जबलपुर. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिलने का मामला उठाया गया है. याचिका में कहा गया है कि शासन की तरफ से अभियोजन की अनुमति नहीं मिलने के कारण अदालत में चालान नहीं पेश हो रहा है. ऐसे में भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी कर्मचारी को सजा मिलना मुश्किल हो गया है. याचिका मण्डला निवासी पत्रकार मुकेश श्रीवास की तरफ से दायर की गई है. पूर्व में याचिकाकर्ता ने केवल मध्य प्रदेश शासन के विधि एवं विधायी विभाग को पार्टी बनाया था. लेकिन बाद में एक अंतरिम आवेदन देकर मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन को भी प्रतिवादी बनाने की अनुमति मांगी.
जस्टिस शील नागू और जस्टिस मनिंदर सिंह भट्टी की युगलपीठ ने अंतरिम आवेदन को स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई 2 मार्च को तय कर दी है. राज्य के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग को नोटिस भी जारी किया गया है. याचिकाकर्ता के वकील गोपाल सिंह बघेल ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 2012 से भ्रष्ट आचरण में लिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मामले दर्ज होने पर भी शासन की तरफ से अब तक अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी गई है. आवेदक का कहना है कि इस दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे करीब पांच सौ से अधिक अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं और इतने ही भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी सेवारत हैं.
आरोपियों में कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी शामिल हैं. आवेदक का कहना है कि संबंधित विभागों की ओर से विधि एवं विधायी विभाग के समक्ष आवेदन देकर लोक अभियोजन की स्वीकृति मांगी जाती है, लेकिन वर्षों बीत जाने के बावजूद मंजूरी प्रदान नहीं की गई. याचिका में कहा गया है कि शासन के इस रवैये की वजह से प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है. मामले की शुरुआती सुनवाई में अदालत को बताया गया था कि याचिका में सिर्फ विधि और विधायी विभाग को पक्षकार बनाया गया है. लेकिन बाद में न्यायालय ने मुख्य सचिव सहित अन्य संबंधित विभागों के प्रमुख सचिवों को पक्षकार बनाने के निर्देश दे दिए.
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