हेमेन्द्र क्षीरसागर,
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी दुनिया के महान ग्रंथों में अद्वितीय, अमर कीर्ति है. इसे किसी भी जीवित व्यक्ति के बजाय सर्वोच्च आध्यात्मिक अधिकार और सिख धर्म का प्रमुख माना जाता है. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का इतिहास बहुत ही अलौकिक, महत्वपूर्ण और पौराणिक है. स्तुत्य, श्री गुरु अर्जन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के मूल संस्करण को संकलित किया. गुरु जी के बड़े भाई पृथ्वी चंद और अन्य लोगों ने गुरुओं को भजन के रूप में उनकी कुछ रचनाएँ देनी शुरू कीं. इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी ने सभी गुरुओं के मूल छंदों का संग्रह शुरू किया. श्री गुरु अर्जन देव जी ने पिछले गुरुओं के परिवारों का दौरा करने के लिए गोइंदवाल, खादुर और करतारपुर की यात्रा की. श्री गुरु अर्जन देव जी ने मोहन (गुरु अमर दास के पुत्र), दातू (गुरु अंगद के पुत्र) के साथ-साथ श्री चंद (गुरु नानक के पुत्र) से गुरुओं की मूल पांडुलिपियों का संग्रह किया. मंत्रमुग्ध श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में उल्लेखित दार्शनिकता कर्मवाद को मान्यता देती है. गुरुवाणी के अनुसार व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार ही महत्व पाता है. समाज की मुख्य धारा से कटकर संन्यास में ईश्वर प्राप्ति का साधन ढूंढ रहे साधकों को गुरुग्रन्थ साहिब सबक देता है.
अपने प्राणों का दिया बलिदान
श्री गुरु नानक देव जी के कई भजन और प्रार्थनाओं को गुरु अंगद जी और गुरु अर्जन देव जी द्वारा संरक्षित और अनुपालन किया गया था. इस संग्रह को आदि ग्रंथ के रूप में जाना जाता है. आदि ग्रंथ में 36 हिंदू और मुस्लिम लेखकों जैसे कबीर, रवि दास, नाम देव और शेख फरीद के लेखन भी शामिल हैं. जिस समय यह लिखा जा रहा था, उस समय कुछ लोगों ने मुगल बादशाह जहाँगीर के दिमाग में यह अफ़वाह फैला दी कि गुरु ग्रंथ साहिब जी और गुरबानी मुसलमानों के खिलाफ नफरत का प्रचार करते हैं. क्रोधित जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी को गुरु ग्रंथ साहिब पांडुलिपि में कुछ भजनों को हटाने का आदेश दिया और 200,000 रुपये का जुर्माना लगाया. श्री गुरु अर्जन देव जी ने तथाकथित अपमानजनक पाठ का खुलासा करने या जुर्माना भरने से इनकार कर दिया और अपने प्राणों का बलिदान दिया. आदि ग्रंथ 1604 में पूरा हुआ और स्वर्ण मंदिर में स्थापित किया गया. यह मूल प्रति कई अलग-अलग भाषाओं में लिखी गई है, जो इसके कई अलग-अलग लेखकों को दर्शाती है.
पहला शबद है "मूल मंत्र"
आलोकित, 1708 में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा घोषित श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी, सिखों के अनन्त गुरु बन गए. 1708 में श्री गुरु गोविंद सिंह के बलिदान के बाद, बाबा दीप सिंह और भाई मणि सिंह ने वितरण के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की कई प्रतियां तैयार कीं. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का मूल संस्करण महाराष्ट्र राज्य के शहर नांदेड़ में पाया जा सकता है. अन्य गुरुद्वारों की अध्यक्षता करने वाले श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के खंड इस संस्करण की प्रतियां हैं. गुरु ग्रंथ साहिब जी का पहला शबद "मूल मंत्र" है. यह एक ईश्वर में विश्वास को रेखांकित करता है. श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने ग्रन्थ साहिब जी को एक स्थायी गुरु का दर्जा दिया और 1708 में इसे "सिखों का गुरु" की उपाधि से सम्मानित किया. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को उनके बाद अगला गुरु बनाने की घोषणा करते हुए, श्री गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को आज्ञा दी.
'' आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ,
सब सिखन को हुकम है गुरु मानयो ग्रन्थ.
जो प्रभु को मिलबो चाहे खोज शबद में ले
राज करेगा खालसा, आगि रहि न कोई
ख्वार होए सब मिलन्गे बचे शरन जो होए. "
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के रोचक तथ्य
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में कुल 1430 पृष्ठ हैं, पृष्ठ क्षितिज के समानांतर में लिखे गए हैं. आम तौर पर प्रति पृष्ठ पाठ की उन्नीस लाइनें हैं. सुर्खियों वाले पृष्ठ (एक नई राग से शुरू) में उन्नीस पंक्तियों से कम है. कुल पंक्तियों की संख्या - 26852, कुल शब्द - 398697. सबसे अधिक बार दोहराया जाने वाला शब्द "हरि" है - 9288 बार. कोई विराम चिह्न का उपयोग नहीं किया गया है. ऐसे सारगर्भित रोचक तथ्य गुरु ग्रंथ साहिब जी में समावेशित हैं.
लेखक व योगदानकर्ता
छह सिख गुरु, पहले पांच गुरु (श्री गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमर दास जी, गुरु राम दास जी, गुरु अर्जन देव जी) और नौवें गुरु (गुरु तेग बहादुर जी)। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में श्री गुरु नानक देव जी (974 शबद और श्लोक), श्री गुरु अंगद देव जी (62 श्लोक), श्री गुरु अमरदास जी (907 शबद और श्लोक), श्री गुरु राम दास जी (679 शबद और श्लोक), श्री गुरु अर्जन देव जी शामिल हैं. (2218 शबद और श्लोक) और श्री गुरु तेग बहादुर जी (115 शबद और श्लोक)। तीन सिख (भाई सट्टा जी, भाई बलवानंद जी और भाई सुंदर जी)। 17 भट्ट: भट्ट संगीतकारों का एक समूह था जो सोलहवीं शताब्दी में रहते थे. ये सभी विद्वान, कवि और गायक थे. (भट काल, भाट कालसीहर, भट ताल, भट जाल, भट जल, भट किरत, भट सल, भट बहल, भट नल, भट भीख, भट जलन, भट कस, भट गेद, भट सेवक, भट मथरा, भट बल और भट) हरबंस)। 15 भगत (कबीर, नामदेव, रविदास, शेख फरीद, त्रिलोचन, धन्ना, बेनी, शेख भीकन, जयदेव, सूरदास, परमानंद, पीपा, रामानंद, साधना और साईं)। गुरूओं का श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के संकलन में लेखक और योगदानकर्ता के रुप में अमिट छाप छोड़ी.
वाणी की प्रासंगिकता बढ़ गई
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की शुरुआत एक बानी से होती है जिसे जपजी के नाम से जाना जाता है. इन सभी रागों के भीतर, बानी को गुरु के कालानुक्रमिक क्रम में प्रस्तुत किया जाता है. 32 रागों के बाद, राग माला के रूप में जाना जाने वाला एक खंड श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को पूरा करता है. अभिभूत, पवित्र श्री गुरु ग्रन्थ साहिब अध्यात्म ज्ञान का मूल स्रोत हैं. अध्यात्म ज्ञान सदा विकास मान होता है. जिस की प्रासंगिकता हर काल में हुआ करती है. ग्रन्थ के वाणीकार जब वाणी का सजृन कर रहे थे तब उस काल में भी इसकी प्रासंगिकता थी और वर्तमान में तो इसकी वाणी की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ गई.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-श्रीगणेश पूजा के नियम और सावधानियां
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