पलपल संवाददाता, जबलपुर. मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण मामले की सुनवाई एक महीने आगे बढ़ गई है, राज्य सरकार ने ओबीसी को 14 से 27 प्रतिशत आरक्षण किए जाने का आधार बताने के लिए हाईकोर्ट से एक माह की मोहलत मांगी है. चीफ जस्टिस रवि मलिमठ व जस्टिस शील नागू की युगल पीठ में सरकार की ओर से कहा गया कि ओबीसी को लेकर कुछ महत्वपूर्ण डाटा पेश करना चाहती है जो पिछड़ा वर्ग आयोग ने तैयार किए है.
एमपी हाईकोर्ट की मुख्यपीठ में आज इस मामले की सुनवाई शुरु हुई, दो दिन पहले जस्टिस पीके कौरव ने सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया था, ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में करीब 55 याचिकाएं दायर है, सभी पर एक साथ सुनवाई चल रही है, आज सुनवाई ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने के संवैधानिक कारणों को लेकर हुई है. सरकार की ओर से बताया कि प्रदेश में ओबीसी की जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर 50 प्रतिशत से अधिक है, ओबीसी वर्ग की आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक सहित कई बिन्दुओं पर विस्तृत डाटा तैयार करने के लिए पिछले दिनों पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया था.
आयोग ने हर जिले में जाकर ओबीसी को लेकर विस्तृत डाटा तैयार किया है, जिसे पेश करने के लिए मोहलत चाहिए, करीब 20 मिनट तक चली सुनवाई में कोर्ट ने सरकार की मांग को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई 27 अप्रेल तय की है, उससे पहले सरकार को अपना डाटा पेश करना होगा. गौरतलब है कि कांगे्रस की सरकार ने वर्ष 2019 में कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर राज्य में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का फैसला किया था, जिसे विधानसभा ने मंजूरी भी दे दी थी, मामला आगे बढ़ता उससे पहले ही मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों ने फैसले को हाईकोर्ट में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को लेकर इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए चुनौती दी, जिसपर कोर्ट ने स्टे दे दिया, इसके बाद से ही मामला न्यायालय में विचाराधीन है कोर्ट ने अभी 14 प्रतिशत ही ओबीसी आरक्षण को बरकरार रखा है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने MPPSC 2019 भर्ती प्रक्रिया में 27 ओबीसी आरक्षण पर लगाई रोक
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