Shri Swarnakarshan Bhairav Stotram: नाश करने के लिये श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र का पाठ करें

Shri Swarnakarshan Bhairav Stotram: नाश करने के लिये श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र का पाठ करें

प्रेषित समय :21:23:45 PM / Thu, Oct 13th, 2022

नन्दी जी ने मनुष्यो की दरिद्रता नाश करने के लिये यह स्तोत्र अमर महर्षि मार्कण्डेय जी को यह स्तोत्र वर्णन किया था  जिनकी कुण्डली में धन भाव का सम्बन्घ गुरु या सूर्य से है अनेक लक्ष्मी जी और कुबेर साधनाओ के बाद भी धन की परेशानी खत्म नही हो रही हो.

तो  नित्य 41 दिन तक पाठ करने से या मंत्र की 5 माला करने से उत्तम लाभ प्राप्त होता है श्री भगवती के लाडले परात्पर परमात्मा लक्ष्मी कुबेर को भी धन देने वाले  श्री स्वर्णाकर्षण भैरव जी  इनकी चर्चा रूद्र यामल तन्त्र में शिव जी और नन्दी जी के बिच हुई थी.

100 वर्षो तक देवासुर संग्राम में युद्ध  के कारण कुबेर जी को जब धन की भारी  हानि हुई थी. उस समय माँ लक्ष्मी जी भी धन से हिन् हो गयी थी.

  उस समय सब देवीया और देवता भगवान महादेव जी की शरण में गए थे महादेव जी ने नन्दी जी को माध्यम बनाकर स्वर्णाकर्षण देव की महिमा गायी सभी देवताओ सहित नन्दी जी ने यक्षराज श्री कुबेर जी को धनवान बनाने के लिये शिव जी से प्रश्न किया की कुबेर के खाली को भण्डार फिर से भरा दे ऐसे कोन भगवान हे तब भगवान शिव जी ने भगवति के अविनाशी धाम श्री मणिद्वीप के कोक्षाध्यक्ष श्री स्वर्णाकर्षण भैरव नाथ भगवान की महिमा और उनके वैभव का वर्णन किया और उनकी शरण में जाने को कहा था.

फिर लक्ष्मी जी और कुबेर जी ने विशालातीर्थ (बद्रीविशाल धाम में) 3 हज़ार वर्षो तक सभी देवताओ सहित धन के देवता श्री लक्ष्मी और कुबेर जी ने भीषण तप किया तब भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव नाथ जी ने उन्हें दर्शन देकर श्री मणिद्वीप धाम से प्रगट होकर 4 भुजाओ से धन की वर्षा की जिससे पुनः सभी देवता श्री सम्पन्न हो गए.

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र  श्री मार्कण्डेय उवाच ।।

भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !

पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।

इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं.

तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।।

तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।।

।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।

इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !

स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये ।।

सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम्.

नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः.

नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने.

श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।।

दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः.

नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।।

सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे.

अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।

नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः.

नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।

नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः.

नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।।

नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने.

गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।।

नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः.

नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।

दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः.

सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।।

रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च.

नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।।

नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने.

उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।।

नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते.

नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।

नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः.

धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।

नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः.

नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।।

नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः.

नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः ।।

नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे.

नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः ।।

नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने.

नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने ।।

नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः.

नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः

नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः.

नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।

स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः.

नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।

संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः.

स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः.

स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः.

सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।

लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात्.

न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।

म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात्.

अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।

अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः.

दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।

य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा.

महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं 

मूल-मन्त्रः- “ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामल-बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण-भैरवाय मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय श्रीं महा-भैरवाय नमः

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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