अपरा अचला एकादशी,
अपरा एकादशी गुरुवार, 26, मई 2022 को
27,मई को, (व्रत तोड़ने का) समय - 05-32 से 08-12 को सुबह
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 11:47
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 25, मई 2022 को 10-32 को सुबह बजे
एकादशी तिथि समाप्त - 26, मई 2022 को 10-54 को सुबह बजे
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है. पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है. जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं.
इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है. अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं. इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं.
जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं. जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं. मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं.
जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है. मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है.
यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है. पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है. अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए. अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है.
इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था. वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था. उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया. इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा.
एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे. उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया. अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा. ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया.
दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया. इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई. वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया.
1 अचला एकादशी व्रत का पुण्य फल पाने के लिए साधक को व्रत वाले दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठना चाहिए. इस दिन भूलकर भी सूर्योदय के बाद देर समय तक नहीं सोना चाहिए. साथ ही साथ प्रात:काल स्नान करने के बाद सूर्य नारायण को जल देकर उनका विशेष रूप से आशीर्वाद लेना चाहिए.
2 अचला एकादशी व्रत करने वाले साधक को अपने मन में किसी के प्रति ईर्ष्या, क्रोध, द्वेष आदि नहीं लाना चाहिए और न ही इस दिन किसी से झूठ बोलना चाहिए.
3 अचला एकादशी के दिन यदि संभव हो तो अधिक से अधिक मौन रहने का प्रयास करना चाहिए. मान्यता है कि जब आप अधिक बोलते हैं तो आपके मुंह से किसी के लिए बुरा शब्द निकल सकता है. ऐसे में एकादशी व्रत को रखते हुए भगवान श्री विष्णु के मंत्र का मन में अधिक से अधिक जाप करना चाहिए.
4 अचला एकादशी व्रत के दिन साधक को भूलकर भी मांस, मदिरा, आदि तामसिक चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. ऐसा करने पर व्रत खंडित हो जाता है और व्यक्ति पाप का भागीदार बनता है.
5 भगवान विष्णु की कृपा बरसाने वाली किसी भी एकादशी व्रत और उससे एक दिन पूर्व यानि दशमी के दिन भूलकर भी चावल नहीं खाना चाहिए. मान्यता है कि इस नियम की अनदेखी करने वाला व्यक्ति पाप का भागीदार बनता और एकादशी व्रत के पुण्यफल को पाने से वंचित रह जाता है.
6 सुख-समृद्धि और सौभाग्य की कामना रखने वालों को अचला एकादशी व्रत वाले दिन भूलकर भी बाल, नाखून आदि नहीं कटवाना चाहिए. मान्यता है कि
7 एकादशी के दिन क्षौर कर्म करने पर दु:ख और दुर्भाग्य की प्राप्ति होती है.
8 एकादशी व्रत वाले दिन पेड़ों से पत्ता नहीं तोड़ा जाता है. ऐसे में यदि आप
9 अचला एकादशी व्रत वाले दिन भगवान विष्णु को प्रसाद में तुलसी दल चढ़ाना चाहते हैं तो उसे एक दिन पहले ही तोड़ लें.
10 हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है. इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है.
एकादशी की आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता .
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ..
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी .
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ..
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी.
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई..
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ..
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै.
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै .. .
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ..
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ..
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी..
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी.
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ..
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए.
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए..
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला.
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला..
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी.
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ..
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया.
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ..
Koti Devi Devta
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-मोहिनी एकादशी व्रत 12 मई 2022 को रखें
Leave a Reply