नई दिल्ली. रियो से टोक्यो ओलिंपिक तक मीराबाई चानू के हार नहीं मानने के जज्बे ने 2021 में भारतीय भारोत्तोलन को ओलिंपिक रजत पदक के रूप में उसका सबसे यादगार तोहफा दिया. लेकिन प्रशासन और डोपिंग संबंधी बरसों से चली आ रही समस्याओं के कारण ओलिंपिक में इस खेल का भविष्य अनिश्चित नजर आ रहा है. साथ ही बाकी खिलाड़ियों के बड़े टूर्नामेंट में कामयाब होने का भी भारत को इंतजार है.
रियो ओलिंपिक में 2016 में एक बार सही से वेट उठाने में नाकाम रहने के बाद आंसुओं के साथ विदा लेने वाली मीराबाई ने टोक्यो में ऐतिहासिक रजत पदक जीतकर उन जख्मों पर मरहम लगाया. कोरोना महामारी के कारण ओलिंपिक एक साल टलने से उनकी तैयारियां बाधित हुई लेकिन इच्छाशक्ति पर असर नहीं पड़ा. क्लीन और जर्क में नये विश्व रिकॉर्ड के साथ उन्होंने अप्रैल में एशियाई चैम्पियनशिप में नये राष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ कांस्य पदक जीता. उन्होंने क्लीन और जर्क में 119 और स्नैच में 86 किलो वजन उठाया. मीराबाई के पास अब एशियाई खेलों को छोड़कर सारे बड़े टूर्नामेंटों में पदक है.
टोक्यो ओलिंपिक में पहले ही दिन उन्होंने भारत का खाता खोला तो सारे देश में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी. रियो खेलों से पहले ओलिंपिक रिंग के छल्लों के आकार के अपनी मां के दिये बूंदे पहनने हुए मीराबाई ने 49 किलोवर्ग में रजत पदक जीता. मणिपुर में इम्फाल से 20 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में गरीब परिवार में जन्मी मीराबाई का बचपन आसपास की पहाड़ियों से लकड़ियां काटकर या तालाब से कैन में पानी भरकर बीता. उन्होंने ओलिंपिक में 202 किलो वजन उठाकर इतिहास रचा. ओलिंपिक में भारोत्तोलन में सिडनी ओलंपिक 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी के कांस्य पदक के बाद भारत का यह पहला पदक था.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-अमेरिकी रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा, इस्लामिक स्टेट में भारतीय मूल के कितने आतंकी
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