शोध में दावा, एंटीबायोटिक दवाएं हो सकती हैं बेअसर, मामूली संक्रमण भी होंगे लाइलाज

शोध में दावा, एंटीबायोटिक दवाएं हो सकती हैं बेअसर, मामूली संक्रमण भी होंगे लाइलाज

प्रेषित समय :11:17:25 AM / Sat, Jan 22nd, 2022

नई दिल्ली. रोगाणुरोधी प्रतिरोध दुनिया भर में तेजी से फैल रहा है और इसकी तुलना अगली महामारी से भी की जा रही है. यह कुछ ऐसा हो रहा है जिसके बारे में बहुत से लोग जानते भी नहीं हैं. लैंसेट में प्रकाशित एक हालिया पेपर से पता चला है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोधी संक्रमणों के कारण 2019 में 12 लाख 70 हजार मौतें हुईं और यह 49 लाख 50 हजार लोगों की मौत से किसी न किसी तरह से जुड़ा था. यह उस वर्ष संयुक्त रूप से एचआईवी / एड्स और मलेरिया से मरने वालों की संख्या से भी अधिक है. रोगाणुरोधी प्रतिरोध तब होता है जब संक्रमण पैदा करने वाले रोगाणु (जैसे बैक्टीरिया, वायरस या कवक) उन्हें मारने के लिए तैयार की गई दवा का प्रतिरोध करने के लिए विकसित होते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि एंटीबायोटिक अब उस संक्रमण के इलाज के लिए काम नहीं करेगा.

नए निष्कर्ष से यह पता चलता है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध पिछले सबसे खराब स्थिति के अनुमानों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ रहा है जो सभी के लिए चिंता का विषय है. साधारण तथ्य यह है कि हमारे पास काम करने वाली एंटीबायोटिक दवाएं खत्म हो रही हैं. इसका मतलब यह हो सकता है कि रोजमर्रा के जीवाणु संक्रमण फिर से जीवन के लिए खतरा बन जाए. 1928 में पेनिसिलिन की खोज के बाद से रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक समस्या रहा है, एंटीबायोटिक दवाओं के हमारे निरंतर संपर्क ने बैक्टीरिया और अन्य रोगजनकों को शक्तिशाली प्रतिरोध विकसित करने में सक्षम बनाया है. कुछ मामलों में, ये रोगाणु कई अलग-अलग दवाओं के लिए भी प्रतिरोधी होते हैं. यह नवीनतम अध्ययन अब विश्व स्तर पर इस समस्या के वर्तमान पैमाने और इससे होने वाले नुकसान को दर्शाता है.

अध्ययन में दुनिया भर के 204 देशों को शामिल किया गया, जिसमें 47 करोड़ 10 लाख रोगियों के व्यक्तिगत रिकॉर्ड के डेटा को देखा गया. रोगाणुरोधी प्रतिरोध के कारण और उससे जुड़ी मौतों को देखकर, टीम तब प्रत्येक देश में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के प्रभाव का अनुमान लगाने में सक्षम थी. दुनिया भर में अनुमानत 12 लाख 70 हजार मौतों के लिए रोगाणुरोधी प्रतिरोध सीधे तौर पर जिम्मेदार था और अनुमानत: 49 लाख 50 हजार मौतों से जुड़ा था. इसकी तुलना में, एचआईवी/एड्स और मलेरिया के कारण उसी वर्ष क्रमशः 860,000 और 640,000 लोगों की मृत्यु होने का अनुमान लगाया गया था.

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि निम्न और मध्यम आय वाले देश रोगाणुरोधी प्रतिरोध से सबसे ज्यादा प्रभावित थे - हालांकि उच्च आय वाले देश भी खतरनाक रूप से इसके उच्च स्तर का सामना करते हैं. उन्होंने यह भी पाया कि अध्ययन किए गए 23 विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं में से केवल छह प्रकार के जीवाणुओं में दवा प्रतिरोध ने 35 लाख 70 हजार मौतों में योगदान दिया. रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध के परिणामस्वरूप होने वाली 70% मौतें एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध के कारण होती हैं जिन्हें अक्सर गंभीर संक्रमणों के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति माना जाता है. इनमें बीटा-लैक्टम और फ्लोरोक्विनोलोन शामिल थे, जो आमतौर पर कई संक्रमणों, जैसे कि मूत्र पथ, ऊपरी और निचले-श्वसन तंत्र और हड्डी और जोड़ों में संक्रमण के समय दी जाती हैं.

