वट सावित्री व्रत 30 मई 2022 को, क्या हैं इससे जुड़ी मान्यता, महत्व और पूजा विधि

वट सावित्री व्रत 30 मई 2022 को, क्या हैं इससे जुड़ी मान्यता, महत्व और पूजा विधि

प्रेषित समय :18:05:24 PM / Sun, May 29th, 2022

*वट सावित्री का व्रत इस साल 30 मई को है . वट सावित्री के व्रत के दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती हैं.

*मुख्य बातें
*वट सावित्री के दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं वट सावित्री के दिन वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ का काफी महत्व होता है वट सावित्री के पावन दिन सुहागन महिलाएं वट वृक्ष के चारों ओर 108 बार परिक्रमा करती हैं*
*जेष्ठ मास की अमावस्या की तिथि में वट सावित्री मनाया जाता है. इस साल वट सावित्री का व्रत 30 मई को रखा जाएगा. वट सावित्री का व्रत सुहागन महिलाएं रखती है. इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं. वट सावित्री के दिन वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का काफी महत्व होता है. इस दिन बरगद के पेड़ की ही पूजा की जाती है. पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. इस पेड़ की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. वट सावित्री के पावन दिन सुहागन महिलाएं वट वृक्ष के चारों ओर 21 वा 108 बार परिक्रमा करती हैं. मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. वट सावित्री व्रत भगवान विष्णु को ही समर्पित है और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है. वट सावित्री के दिन व्रत रखने महिलाओं में इस बात को लेकर यह सवाल रहता है कि इस इस व्रत को निर्जला उपवास की तरह रखा जाता है या भोजन किया जा सकता है? तो आइए जानते हैं इसके बारे में...*
*फल लेकर भी रख सकते हैं पूजा
*वट सावित्री का व्रत करवा चौथ व तीज के व्रत जैसा होता है. ज्योतिष के अनुसार, वट सावित्री का व्रत दो तरीके से रखा जा सकता है. पहला तरीका इसे आप फल लेकर भी उठा सकते हैं. पूजा करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं. कुछ लोग अन्न ग्रहण नहीं करते हैं. सबकी अपनी अलग-अलग मान्यता है. कुछ लोग इस व्रत को केवल फल से उठाते हैं और अनाज अगले दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही ग्रहण करते हैं.*
*पूजा के बाद खा सकते हैं अन्न*
*दूसरा तरीका है कि वट सावित्री व्रत के दिन पूरी पूजा समाप्त होने के बाद आप वट वृक्ष पूजा में चढ़ाई गई चीजों का सेवन कर सकते हैं. जैसे पूड़ी, पुआ, खरबूजा व आम का मुरब्बा जैसे चीजों का सेवन कर सकते हैं, लेकिन व्रत के खत्म होने के बाद.*
*प्याज लहसुन का न लगाएं तड़का
*वट सावित्री के व्रत में घर पर प्याज व लहसुन का तड़का नहीं लगाना चाहिए. इस दिन साधारण भोजन का सेवन करना चाहिए.
*इस व्रत में आप अन्न व फल दोनों ही तरीके से रखा जा सकता है.

क्यों किया जाता है वट सावित्री व्रत
पुराणों के अनुसार इस दिन सावित्री अपने पति सत्यभामा के प्राण यमराज के यहाँ से वापस ले आई थी. इसीलिए बाद में उन्हें सती सावित्री कहा जाता है. इस व्रत का विवाहित स्त्रियों के लिए बड़ा खास महत्व होता है जिसे अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए रखा जाता है. माना जाता है इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में आने वाले सभी कष्ट दूर हो जाते है. और हमेशा सुख शांति बनी रहती है.

 व्रत विधि
वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है जिसे सौभाग्य और संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है. वट सावित्री व्रत स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु और संतान के कुशल भविष्य के लिए रखती है. यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को किया जाता है जिस में सभी सुहागन स्त्रियां वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का पूजन करती है. इसीलिए इसे वरदगाई भी कहा जाता है.

 पूजा विधि
वट सावित्री की पूजा के लिए विवाहित महिलाओं को बरगद के पेड़ के नीचे पूजा करनी होती है. सुबह स्नान करके एक दुल्हन की तरह सजकर एक थाली में प्रसाद जिसमे गुड़, भीगे हुए चने, आटे से बनी हुई मिठाई, कुमकुम, रोली, मोली, 5 प्रकार के फल, पान का पत्ता, धुप, घी का दीया, एक लोटे में जल और एक हाथ का पंखा लेकर बरगद पेड़ के नीचे जाएं. और पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं, उसके बाद प्रसाद चढाकर धुप, दीपक जलाएं. उसके बाद सच्चे मन से पूजा करके अपने पति के लिए लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें. पंखे से वट वृक्ष को हवा करें और सावित्री माँ से आशीर्वाद लें ताकि आपका पति दीर्घायु हो. इसके पश्चात् बरगद के पेड़ के चारो ओर कच्चे धागे से या मोली को 7 बार बांधे और प्रार्थना करें. घर आकर जल से अपने पति के पैर धोएं और आशीर्वाद लें. उसके बाद अपना व्रत खोल सकते है. कई महिलाएं इस दिन पुरे दिन व्रत रखती है और सूर्यास्त के बाद व्रत खोल लेती है.

