नई दिल्ली. शादी में दिए जाने वाले दहेज को भले ही सामाजिक बुराई के तौर पर देखा जाता हो लेकिन अभी भी शादियों में दहेज का चलन है. दहेज को लेकर ठोस निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा भारतीय विधि आयोग इस मुद्दे पर अपने सभी दृष्टिकोणों के तहत विचार करता है तो ये उचित हो सकता है. मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि दहेज एक सामाजिक बुराई है. शादी में दिए गए आभूषण और अन्य संपत्ति को कम से कम सात साल तक महिला के नाम पर रखने की प्रार्थना बहुत मान्य है और विधायिका इस पर बहुत गंभीरता से विचार करेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा याचिका में कई तरह की मांग की गई है पहला-दहेज निषेध अधिकारी को एक आरटीआई अधिकारी के समान नामित किए जाने की जरूरत है. अदालत ऐसा नहीं कर सकती है, आरटीआई अधिकारी को भी केंद्रीय कानून के तहत नामित किया गया है. दूसरा मुद्दा शादी पर दिए गए आभूषण और अन्य संपत्ति को कम से कम 7 साल तक महिला के नाम पर रखने की प्रार्थना का है. यह भी बहुत मान्य है और विधायिका इस पर बहुत गंभीरता से विचार करेगी.
तीसरी प्रार्थना विवाह पूर्व विवाह पाठ्यक्रम आयोग के गठन को लेकर है जिसमें कानूनी विशेषज्ञ, शिक्षाविद, मनोवैज्ञानिक, सेक्सॉलिजिस्ट शामिल हों, ताकि विवाह में प्रवेश करने से पहले व्यक्ति विवाह काउंसलिंग से गुजरें, और इस पाठ्यक्रम को विवाह पंजीकरण के लिए अनिवार्य बनाया जाए.
अधिवक्ता वीके बीजू ने कहा कि इसी तरह का एक मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ के समक्ष लंबित है, जिस पर 8 नवंबर को नोटिस जारी किया गया था और कोर्ट कम से कम तीसरी प्रार्थना की सीमा तक एक पाठ्यक्रम आयोग के संबंध में नोटिस जारी करने पर विचार कर सकता है. इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, कुछ भी नोटिस से बाहर नहीं होगा. कानून आयोग यह देख सकता है कि दहेज निषेध कानून को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए क्या सुझाव दिए जा सकते हैं, बजाय इसके कि हम सिर्फ नोटिस जारी करें.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली में सिद्धू का हल्ला बोल, टीचर्स के साथ धरने पर बैठे, केजरीवाल को दी चुनौती- दम है तो दें जवाब
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