शनि अपनी महादशा व अंतर्दशा में धन देगा तो निश्चित रूप से बीमारी भी देगा

शनि अपनी महादशा व अंतर्दशा में धन देगा तो निश्चित रूप से बीमारी भी देगा

प्रेषित समय :21:31:19 PM / Wed, Nov 10th, 2021

*शनि में शनि*
 शनि ब्रह्मांड में बुराइयों का कारक ग्रह होता है. यह छठे, आठवें, बारहवें भाव का कारक ग्रह होता है और यह तीनों स्थान कर्ज मृत्यु व खर्च के होते हैं.  इसलिए शनि अपनी महादशा अंतर्दशा में रोग , चोट, कर्ज, बीमारी मानहानि, मृत्यु, खर्चे, मुकदमा जैसी बाधाये देता है. शनि की अंतर्दशा में गठिया बाय का रोग, नर्वस सिस्टम का खराब होना, सूजन की बीमारी, कैंसर, अस्थमा, शुगर, ब्लड प्रेशर, हड्डियों की टीबी व ब्रेन हेमरेज ऐसी बीमारियां होती है. यह ग्रह अपनी  महादशा व अंतर्दशा में अगर धन देगा  तो निश्चित रूप से बीमारी भी देगा. अगर शनि लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम,नवम व दशम स्थान का स्वामी होकर इन्हीं स्थानों में बैठा है तो धन वृद्धि होने के योग बनेंगे तथा बीमारियों का सामना भी करना पड़ेगा , इसलिए शनि की पूजा अवश्य करनी चाहिए . यदि शनि छठे, आठवें या बारहवें भाव में नीच या अस्त होकर बैठा हो  तो बीमारियों के साथ साथ धन का नुकसान होगा व द्वितीयेश, सप्तमेश होने पर शनि की साढ़ेसाती में मृत्यु तुल्य कष्ट देगा.

शनि मैं बुध

शनि व बुध आपस में मित्र गए हैं. लेकिन दोनों नपुंसक ग्रह है . शनि धीमी गति का ग्रह   है व बुध तीव्र गति का ग्रह होता है .बुध की अंतर्दशा में धन वृद्धि के योग तीव्र गति से बनेंगे . बुध कुंडली में जीन भाव का स्वामी होगा उन्हीं भावों से संबंधित फल शीघ्र प्राप्त होंगे. अगर बुध द्वितीय भाव का स्वामी होगा तो धन तुरंत आना शुरू हो जाएगा, यदि बुध नवम भाव का स्वामी होगा तो भाग्योदय तुरंत हो जाएगा, पढ़ाई करने के तुरंत बाद नौकरी मिल जाएगी. बुध की अंतर्दशा में पढ़ाई के क्षेत्र में लाभ मिलता है अगर बुध लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम स्थान का स्वामी होकर इन्हीं स्थानों में बैठा है तो धन वृद्धि होने के योग बनेंगे व लेखन कार्य, समाचार पत्र, न्यूज़ चैनल, पत्रकारिता, दलाली, शेयर बाजार, कंसलटेंसी व ज्योतिष के कार्य से धन वृद्धि होगी. यदि शनि छठे, आठवें, या बारहवें भाव में नीच व अस्त होकर बैठा हो तो नर्वस सिस्टम, चर्म रोग व कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों के साथ-साथ धन का नुकसान होगा.

शनि में केतु 

शनि व केतु आपस में दोनों मित्र ग्रह है लेकिन यह दोनों मित्र ग्रह अपनी महादशा अंतर्दशा में  कभी भला नहीं करते हैं. शनि बीमारियां देता है तो केतु ऑपरेशन करवा देता है या भयंकर दुर्घटना होने की संभावना रहती है. अगर केतु शुभ प्रभाव में हो तो धन वृद्धि के योग बनते हैं. जैसे केतु द्वितीय भाव में गुरु, बुध व शुक्र के साथ स्वराशि मैं बैठा हो तो यह अपार धन देता है . अगर केतु छठे, आठवें या बारहवें स्थान में बैठा हो तो अपने अंतर्दशा में दुर्घटना में मृत्यु देता है.

शनि में शुक्र

शनि व शुक्र आपस में मित्र ग्रह है. शनि बुराइयों का कारक ग्रह है वह शुक्र अच्छाइयों देता है. अगर शुक्र के ऊपर शुभ प्रभाव  हो तो शुभ कार्यों से धन की प्राप्ति होती है. जैसे कपड़े का व्यापार, सोने-चांदी आभूषण व्यापार, पेंट की दुकान, टेंट हाउस, भवन निर्माण, सजावट के कार्य, होटल व रेस्टोरेंट, एयरलाइन, संगीत, मॉडलिंग, चित्रकारिता, न्यूज रीडिंग व फिल्म उद्योग. अगर शुक्र के ऊपर अशुभ ग्रह शनि, राहु, केतु, मंगल आदि का प्रभाव हो तो व्यक्ति अनैतिक कार्यों से धन कमाता है. जैसी लड़कियों की दलाली करना, वेश्यावृत्ति के अड्डे चलाना, बार बालाओं से डांस कराना, डीजे सेट लड़कियों को नचाना, विवाह शादियों के उत्सव पर स्वागत के लिए उनका इस्तेमाल करना, अश्लील फिल्में  बनाना, जुए के अड्डे चलाना,  चरस, अफीम जैसे कार्यों से धन कमाते हैं.