 महत्व 
हिन्दू धर्म अनुसार वट सावित्री व्रत का सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक महत्व होता है. इस दिन महिलाएं अपने सुखद वैवाहिक जीवन के लिए वट वृक्ष का पूजन करती है. माना जाता है इस दिन सावित्री नामक स्त्री ने अपने पति सत्यभामा के प्राण यमराज से भी वापस ले लिए थे. तभी इस इस दिन को वट सावित्री व्रत के रूप में पति की लंबी आयु के लिए मनाया जाता है. इस व्रत में बरगद के पेड़ का खास महत्व होता है.

इस व्रत में वट वृक्ष का बहुत खास महत्व होता है जिसका अर्थ है बरगद का पेड़. इस पेड़ में काफी शाखाएं लटकी हुई होती है जिन्हें सावित्री देवी का रूप माना जाता है. पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. इसलिए इस पेड़ की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

वट सावित्री व्रत कथा
प्राचीन काल में मद्रदेश में अश्वपति नाम के एक राजा राज करते थे. वह बड़े धर्मात्मा, ब्राह्मण भक्त, सत्यवादी और जितेंद्रिय थे. राजा को सब प्रकार का सुख था परंतु उन्हें कोई संतान नहीं थी. इसलिए उन्होंने संतान प्राप्ति की कामना से अठारह वर्षों तक सावित्री देवी की कठोर तपस्या की. सावित्री देवी ने उन्हें एक तेजस्विनी कन्या की प्राप्ति का वर दिया. यथा समय राजा की बड़ी रानी के गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा. राजकन्या शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति दिनों दिन बढऩे लगी. धीरे-धीरे उसने युवावस्था में प्रवेश किया. उसके रूप लावण्य को जो भी देखता उस पर मोहित हो जाता.

जब राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला तो उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा, ‘‘बेटी! अब तुम विवाह के योग्य हो गई हो इसलिए स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो.’’पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य मंत्रियों के साथ स्वर्ण रथ पर बैठ कर यात्रा के लिए निकली. कुछ दिनों तक ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों के तपोवनों और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आई. उसने पिता के साथ देवर्षि नारद को बैठे देख कर उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया.

महाराज अश्वपति ने सावित्री से उसकी यात्रा का समाचार पूछा. सावित्री ने कहा,  पिता जी! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग्य हैं. अत: मैंने मन से उन्हीं को अपना पति चुना है.’’नारद जी सहसा चौंक उठे और बोले, ‘‘राजन! सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है. सत्यवान के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं, वह वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके हैं. सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है. नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गए. उन्होंने सावित्री से कहा, बेटी! अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो.

सावित्री सती थी. उसने दृढ़ता से कहा, पिताजी! सत्यवान चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, अब तो वही मेरे पति हैं. जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया फिर मैं दूसरे पुरुष का वरण कैसे कर सकती हूं? सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया. धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुंचा जिसमें सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी. सावित्री ने उसके चार दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था. पति एवं सास-ससुर की आज्ञा से सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-फूल और लकड़ी लेने के लिए गई. अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान के सिर में भयानक दर्द होने लगा और वह पेड़ से नीचे उतरकर पत्नी की गोद में लेट गया.
उस समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरुष दिखाई पड़ा. वह साक्षात यमराज थे. उन्होंने सावित्री से कहा, तू पतिव्रता है. तेरे पति की आयु समाप्त हो गई है. मैं इसे लेने आया हूं. इतना कह कर यमराज ने सत्यवान के शरीर से सूक्ष्म जीव को निकाला और उसे लेकर वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिए. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दी. सावित्री की बुद्धिमत्तापूर्ण और धर्म युक्त बातें सुनकर यमराज का हृदय पिघल गया. सावित्री ने उनसे अपने सास-ससुर की आंखें अच्छी होने के साथ राज्य प्राप्ति का वर, पिता को पुत्र प्राप्ति का वर और स्वयं के लिए पुत्र वती होने का आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया. इस प्रकार सावित्री ने सतीत्व के बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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