लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ने को लेकर नई पीढ़ी की दिलचस्पी लगातार कम हो रही है. मदरसा शिक्षा परिषद के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं. यहां मुंशी-मौलवी यानी सेकेंड्री तथा सीनियर सेकेंड्री क्लास में रजिस्टर्ड छात्र-छात्रों की संख्या में पिछले छह सालों के दौरान तीन लाख की ज्यादा की कमी देखी गई है.
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2016 में जहां सेकेंड्री तथा सीनियर सेकेंड्री क्लास में जहां 4 लाख 22 हजार 627 छात्र-छात्राओं ने रजिस्ट्रेशन कराया था, वहीं इस साल यह संख्या घटकर 92 हजार रह गई है. यानी इन छह वर्षों में 3.30 लाख की कमी आई है.
मदरसों में पढ़ाई के लिए आने वाले छात्र-छात्रों की संख्या में इस कमी के पीछे सबसे बड़ी वजह यहां से मिलने वाले प्रमाण पत्र की कोई अहमियत न होना बताया जाता है. यूपी मदरसा शिक्षा परिषद अब तक किसी भाषा विश्वविद्यालय से अपनी संबद्धता या अपने पाठ्यक्रमों की मान्यता हासिल नहीं कर पाई है. इस कारण इसके प्रमाण पत्र की भी कोई अहमियत नहीं.
रिपोर्ट के मुताबिक मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन डॉ इफ्तेखार जावेद यह बात कुबूल करते हैं कि यूपी के मदरसों से पढ़कर निकलने वाले छात्र-छात्राओं को उनके प्रमाण पत्रों के आधार पर रोजगार नहीं मिलता. वह कहते हैं मदरसा शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाना हमारी पहली प्राथमिकता है. हमने परिषद के सदस्यों की बैठक बुलाई है, जिसमें इन सारे मुद्दों पर गहनता से विचार-विमर्श किया जाएगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-यूपी में योगी तो पार पा गए, लेकिन मोदी टीम की अप्रत्यक्ष हार बढ़ाएगी बीजेपी की बेचैनी?
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