राकेश दुबे . दुनिया भर में पर्यटन के लिए मशहूर गोवा मे गोवा में खनन और पर्यटन, अर्थव्यवस्था के दो ही स्तंभ थे और दोनों ही बर्बाद हो चुके हैं. और अब मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत खनन वाले इलाके साखलेम से फिर चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन माइनिंग फिर से शुरू करने के मुद्दे ने उनकी मुसीबत बढ़ा दी है. यहां तक कि सावंत की मदद के लिए खुद गृहमंत्री अमित शाह को अपने दो दिन के दौरे में कहना पड़ा कि फिर से बीजेपी सरकार बनने के बाद गोवा में माइनिंग दोगुनी स्पीड से शुरू की जायेगी. अमित शाह एक बार गोवा में माइनिंग पर जी ओ एम का नेतृत्व कर चुके है लेकिन माइनिंग शुरू नहीं कर पाये. इस बीच कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गिरीश चोडणकर ने खुलकर कह दिया है कि बीजेपी ने गोवा में कांग्रेस पर 35 हजार करोड़ रुपये घोटाले का जो आरोप लगाया था उसे साबित करे या माफी मांगे. असल में 2012 में चुनाव जीतने के लिए मनोहर पर्रिकर ने विपक्ष के नेता के तौर पर कांग्रेस पर 35 हजार करोड़ रुपये की अवैध माइनिंग का आरोप लगाया था. इसके लिए तब जस्टिस एपी शाह समिति की रिपोर्ट का सहारा लिया था लेकिन बीते दस सालों में ये भी लाखों करोड़ो के टूजी घोटाले की तरह ही एक जुमला साबित हुआ. खुद सरकार बनाने के बाद मुख्यमंत्री बने मनोहर पर्रिकर को कहना पड़ा था कि ये 35 हजार करोड़ नहीं बल्कि 3500 करोड़ है. इतना ही नहीं बाद में इसके लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट की एक कमेटी बनी तो ये घटकर 350 करोड़ हो गया. यानि बीजेपी ने चुनावी फायदे के लिए इसे 35 हजार करोड़ रुपये कर दिया था. बीजेपी इसके सहारे चुनाव जीत भी गयी दो बार लेकिन अब कांग्रेस ने खुलकर चुनौती देकर बीजेपी की मुश्किल भी बढ़ा दी है.
गोवा में इसी 35 हजार करोड़ के आंकड़े के सहारे गोवा में माइनिंग का विरोध कर रहे एनजीओ गोवा फाऊंडेशन ने दावा किया था कि अगर ये पैसे वसूल लिये गये तो हर गोवा वासी के खाते में तीन लाख रुपये मिलेंगे. लेकिन नंबर घटता गया तो अब हर खाते में मिलने वाला आंकड़ा तीन लाख से 300 रुपये तक आ गया. सोशल मीडिया पर बीजेपी से बार बार सवाल पूछा जा रहा है कि ये भी तो खाते में पंद्रह लाख रुपये के जुमले की तरह तो नहीं है. चुनाव में भाजपा, कांग्रेस, आप और टीएमसी के साथ साथ क्षेत्रीय पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं. राज्य के 70 नागरिक संगठनों ने एक जनता का घोषणापत्र भी जारी कर दिया है. सभी दलों का चुनाव अभियान कुछ खास मुद्दों के इर्दगिर्द है जिनमें खनन, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार प्रमुख हैं. ये सभी ऐसे मसले हैं जिनको लेकर राज्य की जनता परेशान है. अन्य राज्य के लोग भले न समझ पाएं, लेकिन खनन, गोवा की एक बड़ी समस्या है. अन्य जगहों पर भले ही खनन को पर्यावरण की बर्बादी माना जाता हो लेकिन गोवा में खनन शुरू करने की मांग है.
दरअसल, पहले गोवा की अर्थव्यवस्था में लौह अयस्क के खनन की हिस्सेदारी करीब 75 फीसदी तक थी. 2012 से गोवा की कमाई में पर्यटन से ज्यादा हिस्सा खनन का होता था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद राज्य में दस साल से खनन बंद है. इसलिए राज्य भर में खासकर दक्षिण गोवा में चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा खनन है. डिमांड है कि खनन फिर शुरू किया जाए. इसीलिए सभी पार्टियां सत्ता में आने पर खनन दोबारा शुरू कराने का वादा कर रही हैं. आम आदमी पार्टी ने तो ऐलान किया है कि सत्ता में आने के छह महीने के भीतर खनन शुरू करा दिया जाएगा. अक्टूबर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने गोवा के तमाम लौह अयस्क खनन और परिवहन पर रोक लगाने का आदेश दिया था. जस्टिस एमबी शाह आयोग की रिपोर्ट के बाद ये फैसला आया जिसमें बताया गया था कि लाखों टन लौह अयस्क अवैध रूप से निकाला जा रहा था. 2015 में राज्य सरकार ने 88 खनन कंपनियों की लीज को फिर से बहाल कर दिया था लेकिन 2018 में गोवा फाउंडेशन नाम के एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने तमाम नई लीज रद्द कर दी थीं. बेरोजगारी देश के बाकी राज्यों की तरह गोवा में रोजगार की कमी एक बड़ा मुद्दा है. कोरोना वायरस महामारी से पर्यटन ठप है जिससे बेरोजगारी और भी बढ़ गई है. बंद पड़े खनन कारोबार ने भी इसे बढ़ाया. लोगों का आक्रोश बेरोजगारी के चलते बहुत ज्यादा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-चुनावी सर्वे: पंजाब में आप की लग सकती है लॉटरी, गोवा और उत्तराखंड में भाजपा की वापसी
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