शनि में सूर्य

शनि और सूर्य आपस में परम शत्रु है अतः शनि की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा में धन का नुकसान अवश्य होता है. मुकदमे होने की संभावना रहती है. शरीर में व्याधिया उत्पन्न हो जाती है. अगर कुंडली में सूर्य और शनि उच्च व स्वराशि बैठे हैं और दोनों ही राजयोग कारक है तो ऐसी स्थिति में धन लाभ अवश्य होगा लेकिन मानसिक तनाव अवश्य बना रहेगा.  इस अंतर्दशा में पिता-पुत्र में तनाव रहेगा तथा परिवार में झगड़े बनेंगे . अगर सूर्य लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम स्थान का स्वामी होकर इन्हीं स्थान में बैठा है तो ऐसी स्थिति में धन वृद्धि करेगा वह मान सम्मान बढ़ेगा. अगर सूर्य दितीयेश व सप्तमेश होकर निर्बल हो तो मृत्यु भी दे देता है.

शनि में चंद्र

शनि और चंद्र एक दूसरे के आपस में सम है इसलिए चंद्र की अंतर्दशा में धन की स्थिति मध्यम रहेगी.  अगर चंद्र लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम नवम स्थान का स्वामी होकर इन्हीं स्थानों में बैठा है तो राज योगकारक होकर धन वृद्धि करेगा.  ऐसी स्थिति में चलाएंमान कारोबार, पेट्रोल पंप, गैस कारोबार, शराब के ठेके, केमिकल फैक्ट्री, पत्थर में सीमेंट उद्योग से लाभ मिलेगा . इसके अलावा जमीन में पैदा होने वाले खनिज लवण व सब्जियों के कारोबार से भी लाभ होगा.  शनि यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में नीच व् अस्त होकर बैठा हो तो बीमारियों के साथ साथ धन का नुकसान होगा इसके अलावा मन में भय व  भ्रम की स्थिति रहेगी, मानसिक असंतुलन रहेगा.

शनि में मंगल

शनि और मंगल आपस में शत्रु ग्रह होते हैं इसलिए इस दशा में आदमी को कष्ट के साथ-साथ धन हानि भी होती है सिर व टांगों में चोट लगना, ऑपरेशन होना, मान सम्मान में कमी होना, लड़ाई झगड़े होने या मुकदमा होने जैसी बाधाएं घेरकर रखती है. अगर मंगल लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम स्थान का स्वामी होकर इन्हीं स्थानों बैठा है तो ऐसी स्थिति में धन वृद्धि करेगा तथा मान सम्मान में वृद्धि होगी . लेकिन परिवार में तनाव अफसरों के साथ तालमेल ना बैठना व पत्नी के साथ अनबन रहेगी. अगर मंगल छठे, आठवें या बारहवें भाव में नीच व अस्त होकर बैठा हो तो बीमारियों के साथ-साथ धन का नुकसान करेगा व दुर्घटना की संभावना हमेशा बनी रहेगी . अगर मंगल द्वितीयश जो सप्तमेश होकर पाप प्रभाव में हो तो मृत्यु दे देता है . अगर कन्या या मिथुन लग्न का मंगल हो तो पति पत्नी में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है.

शनि में राहु

शनि व राहु आपस मैं मित्र ग्रह है, लेकिन शनि की महादशा में राहु की अंतर्दशा में धन हानि, शारीरिक बीमारियां होती है. मन में भय रहता है .शुगर, ब्लड प्रेशर, टांगों में दर्द, गठिया बाय व व्यक्ति लंबी बीमारियों का शिकार हो जाता है .अगर शनि शुभ ग्रहों के साथ त्रिकोण स्थान में बैठा हो और शनि लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम स्थान का स्वामी होकर इन्ही स्थान में बैठा हो तो ऐसी स्थिति में धन वृद्धि करेगा तथा मान सम्मान में वृद्धि होगी लेकिन राहु छठे, आठवें या बारहवें भाव में नीच व अस्त होकर बैठा हो तो बीमारियों के साथ-साथ धन का नुकसान होगा तथा व्यक्ति आलसी होता चला जाएगा.पढ़ाई में रुकावट होगी.

शनि में गुरु

शनि व गुरु आपस में सम मित्र है गुरु अंतरिक्ष व शनि हवा का कारक है. इसलिए शनि की महादशा में गुरु की अंतर्दशा में हवाई यात्रा के योग बनता है, विदेशों से लाभ होता है, उच्च शिक्षा के योग बनते हैं, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, वकील व पीएचडी जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त होती है .अगर गुरु लग्न,चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम स्थान का स्वामी होकर इन्हीं स्थानों में बैठा हो तो धन वृद्धि होने के योग बनेंगे.  यदि गुरु छठे, आठवें या बारहवें भाव में नीच व अस्त हो कर बैठा हो तो बीमारियों के साथ-साथ धान का नुकसान होगा. गुरु की अंतर्दशा में राजनीतिक क्षेत्र में सफलता मिलती है चुनाव लड़ने का मौका मिलता है वह चुनाव में विजय प्राप्त होती है, धन वृद्धि के साथ-साथ मान-सम्मान की वृद्धि होती है, ज्योतिष सीखने का मौका मिलता है. यदि गुरु छठे, आठवें या बारहवें भाव में नीच व अस्त होकर बैठा है तो बीमारियों के साथ साथ धन का नुकसान होगा व अपमान का सामना करना पड़ता है. धार्मिक  गुरुओं व राजनेताओं के लिए ऐसी स्थिति खराब होती है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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