मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक नाबालिग की 16 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी है. वह यौन शोषण का शिकार थी और साथ ही साथ उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या के आरोप में ऑब्जर्वेशन होम में हिरासत में थी. जस्टिस ए.एस. चंदुरकर और उर्मिला जोशी-फाल्के ने कहा कि एक महिला को अपनी प्रजनन विकल्प का उपयोग करने का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक आयाम है, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत समझा जाता है और उसे अपनी शारीरिक अखंडता की रक्षा करने का पूरा अधिकार है.
बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, रेप पीडि़ता को बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. उसके पास बच्चे को जन्म देने या न करने का विकल्प है. बता दें कि याचिकाकर्ता नाबालिग है और हत्या के आरोप में ऑब्जर्वेशन होम में हिरासत में है. जांच में पता चला कि उसका बलात्कार हुआ था, जिसके कारण वह गर्भवती हुई. रेप पीडि़ता द्वारा आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर भी दर्ज कराया गया था.
याचिकाकर्ता ने अदालत के सामने क्या दलीलें दी थीं?
याचिकाकर्ता ने अदालत में दलील दी कि वह आर्थिक रूप से कमजोर है और यौन शोषण के कारण उसे मानसिक आघात पहुंचा है, जिससे वह लगातार जूझ रही है. नाबालिग रेप पीडि़ता ने दलील दी कि उसकी परिस्थितियों को देखते हुए उसके लिए बच्चा पैदा करना मुश्किल होगा, क्योंकि न तो वह आर्थिक रूप से सक्षम है और न ही मानसिक रूप से इसके लिए तैयार है. इसके अलावा, यह एक अवांछित गर्भावस्था भी थी. दलीलें सुनने के बाद पीठ ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 के तहत, रेप पीडि़त नाबालिक को अपनी 16 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दे दी.
इस एक्ट में गर्भावस्था को समाप्त करने का प्रावधान है. एक्ट के तहत चिकित्सक की राय के आधार पर 12 सप्ताह तक और 2 चिकित्सकों की राय के आधार पर 20 सप्ताह तक के गर्भधारण का गर्भपात किया जा सकता है. इस शर्त के साथ कि गर्भवती महिला के जीवन और उसके मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को गर्भधारण से गहरा खतरा है. आपको बता दें कि भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत स्वेच्छा से गर्भपात कराना दंडनीय अपराध है. भारत के संविधान में जीवन का अधिकार मौलिक अधिकार है. मगर रेप के कारण हुई अवांछित गर्भवस्था के कारण होने वाली पीड़ा गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट होती है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई शिंदे गुट के बागी विधायकों पर कार्रवाई की मांग
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