जयपुर. कोरोना संकट ने देश और दुनिया की व्यवस्थाओं को हिला कर रख दिया हैं और प्रशासनिक कार्यालय, सरकारी व गैर सरकारी संस्थान, स्कूल से लेकर बाजार और घर परिवार के लोग प्रभावित हैं. हालात यह हैं कि कोरोना के नये अवतार ओमिक्रोन के आने के बाद फिर पाबन्दियों का दौर शुरू हो गया हैं. देश व प्रदेश के कार्यालय से लेकर स्कूल और बाजार व्यवस्थाओं में उथल पुथल हो रही है, 50 प्रतिशत कार्मिकों की उपस्थिति, बच्चों की छुट्टियां, बाजार की समय व्यवस्था का निर्धारण हो रहा हैं. वीकेण्ड कर्फ्यू से लेकर लॉकडाउन जैसे इंतजामों के अनुमान हो रहे हैं. नये केस की संख्या के आधार पर नई व्यवस्था व गाइडलाइन तय हो रही हैं. शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में अलग अलग व्यवस्था हो रही हैं. कोरोना की यह लहर क्या असर दिखायेगी व कहां तक परेशानियां बढेगी इसका अनुमान लगाकर विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं. आम आदमी से जुड़ी व्यवस्था व समस्याओं को लेकर हर स्तर पर चर्चाओं का दौर हैं और राहत के प्रयास करने की बात हो रही हैं परन्तु सरकारी विभागों में सबसे बड़े शिक्षा विभागीय अधिकारियों, शिक्षकों व कर्मियों के समक्ष जो समस्या आ रही हैं उसके बारे में कोई बात नहीं हो रही हैं.
राजस्थान में स्कूलों के खुलने और बंद होने की सूचनाओं के बीच 15 से 18 साल के बच्चों को वैक्सीनेशन करवाना, 18 साल से अधिक आयु के विद्यार्थियों के वोटर आईडी बनवाने का काम चल रहा हैं तो कोरोना संकट के दौर में गांवो मे व्यवस्था व निगरानी की जिम्मेदारी भी शिक्षा विभाग के प्रतिनिधियों को ही पूर्व में दी गई और फिर से मिलने वाली हैं. हालात यह हैं कि शादी ब्याह के आयोजन व अंतिम संस्कार के कार्यक्रमों से लेकर कई गतिविधियों में निगरानी का काम शिक्षा विभाग के लोगो को सौंपा जाता रहा हैं. स्कूलों की पढ़ाई का काम अब महत्वपूर्ण नहीं रहा हैं और शिक्षा विभाग के लोगो को दूसरे कामो की कई जिम्मेदारी देकर उनकी बहुमुखी प्रतिभा का सही उपयोग किया जा रहा हैं.बात करे स्कूलो की जिम्मेदारी की तो शिक्षकों को कक्षाओं में पढाई करवाने, पाठ्यक्रम पूर्ण करने तैयार करने, उपचारात्मक कक्षाओं का संचालन करने से लेकर पोषाहार वितरण, ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन, विद्यार्थियों से सम्पर्क करने, विभिन्न छात्र कल्याणकारी योजनाओं के कार्य समय पर करने, आये दिन होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओ में ड्यूटी से लेकर आधार-जनाधार से शाला रिकॉर्ड का मिलान करने, खेलकूद प्रतियोगिताओ व अन्य गतिविधियों में सहभागिता सुनिश्चित करने की व्यवस्था करने सहित कई काम सौंपे गये हैं.