यह अध्ययन एक बहुत ही स्पष्ट संदेश पर प्रकाश डालता है कि वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध रोजमर्रा के जीवाणु संक्रमण को लाइलाज बना सकता है. कुछ अनुमानों के अनुसार, रोगाणुरोधी प्रतिरोध 2050 तक प्रति वर्ष एक करोड़ मौतों का कारण बन सकता है. यह दुनिया भर में मृत्यु के प्रमुख कारण के रूप में कैंसर से भी आगे निकल जाएगा. बैक्टीरिया कई तरह से रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं. सबसे पहले, बैक्टीरिया स्वाभाविक रूप से रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करते हैं. यह दुनिया भर में देखी जाने वाली सामान्य खींचतान का हिस्सा है. जैसे-जैसे हम मजबूत होते जाएंगे, बैक्टीरिया भी मजबूत होते जाएंगे.

यह बैक्टीरिया के साथ हमारे सह-विकास का हिस्सा है. वे हमारे मुकाबले तेजी से विकसित हो रहे हैं आंशिक रूप से क्योंकि वे तेजी से अपनी संख्या बढ़ाते हैं और हमारी तुलना में अधिक अनुवांशिक उत्परिवर्तन प्राप्त करते हैं. लेकिन जिस तरह से हम एंटीबायोटिक्स का उपयोग करते हैं, वह भी प्रतिरोध का एक कारण बन सकता है. उदाहरण के लिए, एक सामान्य कारण यह है कि यदि लोग एंटीबायोटिक दवाओं का एक कोर्स पूरा करने में विफल रहते हैं. हालांकि एंटीबायोटिक्स शुरू करने के कुछ दिन बाद लोग बेहतर महसूस करते हैं, लेकिन सभी बैक्टीरिया समान नहीं होते हैं. कुछ अन्य की तुलना में एंटीबायोटिक से प्रभावित होने में धीमे हो सकते हैं.

इसका मतलब यह है कि यदि आप एंटीबायोटिक को कोर्स पूरा किए बिना लेना बंद कर देते हैं, तो जो बैक्टीरिया शुरू में एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव से बचने में असमर्थ थे, वे अपनी संख्या बढ़ाएंगे, इस प्रकार उनका प्रतिरोध आगे बढ़ेगा. इसी तरह, एंटीबायोटिक दवाओं को अनावश्यक रूप से लेने से बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध को तेजी से विकसित करने में मदद मिल सकती है.

यही कारण है कि एंटीबायोटिक दवाओं को तब तक नहीं लेना महत्वपूर्ण है जब तक कि डॉक्टर आपको उन्हें लेने की सलाह न दे. और केवल उस संक्रमण के लिए उनका उपयोग करें जिसके लिए उन्हें देने की सलाह दी गई है. प्रतिरोध एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकता है. उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति जिसकी नाक में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया है, छींकता है या खांसता है, तो यह आसपास के लोगों में फैल सकता है. शोध से यह भी पता चलता है कि पर्यावरण के माध्यम से रोगाणुरोधी प्रतिरोध फैल सकता है, जैसे कि अशुद्ध पेयजल से. इस वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध संकट को गंभीर बनाने वाले कारण जटिल हैं. हम जिस तरह से एंटीबायोटिक्स लेते हैं, उससे लेकर एंटीमाइक्रोबियल केमिकल्स के साथ पर्यावरण प्रदूषण तक, कृषि में एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल और यहां तक कि हमारे शैम्पू और टूथपेस्ट में प्रिजर्वेटिव्स भी प्रतिरोध में योगदान दे रहे हैं.

यही कारण है कि इस दिशा में बदलाव लाने के लिए एक वैश्विक एकीकृत प्रयास की आवश्यकता होगी. कई उद्योगों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के प्रसार को धीमा करने के लिए तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता है. सबसे बड़ा महत्व एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल से जुड़ा है. संयोजन चिकित्सा रोगाणुरोधी प्रतिरोध को धीमा करने का जवाब हो सकती है. इसमें एक ही दवा के बजाय संयोजन में कई दवाओं का उपयोग करना शामिल है. जिससे बैक्टीरिया के लिए प्रतिरोध विकसित करना अधिक कठिन हो जाता है. अध्ययन में कहा गया है कि अगली महामारी दस्तक दे चुकी है, इसे रोकने के लिए इस दिशा में अनुसंधान और निवेश महत्वपूर्ण होगा.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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