सुप्रीम कोर्ट से मुझे कोई उम्मीद नहीं: कपिल सिब्बल के इस बयान को AIBA ने बताया अवमाननापूर्ण

सुप्रीम कोर्ट से मुझे कोई उम्मीद नहीं: कपिल सिब्बल के इस बयान को AIBA ने बताया अवमाननापूर्ण

प्रेषित समय :16:13:15 PM / Mon, Aug 8th, 2022

दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया फैसलों पर नाराजगी जताते हुए वरिष्ठ वकील और सांसद कपिल सिब्बल ने कहा था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं है. उन्होंने यह टिप्पणी पीपुल्स ट्रिब्यूनल में अपने संबोधन के दौरान की, जो 6 अगस्त को दिल्ली में न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज एंड नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स द्वारा नागरिक स्वतंत्रता के न्यायिक रोलबैक पर आयोजित किया गया था. ट्रिब्यूनल का फोकस गुजरात दंगों (2002) और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के नरसंहार (2009) पर सुप्रीम कोर्ट के 2022 के फैसले पर था.

वहीं ऑल इंडिया बार एसोसिएशन ने पूर्व केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल के उस बयान को अवमाननापूर्ण करार दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने भारतीय न्यायपालिका में उम्मीद खो दी है. ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ आदिश सी अग्रवाल ने कहा कि एक मजबूत प्रणाली भावनाओं से अलग होती है और केवल कानून से प्रभावित होती है. कपिल सिब्बल वरिष्ठ अधिवक्ता हैं. न्यायाधीशों और निर्णयों को सिर्फ इसलिए खारिज करना उनके लिए उचित नहीं है, क्योंकि अदालतें उनके या उनके सहयोगियों की दलीलों से सहमत नहीं थीं.

AIBA अध्यक्ष ने कहा कि यह एक चलन बन गया है कि जब किसी के खिलाफ मामला तय किया जाता है तो वह सोशल मीडिया पर जजों की निंदा करने लगता है कि जज पक्षपाती है या न्यायिक प्रणाली विफल हो गई है. यह टिप्पणी अवमाननापूर्ण है और कपिल सिब्बल की ओर से आ रही है, जो सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

उन्होंने कहा किम यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है. अगर कपिल सिब्बल की पसंद का फैसला नहीं दिया गया है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायिक प्रणाली विफल हो गई है. सिब्बल न्याय व्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं. हालांकि, अगर वह वास्तव में संस्था में भरोसा खो चुके हैं, तो वह अदालतों के सामने पेश नहीं होने के लिए स्वतंत्र हैं.

कपिल सिब्बल ने गुजरात दंगों में राज्य के पदाधिकारियों को एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की. उन्होंने शीर्ष अदालत द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार रखने के फैसले की भी आलोचना की, जो प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक अधिकार देते हैं. वह इन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे.

कपिल सिब्बल ने अपने संबोधन की शुरुआत यह कहकर की कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में 50 साल तक प्रैक्टिस करने के बाद संस्थान में उनकी कोई उम्मीद नहीं बची है. उन्होंने कहा कि भले ही एक ऐतिहासिक फैसला पारित हो जाए, लेकिन इससे शायद ही कभी जमीनी हकीकत बदलती हो. कपिल सिब्बल ने इस संदर्भ में आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि फैसला सुनाए जाने के बावजूद जमीनी हकीकत जस की तस बनी हुई है. सभा को संबोधित करते हुए सीनियर एडवोकेट ने कहा कि स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हों और उस स्वतंत्रता की मांग करें.

न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि एक अदालत जहां समझौता की प्रक्रिया के माध्यम से न्यायाधीशों की स्थापना की जाती है. एक अदालत जहां यह निधाज़्रित करने की कोई व्यवस्था नहीं है कि किस मामले की अध्यक्षता किस पीठ द्वारा की जाएगी, जहां भारत के मुख्य न्यायाधीश तय करते हैं कि किस मामले को किस पीठ द्वारा और कब निपटाया जाएगा. वह अदालत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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