो अच्छा लग सकता है, लेकिन हर जगह सफल हो, यह जरूरी नहीं है!

सियासी सयानों का मानना है कि चीन से कैसे निपटना है? इसका तो गुजरात मॉडल भी उपलब्ध नहीं है, क्या करें? झूला झुलाए या लाल आंख दिखाएं! या फिर.... 

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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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