* अभिमनोज/प्रदीप द्विवेदी
वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानून के विरोध में जो किसान आंदोलन शुरू हुआ, उसने साबित कर दिया कि भारत में सियासी तानाशाही नहीं चल सकती है!
किसान आंदोलन को तोड़ने की, बदनाम करने की, अनेक कोशिशें हुई, लेकिन किसान अहिंसक तरीके से अपनी बात पर कायम रहे, नतीजा?
अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन के समक्ष सियासी हथियार डालते हुए हार मान ली और तीनों कृषि कानून रद्द करने का ऐलान कर दिया!
किसान आंदोलन शुरू होने से लेकर उसकी जीत तक पल-पल इंडिया किसानों के संघर्ष की कहानी लिखता रहा और अब किसानों की विजय के बाद किसान आंदोलन की कहानी किताब के रूप में प्रस्तुत कर रहा है.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध तो शुरूआत से ही हो रहा था, लेकिन बहुमत और सियासी जोड़तोड़ के दम पर लाए गए इन कानूनों के विरोध में आंदोलन 26 नवंबर, 2020 शुरू हुआ.
याद रहे, 4 सितंबर 2020 को सरकार ने संसद में किसान कानूनों संबंधी ऑर्डिनेंस पेश किया, 17 सितंबर को यह ऑर्डिनेंस लोकसभा में पास हो गया, इतना ही नहीं, 20 सितंबर को राज्यसभा में भी इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया गया.
इसके साथ ही देशभर में किसानों का विरोध शुरू हो गया, 24 सितंबर 2020 को पंजाब में तीन दिन के लिए रेल रोको आंदोलन हुआ, तो इसी दौरान 25 नवंबर को ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी के आव्हान पर देशभर के किसान दिल्ली चलो मूवमेंट के साथ जुड़ गए.
देश के गृहमंत्री अमित शाह ने 28 नवंबर, 2020 को किसानों को बातचीत करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन किसानों ने उनकी बात मानने से इंकार करते हुए जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी, तो 29 नवंबर को मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि- सभी राजनीतिक दलों ने किसानों से वादा किया था, लेकिन केवल उनकी सरकार ने वादा पूरा किया.
किसान आंदोलन की भावना जोर पकड़ती रही, इस बीच 3 दिसंबर, 2020 को सरकार और किसानों के बीच पहले दौर की बेनतीजा बातचीत हुई, इसके बाद पांच दिसंबर को केंद्र सरकार की किसानों के साथ दूसरे दौर की बातचीत हुई, लेकिन इसका भी कोई परिणाम नहीं निकला.
हालात ऐसे हो गए थे कि- किसानों ने बातचीत के दौरान सरकार की ओर से दिए गए खाने के निमंत्रण को अस्वीकार करते हुए सरकारी खाना नहीं खाया और खुद से लाया खाना जमीन पर बैठकर खाया.
कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने 8 दिसंबर, 2020 को भारत बंद का आव्हान किया, जिसे पूरे देश के किसानों ने समथ्रन दिया और 9 दिसंबर को किसान नेताओं ने कृषि कानूनों में सुधार के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
इसके साथ ही किसानों ने कृषि कानूनों को वापस न लिए जाने तक धरने का ऐलान किया, तो 11 दिसंबर को भारतीय किसान यूनियन ने तीन कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
मोदी सरकार ने 13 दिसंबर को किसानों से बातचीत की बात तो कही, परन्तु किसान आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग प्रायोजित बताते हुए किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोशिशें भी शुरू हो गई.
इसके बाद, 16 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- वह कृषि कानूनों पर उपजे गतिरोध को देखते हुए एक पैनल बना सकती है, जिसमें किसान और केंद्र सरकार, दोनों के प्रतिनिधि रहेंगे, तो उधर 21 दिसंबर को किसानों ने सभी धरना स्थलों पर एक दिन की भूख हड़ताल भी रखी.
किसानों को दिल्ली तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा, लेकिन किसानों के तेवर देखकर 30 दिसंबर, 2020 को मोदी सरकार किसानों को पराली जलाने पर पेनाल्टी और इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 में सुधार के लिए सहमत हुई.
किसान आंदोलन का 2021 में प्रवेश के साथ ही किसानों और मोदी सरकार के बीच दूरियां बढ़ती गई,
26 जनवरी, 2021 को किसान संगठनों ने कृषि कानूनों के विरोध में गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड का आव्हान किया था, इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारी आमने-सामने भी हुए.
