काबुल. संयुक्त राष्ट्र में तालिबान को लेकर पाकिस्तान और चीन का प्लान फेल हो गया है. संयुक्त राष्ट्र ने तालिबानी सरकार को महासभा में संबोधित पर कोई फैसला नहीं दिया है. अगर यूएन के फोरम पर तालिबान को अपनी बात रखने का मौका दिया जाता है, तो इसका सीधा ये मतलब निकाला जाता कि तालिबान को पूरी दुनिया ने मान्यता दे दी है और पश्चिमी देश इस फैसले के खिलाफ जा सकते हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि तालिबान को यूएन जनरल असेंबली में शामिल कराने की बात पर पाकिस्तान और चीन की चाल नाकाम हो चुकी है.
यूएन में अफगानिस्तान के राजनयिक मिशन पर अपदस्थ अशरफ गनी सरकार की प्रतिनिधि को ही मान्यता मिली हुई है. इतना ही नहीं, अफगान दूत ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सेशन में हिस्सा भी लिया था. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक, अभी अफगान सरकार के प्रतिनिधि तब तक संयुक्त राष्ट्र में मिशन पर कब्जा किए रहेंगे, जब तक परिचय पत्र देने वाली यूएन कमेटी इस पर फैसला नहीं ले लेती है.
15 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को वर्तमान अफगान दूत गुलाम इसाकजई का पत्र मिला है, इसमें उन्होंने जोर देकर कहा है कि वह और उनकी टीम के अन्य सदस्य महासभा की बैठक में अफगानिस्तान का प्रतिनिधि करेंगे. इसके बाद 20 सितंबर को तालिबान के नियंत्रण वाले अफगान विदेश मंत्रालय ने भी एक पत्र लिखकर महासचिव से महासभा बैठक में हिस्सा लेने के लिए अनुमति मांगी. अब परिचय पत्र देने वाली कमिटी यह फैसला करेगी कि किसे संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व देना है.
अफगानिस्तान को आगामी 27 सितंबर को महासभा में संबोधित करना है और इस बात की कोई भी उम्मीद नहीं है कि तब तक कमेटी तालिबान को मान्यता दे दे. वहीं, भारत लगातार मांग कर रहा है कि अफगानिस्तान की पूर्ववर्ती सरकार के प्रतिनिधि को ही देश का प्रतिनिधित्व 27 सितंबर को करने दिया जाए.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-तालिबानी ने ट्रक से निकालकर फाड़ा पाकिस्तानी झंडा, फिर दी धमकी
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