मदन कलाल.... प्रीमैच्योर बेबी, हर पल सांसों से जंग, डॉक्टरों की चेतावनी थी- विक्षिप्त होगा... लेकिन सब उलट!

मदन कलाल.... प्रीमैच्योर बेबी, हर पल सांसों से जंग, डॉक्टरों की चेतावनी थी- विक्षिप्त होगा... लेकिन सब उलट!

प्रेषित समय :19:53:54 PM / Mon, Jun 6th, 2022

प्रदीप द्विवेदी. आाज तो राजस्थान की पत्रकारिता में मदन कलाल का नाम जाना-पहचाना है, लेकिन असाधारण परिस्थितियोें में उन्होंने सतत संघर्ष करके प्रदेश की पत्रकारिता में अपनी यह खास जगह बनाई है.

अभी उन्होंनेे फेसबुक पर धैर्य, संघर्ष और विश्वास पर फोकस एक बेहद प्रेरक सच्चाई शेयर की है, इसे पढ़ें, उन्हीं के शब्दों में....

* 750 ग्राम वजनी प्रीमैच्योर बेबी, हर पल सांसों से जंग, डॉक्टरों की चेतावनी थी- विक्षिप्त होगा... लेकिन सब उलट! बर्थडे पर टप्पू बोला-बड़ा होकर रखूंगा मूंछें....

मुश्किल भरा वक्त रहा वो. टप्पू का जन्म प्री मैच्योर बेबी के रूप में हुआ. महज 750 ग्राम वजन. सांस ठीक से लेना शुरू करता इससे पहले ही जिंदगी से जंग शुरू. करीब 1 माह तक हॉस्पिटल के उस नन्हें पालनाघर (एनआईसीयू) में कैद जहां सांसों से लड़ रहे थे कई नवजात. कब, कौन हमेशा के लिए सो जाए पता नहीं. टप्पू भी दिन-रात उन्हीं के बीच सांसे गिन रहा था. पोजिशन बेहद क्रिटिकल. पखवाड़ा गुजरा था. एक दिन हॉस्पिटल में डॉक्टर ने चेंबर में बुलाया. बोले-प्रीमेच्योरिटी और कम वजन के चलते इसका दिमाग डेवलप होना बेहद मुश्किल है. पूरी संभावना है वक्त के साथ-साथ यह बच्चा विक्षिप्त होता चला जाएगा. डॉक्टर की अगली लाइन थी-खुद को मजबूत रखिएगा और यह कहते-कहते वे किसी दूसरे मरीज को देखने के लिए निकल पड़े.

* आगे क्या?
पहाड़ सा दर्द लिए मैं उस सूचना को परिवार से लगातार छुपाते चला गया. ट्रीटमेंट चलता रहा, लेकिन बच्चे के विक्षिप्त होने की खबर ने मुझे हिला कर रख दिया था. हर वक्त एक अजीब सा डर. सोचता था-विक्षिप्त अवस्था में बच्चे का यह बोझ मैं कैसे उठा पाऊंगा? और तब जब वह बड़ा होने लगेगा.

हर वक्त दीवार पर सिर मारने की कोशिश-

डॉक्टर के अलर्ट के अनुसार शुरुआती लक्षण नजर भी आने लगे. उसे अपना सिर दीवार पर मारने की जैसे आदत पड़ गई. इतना जोर से कि कोमल सिर से हर वक्त खून निकलने की आशंका. जैसे ही छोड़ दें वह शुरू हो जाता. नींद लगने तक यह सिलसिला देर रात तक जारी रहता. कई बार जब सभी सोए होते वह अचानक नींद से उठ कर दीवार से जा टकराता. उसका सिर बचाने के लिए न जाने कितनी ही रातें मैं सो नहीं पाया. दफ्तर और काम का प्रेशर अलग.

* गलत साबित होने लगा अलर्ट....

समय निकलता चला गया. तमाम आशंकाओं के बीच धीरे-धीरे लगने लगा डॉक्टर की वे सारी बातें गलत साबित हो रही हैं. पता नहीं यह कैसे हो रहा था. आज टप्पू पूरी तरह से स्वस्थ है. मुझे कभी नहीं लगा उसे कुछ प्रॉब्लम है. वह बिना बात किए ही मन पढ़ लेता है. पढ़ाई-खेल में भी ठीक-ठाक. आज उसका जन्मदिन है. मौका और मिजाज देखकर बेहिचक उसने एक डिमांड भी रख दी- "आपने तो रखी नहीं, मैं बड़ा होकर मूछें रखूंगा पापा." कुछ देर मैं उसकी इतनी बड़ी डिमांड पर हंसा, फिर इजाजत दे दी मूछें रखने की... उसे लग रहा है जैसे जन्मदिन पर यही सबसे बड़ा गिफ्ट है उसके लिए. पता नहीं मूछों से इतना लगाव उसे क्यों हैं?

* यह कहानी बताने के पीछे मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना है, अपने पूरे प्रयास करने के साथ सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें, हो सकता है वह पूरे समीकरण ही बदल दे!
https://www.facebook.com/madan.kalal.9

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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