इसके अलावा शिक्षकों को बीएलओ कार्य, विधालयो में होने वाले निर्माण कार्यो की विशेषज्ञ की तरह निगरानी करने, कोरोना संकट व्यवस्था के तहत गांव/शहर की निगरानी समिति के प्रबन्ध देखने की जिम्मेदारी दी गई हैं.समस्याओ पर ध्यान दे तो स्कूलों में बच्चे नियमित नहीं आ रहे हैं, ऑनलाइन कक्षाओ के लिये पर्याप्त संसाधन व सुविधायें नही हैं, कोरोना संकट के बाद से स्कूलो की अनियमितता के चलते सारी शैक्षिक व्यवस्थायें गडबडा गई हैं और इस परेशानी के चलते हुए बोर्ड कक्षाओ में बिना परीक्षा पास होने के ऐतिहासिक कार्य से कई तरह के अनुमान व संम्भावनाओ के द्वार खोल दिये हैं. कई अभिभावक अपने बच्चो को तो कई बच्चे वैक्सीन नही लगवाना चाहते हैं तो दूसरी और प्रशासन द्वारा सभी के टीकाकरण हेतु निर्देश दिये हैं. किसी बच्चे को टीका लगने के बाद कोई स्वास्थ्य समस्या हुई तो किसकी जिम्मेदारी होगी यह चिंता विधालय प्रशासन के लिये बनी हुई हैं. स्कूलों में मास्क अनिवार्यता, सुरक्षा बाबत सेनेटाइजर इंतजाम, सोशल डिस्टेंसिंग अनुसार कक्षा में विद्यार्थियों की बैठक व्यवस्था करने, कक्षा कक्ष व बाथरूम/टायलेट आदि की नियमित सफाई व सेनेटाइज करवाने जैसे कार्यो को पूरी तरह क्रियान्वित करने के प्रयास भी कई कारणों से सफल नहीं हो पा रहे हैं.कई शिक्षक संगठन रेसा पी, राष्ट्रीय आदि भी शिक्षकों की समस्याओं को लेकर सक्षम मंच पर अपनी बात पहुंचा कर राहत का आग्रह कर चुके हैं . एक वरिष्ठ शिक्षा सेवा अधिकारी व रेसा पी के पदाधिकारी का कहना हैं कि शिक्षा विभाग विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन का माध्यम बनता जा रहा हैं यह ठीक नहीं हैं. हर काम शिक्षा विभाग के लोगों पर थोपना उपयुक्त नहीं हैं.
दूसरे विभागों के जिम्मे का काम शिक्षा विभाग के माथे डालने के बाद सौ प्रतिशत उपलब्धि की उम्मीद के साथ काम पूरा नहीं होने पर कार्यवाही की चेतावनी, ऐसी व्यवस्था ठीक नहीं हैं. शहरी व ग्रामीण स्कूलों की व्यवस्था में अंतर भी ठीक नहीं हैं. मुख्यालय व शहरी क्षेत्रों की परिधि में स्थित विद्यालयों में शहरी क्षेत्रों के बच्चे ही अध्ययनरत हैं इस बात को ध्यान में रखकर निर्णय किये जाने की आवश्यकता हैं. कुल मिलाकर शिक्षा विभाग के कर्मियों के साथ शिक्षा विभाग के अधिकारी भी लगातार मिल रही नई नई जिम्मेदारियों से आहत हैं परन्तु विरोध या आपत्ति जैसी कोई बात सामने नहीं आ रही हैं तो इसका एकमात्र कारण विभाग के सभी प्रतिनिधियों चाहे वह अधिकारी हो या शिक्षक उनका का राष्ट्र, समाज व देश की भावी पीढ़ी के प्रति समर्पण व लगाव हैं जिसके चलते हर तरह के आदेशो को मानकर उनकी क्रियान्विति में अपना पूरा सहयोग कर रहे हैं. शिक्षा विभाग के अधिकारियों की सहनशीलता और शिक्षकों के समर्पण का समाज के हितार्थ सकारात्मक उपयोग भी आगे कितने दिन चलेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन दूसरे विभागों की जिम्मेदारी को लगातार शिक्षा विभाग पर डालने की सोच पर सरकार व प्रशासन को भी विचार करने की जरूरत हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-
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