बिश्वनाथ घोष का जियो बनारस कविता संग्रह में बनारस की जीवंतता

बिश्वनाथ घोष का जियो बनारस कविता संग्रह में बनारस की जीवंतता

प्रेषित समय :09:56:15 AM / Wed, Jan 19th, 2022

बनारस के गंगा-घाटों, गली-मोहल्लों में सांस लेते जीवन के विविध रंगों पर लेखक और पत्रकार बिश्वनाथ घोष का “जियो बनारस’ कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है. खालिस बनारसी अंदाज में रची गई हर कविता में पाठक स्वयं को पाएगा.

बनारस सिर्फ एक शहर नहीं है, बल्कि जीवन के विविध रंग और मनुष्य के अलग-अलग मनोभाव का प्रस्तोता भी है. इसलिए जब भी शहर पर आधारित किताबों की बात चलती है, तो सबसे पहला नाम बनारस का आता है. इस शहर की सभ्यता-संस्कृति, धर्म-अध्यात्म, आबोहवा, गंगा घाट, यहां की संकरी गलियों में पनपने वाले प्रेम पर इतनी किताबें लिखी जा चुकी हैं, जिनकी गिनती करना आसान नहीं है. हिंदी में सबसे अधिक लोकप्रियता पाई है कथाकार काशीनाथ सिंह के उपन्यास “काशी का अस्सी’ ने.

हाल में पत्रकार और लेखक बिश्वनाथ घोष ने “जियो बनारस’ नाम से एक कविता संग्रह रचा है. किताब की भूमिका में काशीनाथ सिंह बताते हैं कि “जियो बनारस’ सहज, सरस, सुबोध और आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई है. इस संग्रह की कविताएं इस तरह की हिंदी में लिखी गई हैं, जो बनारस की सड़कों, फुटपाथों और गलियों में बोली जाती हैं.

संग्रह की कविताएं बनारस के गंगा घाटों, गलियों और मोहल्लों की सैर कराती प्रतीत होती हैं. कविता की एक-एक पंक्ति में बनारसी संस्कृति झांकती है.

अपनी पहली ही कविता “बनारस में उद्देश्यहीन’ में कवि इस बात पर जोर देते हैं कि यदि शहर को जानना है, तो बिना किसी लक्ष्य और बिना किसी उद्देश्य के यहां भ्रमण कीजिए, तभी असली बनारस को जान पाएंगे, पहचान पाएंगे. यह सच है कि यात्रा ही हमारे अंदर विचारों को पनपाती हैं. कवि ने बनारस पर एक किताब लिखने के क्रम में यहां के ज्यादातर गली-कूचे को अपनी आंखों से देखा और उसे महसूस किया. तभी यह कविता “काशी बनाम बनारस’ की रचना हो पाई.

कविताओं के माध्यम से कवि बताते हैं कि उनकी मां की मृत्यु भी बनारस में हुई. मां के खोने पर जीवन और मृत्यु के सत्य को उन्होंने “मणिकर्णिका’ कविता के माध्यम से बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है.

बनारस जाने पर नदी घाटों, घाटों के किनारे ग्राहकों का इंतजार कर रहे नाविक, श्मशान, जलती चिताएं, उन चिताओं में जलता अपनों का देह, मंदिर, मंदिर से बजती घंटियां, शिवजी, शिव-भक्ति, पान-मसाले की दुकान, रिक्शेवाले से सभी दो-चार हो पाते हैं. इन सभी से रूबरू होने के बाद ज्यादातर लोगों के मन में भावनाएं उफान पर होती हैं. इन्हीं भावनाओं को कवि ने सहज-सरल भाषा में अलग-अलग कविता के रूप में ढाला है, जो पठनीय और संग्रहनीय है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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