● गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़ कर सब पत्र प्रिय हैं.
● भैरव की पूजा में तुलसी का ग्रहण नही है.
● कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोडकर निषेध है.
● बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नही करते.
● रविवार को दूर्वा नही तोडनी चाहिए.
● केतकी पुष्प शिव को नही चढ़ाना चाहिए.
● केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करें.
● देवताओं के सामने प्रज्वलित दीप को बुझाना नही चाहिए.
● शालिग्राम का आवाहन तथा विसर्जन नही होता.
● जो मूर्ति स्थापित हो उसमे आवाहन और विसर्जन नही होता.
● तुलसीपत्र को मध्याहोंन्त्तर ग्रहण न करें.
● पूजा करते समय यदि गुरुदेव,ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करें.
● मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है.
● कमल को पांच रात,बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है.
● पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल दुग्ध से स्नान कराने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है.
● शालिग्राम पर अक्षत नही चढ़ता. लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है.
● हाथ में धारण किये पुष्प, तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल अपवित्र हो जाते हैं.
● पिघला हुआ घृत और पतला चन्दन नही चढ़ाना चाहिए.
● दीपक से दीपक को जलाने से प्राणी दरिद्र और रोगी होता है.
● दक्षिणाभिमुख दीपक को न रखे.
● देवी के बाएं और दाहिने दीपक रखें.
● दीपक से अगरबत्ती जलाना भी दरिद्रता का कारक होता है.
● द्वादशी, संक्रांति, रविवार, पक्षान्त और संध्याकाळ में तुलसीपत्र न तोड़ें.
● प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढाएं.
● आसन, शयन, दान, भोजन, वस्त्र संग्रह,,विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गयी है.
● जो मलिन वस्त्र पहनकर, मूषक आदि के काटे वस्त्र, केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो, जप आदि करता है उसे देवता नाश कर देते हैं.
● मिट्टी, गोबर को निशा में और प्रदोषकाल में गोमूत्र को ग्रहण न करें.
● मूर्ती स्नान में मूर्ती को अंगूठे से न रगड़े.
● पीपल को नित्य नमस्कार पूर्वाह्न के पश्चात् दोपहर में ही करना चाहिए. इसके बाद न करें.
● जहाँ अपूज्यों की पूजा होती है और विद्वानों का अनादर होता है, उस स्थान पर दुर्भिक्ष, मरण, और भय उत्पन्न होता है.
● पौष मास की शुक्ल दशमी तिथि, चैत्र की शुक्ल पंचमी और श्रावण की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का पूजन करें.
● कृष्ण पक्ष में, रिक्तिका तिथि में, श्रवणादी नक्षत्र में लक्ष्मी की पूजा न करें.
● अपराह्न काल में, रात्रि में, कृष्ण पक्ष में, द्वादशी तिथि में और अष्टमी को लक्ष्मी का पूजन प्रारम्भ न करें.
● मंडप के नव भाग होते हैं, वे सब बराबर-बराबर के होते हैं अर्थात् मंडप सब तरफ से चतुरासन होता है. अर्थात् टेढ़ा नही होता.
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-गंगा सप्तमी: घर की उत्तर दिशा में करें पूजन, मां गंगा करेंगी हर पाप का नाश
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