नई दिल्ली. कृषि कानून पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमिटी के सदस्य अनिल घनवट ने सीलबंद रिपोर्ट को आज सार्वजनिक कर दिया. हालांकि यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल 21 मार्च को सीलबंद लिफाफे में जमा कर दी गई थी, लेकिन इस रिपोर्ट में क्या थी, इसके बारे में लोगों को पता नहीं था. आज कमिटी एक सदस्य अनिल घनवट ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दी. घनवट ने माना कि कानूनों को निरस्त करके नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ी राजनीतिक भूल की है. घनवट ने माना है कि इस रिपोर्ट से किसानों को कृषि कानूनों के लाभ के बारे में समझाया जा सकता था और इनको रद्द होने से रोका जा सकता था.
सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी 2021 को किसान आंदोलन को लेकर एक कमेटी का गठन किया था. इस कमिटी में कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और अनिल घनवट शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट ने 4 सदस्यीय टीम बनाई थी, लेकिन किसान नेता भूपिंदर सिंह मान ने इससे खुद को अलग कर लिया था.
घनवट के मुताबिक सीलबंद रिपोर्ट में भी कृषि कानूनों को रद्द न करने की सलाह दी थी. घनवट ने कहा है कि इन कृषि कानूनों को रद्द करना या लंबे समय तक लागू न करना उन लोगों की भावनाओं के खिलाफ है जो इसका मौन समर्थन करते हैं. घनवट में कहा कि इस रिपोर्ट को तैयार करने से पहले कमेटी के सामने जो 73 कृषि संगठन से बातचीत हुई थी. ये देश के साढ़े 3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इनमें से 61 किसान संगठनों ने मोदी सरकार द्वारा लाये गए कृषि कानूनों का समर्थन किया था.
अधिकांश आंदोलनकारी किसान पंजाब और उत्तर भारत से आये थे जहां के लिए एमएसपी एक महत्वपूर्ण पहलू है. लेकिन इन किसानों को वामपंथी नेताओं ने गुमराह किया. साथ ये भी भ्रम फैलाया कि इससे एमएसपी खत्म हो जाएगा. जबकि कानून में कुछ भी ऐसा नहीं था. अनिल घनवत ने कहा कि उत्तर भारत के जिन किसानों में कृषि कानूनों को लागू नहीं होने दिया उन्होंने खुद की आय को बढ़ाने का मौका खो दिया.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कृषि कानून 20, तो किसान आंदोलन 21....
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