बेंगलुरू. कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा है कि सार्वजनिक स्थान पर बदसलूकी होने पर ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम लागू होगा. एक लंबित मामले को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि इमारत के बेसमेंट में उसे जातिसूचक शब्द कहे गए थे. इस दौरान उसके सहकर्मी मौजूद थे. इस पर कोर्ट ने कहा कि बेसमेंट सार्वजनिक स्थल नहीं है और इस मामले में अन्य कारण भी मौजूद हैं. इससे प्रबल संभावना है कि आरोपी को निशाने पर लिया जा रहा हो.
कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने इस महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बयानों से दो तथ्य सामने आए हैं, पहला की बेसमेंट कोई सार्वजनिक स्थान नहीं था और दूसरा इस घटना का दावा केवल वे कर रहे हैं जो शिकायतकर्ता के सहकर्मी हैं. इनमें से एक व्यक्ति का आरोपी रितेश पियास से कंस्ट्रक्शन को लेकर विवाद था और उसने इमारत निर्माण कार्य के खिलाफ स्टे ले लिया था. कोर्ट ने कहा कि मामले में कई अन्य कारण भी शामिल हैं, ऐसे में प्रबल संभावना है कि शिकायतकर्ता, अपने कर्मचारी का सहारा लेते हुए, आरोपी को निशाने पर लेने की कोशिश कर रहा हो.
ये मामला 2020 की घटना के बाद दर्ज कराया गया था. इसमें बताया गया था कि शिकायतकर्ता मोहन, भवन स्वामी जयकुमार आर नायर सहकर्मी हैं. इधर नायर का रितेश से कंस्ट्रक्शन को लेकर विवाद था. मामला बढऩे पर उसने भवन निर्माण कार्य के खिलाफ स्टे ले लिया था. आरोप था कि इमारत के कंस्ट्रक्शन के दौरान रितेश ने मोहन को जातिसूचक शब्द कहे थे. उस समय पीडि़त और उसके सहकर्मी मौजूद थे. भवन मालिक जयकुमार आर नायर ने ठेके पर काम दिया था.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-पटना हाई कोर्ट की सख्त कार्यवाही, सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय के खिलाफ जारी किया गिरफ्तारी वारंट
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