कभी आम को काटकर, कभी चूसकर खाएं!
नेहरू ने जो पेड़ लगाए, साहेब बेचते जाएं!!
महंगाई की मार से जनता है बेहाल!
पर साहेब के मित्र तो हो गए मालामाल!!
पंद्रह लाख की टोपी देकर हो गए अंतर्ध्यान!
कुर्सी मिल गई साहेब को, अब बांटते ज्ञान!!
मन की बातें सुन-सुन के, मन भारी ही होए!
जन की बातें दबी पड़ी, इन्हें उठाओ कोए!!
साहेब-बाबा दोऊ हंसे, पर जनता तो रोए!
पेट्रोल डीजल मार से, साबुत बचा न कोए!!
काला धन तो ना मिला, काला जादू होए!
पंद्रह लाख की चाह में, जो थे वो भी खोए!!
पेट्रोल को तो तीस करें, डॉलर को चालीस!
ठग भी उन्नीस रह गए, बाबा हो गए बीस!!
डिग्री फर्जी भी चले, कुर्सी असली होए!
बेच पकौड़े, घर चला, डिग्री को क्यों रोए!!
आग लगी है जेब को, कैसे गैस भराएं!
स्मृति हमारी खो गई, कहां से लेकर आएं!!
विश्वगुरु बनने चले, विषगुरु बन गए आप!
हिन्दू-मुस्लिम लड़ रहे, वोट बंटोरे आप!!
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-प्रदीप के दोहे....https://t.co/yDquxqEu8r pic.twitter.com/S2ip6WtDdm
— Pradeep Laxminarayan Dwivedi (@Pradeep80032145) August 27, 2022
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