खबरें थी कि इससे उपजे विवाद के बाद 28 जनवरी को दिल्ली गाजीपुर बॉर्डर पर भी तनाव रहा, क्योंकि यूपी के गाजियाबाद के जिला प्रशासन की ओर से बॉर्डर खाली करने के आदेश दिए गए थे.
इसी दौरान 5 फरवरी को दिल्ली साइबर क्राइम सेल ने किसान विरोधों पर टूलकिट के इस्तेमाल की एफआईआर दर्ज की, तो 6 फरवरी को आंदोलन कर रहे किसानों ने देशभर में दोपहर 12 से शाम 3 बजे तक चक्का जाम किया.
इसके बाद खबरें आई कि 9 फरवरी को पंजाबी अभिनेता और एक्टिविस्ट दीप सिंधु को गणतंत्र दिवस हिंसा मामले में गिरफ्तार किया गया.
उधर, पंजाब में 2 मार्च को शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और अन्य नेताओं को पंजाब विधानसभा का घेराव करने के लिए जाते समय गिरफ्तार कर लिया गया, तो 5 मार्च को पंजाब विधानसभा ने एक रिजॉल्यूशन पास किया, जिसमें तीनों कृषि कानूनों को पंजाब में लागू न होने देने के साथ ही एमएसपी बेस्ड सिस्टम फॉलो करने की बात कही गई.
किसान आंदोलन के मद्देनजर 15 अप्रैल को हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों से बातचीत शुरू करने के लिए पत्र लिखा.
किसान आंदोलन जारी रहा और 27 मई को किसानों ने काला दिवस मनाया और सरकार का पुतला दहन किया. किसानों ने 5 जून को संपूर्ण क्रांतिकारी दिवस मनाया, तो 26 जून को कृषि कानूनों के विरोध के सात महीने पूरे होने पर किसानों ने दिल्ली तक मार्च किया, इस दौरान संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया कि किसानों को विभिन्न राज्यों में रोका गया.
दिलचस्प घटनाक्रम जुलाई 21 में चला जब मॉनसून सत्र शुरू हुआ, तो किसानों ने भी पार्लियामेंट हाउस के करीब अपना भी मॉनसून सत्र शुरू कर दिया, तब 7 अगस्त को विपक्ष के 14 प्रमुख नेताओं ने सदन में आपस में मुलाकात की और इसके बाद इन सभी ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर चल रहे किसान संसद में जाने का निर्णय लिया.
हरियाणा के करनाल में 28 अगस्त को किसानों के पर लाठीचार्ज हुआ, जिसमें कई किसान घायल हुए.
यूपी सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यूपी के मुजफ्फरनगर में किसानों ने बड़ा प्रदर्शन किया, जिसमें बहुत बड़ी संख्या में किसान आए, तो 7 नवंबर से किसान करनाल पहुंचे और प्रदर्शन किया, नतीजे में किसान और करनाल जिला प्रशासन के बीच गतिरोध खत्म होने के साथ ही किसान आंदोलन की जीत की शुरूआत हुई.
केंद्र की मोदी सरकार की तमाम कोशिशें नाकामयाब होने के बाद अंततः 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया.
किसानों ने लखनऊ में 20 नवंबर को किसान महापंचायत की, जिसमें किसानों ने एमएसपी कानून बनाए जाने तक घर लौटने से इंकार कर दिया, किसान आंदोलन जारी रहा, इसे लेकर किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि- उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात का भरोसा नहीं है और जब तक कृषि कानून दोनों सदनों से पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए वापस नहीं ले लिए जाते, किसान आंदोलन खत्म नहीं होगा.
इसके बाद 29 नवंबर, संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन कृषि कानून वापसी बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास किया गया.
इसके बाद किसानों और केंद्र सरकार के बीच संवाद के तहत 7 दिसंबर को किसानों से सरकार से मिले ड्राफ्ट की कुछ शर्तों पर असहमति जताई और सरकार से संवाद के लिए किसानों ने 5 सदस्यीय समिति बनाई, 8 दिसंबर को सरकार को संशोधित प्रस्ताव दिया गया, जिसमें समझौते के अनुसार सभी राज्य सरकारों द्वारा पंजाब की तरह मृत किसानों को मुआवजा देने, एमएसपी पर कमेटी बनाने, जिसमें किसान संगठन समेत संबंधित घटकों के शामिल करने, किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने आदि बातें कही गई.
इसके बाद 9 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने किसानों को संशोधित सहमति पत्र सौंपा, जिसे संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक में स्वीकृति मिल गई, किसानों ने किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत का ऐलान करते हुए किसान आंदोलन स्थगित करने की घोषणा कर दी!
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