मानगढ़.... जहां पहली वागड़ी फिल्म की शुरूआत हुई, तब मानगढ़ तक पहुंचना आसान नहीं था!

मानगढ़.... जहां पहली वागड़ी फिल्म की शुरूआत हुई, तब मानगढ़ तक पहुंचना आसान नहीं था!

प्रेषित समय :21:18:34 PM / Mon, Oct 31st, 2022

भंवर पंचाल. आजादी के आंदोलन में मानगढ़ का नाम और आदिवासियों की शहादत स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है, जहां वर्ष 1913 में अंग्रेजी फौज ने भगत आंदोलन के नेता और प्रसिद्ध समाज सुधारक गोविंद गुरु के समर्थकों को गोलियों से भून दिया था.
अस्सी के दशक में जब पहली वागड़ी फिल्म की शुरूआत हुई, तब मानगढ़ तक पहुंचना आसान नहीं था, उस वक्त पहली वागड़ी फिल्म- तणवाटे की टीम के सदस्यों.... निर्देंशक- प्रदीप द्विवेदी, सैटेलाइट फिल्म स्टूडियो के निर्देशक (फिल्मांकन) सालेह सईद, प्रमुख अभिनेता- जगन्नाथ तैली और कैलाश जोशी के साथ मैं मानगढ़ पहुंचा, तो ऊपर तक गाडी ले जाने का रास्ता नहीं था, लिहाजा अपनी गाडियां नीचे छोड़ कर ही हमें उपर तक जाना पड़ा.
पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के भानजे और दूरदर्शन में अधिकारी रहे प्रमुख लेखक दिवंगत शैलेंद्र उपाध्याय के प्रयासों से आजादी की कहानियों को उजागर करने के लिए दूरदर्शन के धारावाहिक- अलख आजादी की, में भी वागड़ के कलाकारों ने मानगढ़ धाम को नई ऊंचाईयां प्रदान की थी.
मानगढ़ धाम पर फिल्म बनाने की योजना पर कार्य लंबे समय से जारी है तथा इससे जुड़े विविध तथ्य जुटाए जा रहे हैं.
इस संबंध में बॉलीवुड के अनुभवी सेलिब्रिटी से चर्चाएं भी प्रारंभ की गई, ताकि उनके अनुभव, मार्गदर्शन का फायदा मिल सके.
पहली वागड़ी फिल्म के निर्देशक प्रदीप द्विवेदी ने आंटी नंबर 1, हत्या जैसी सुपरहिट फिल्में देनेवाले प्रसिद्ध निर्देशक कीर्ति कुमार से मुलाकात की थी और मानगढ़ धाम विषयक जानकारी देते हुए उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया था.
प्रदीप द्विवेदी ने एमपी, राजस्थान और गुजरात के संयुक्त क्षेत्र के निवासियों से अनुरोध किया है कि मानगढ़ से संबंधित विभिन्न तथ्यात्मक जानकारियां, सुझाव आदि भेजें एवं इस प्रोजेक्ट से जुड़ने के इच्छुक व्यक्ति (व्हाट्सएप- 8302755688) पर संदेश प्रेषित कर सकते हैं.
आजादी के बाद इन 75 वर्षों में मानगढ़ की राष्ट्रीय पहचान बनाने में अनेक लोगों का योगदान रहा है.
शुरूआत में डॉ राजमल जैन द्वारा प्रकाशित और भगवती लाल जैन द्वारा लिखित मानगढ़ विषयक पुस्तक ने बहुत लोगों का ध्यान आकृष्ट किया, तो डॉ ज्योतिपुंज ने मानगढ़ पर कामिक्स लिखा.
मानगढ़ को पहचान दिलाने में पत्रकारों, विभिन्न कांग्रेस नेताओं सहित अनेक ज्ञात-अज्ञात लोगों का योगदान उल्लेखनीय है.
मानगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाने का अभियान तो अस्सी के दशक में ही प्रारंभ हो गया था और तब इसके विकास में सबसे बड़ी बाधा गुजरात-राजस्थान का सीमा विवाद था. इस विवाद को सुलझाने में बांसवाड़ा के तत्कालीन जिला कलेक्टर भरतराम मीणा के प्रयास उल्लेखनीय हैं. उन्होंने मानगढ़ से संबंधित ऐतिहासिक तथ्य और सरकारी जानकारियां नवभारत टाइम्स के पत्रकार रहे प्रदीप द्विवेदी को उपलब्ध करवाई थी.
मानगढ़ वह जगह है जिसे राजस्थान का जलियांवाला बाग कहा जाता है जहां गोविंद गुरू के सैकड़ों अनुयायियों को अंग्रेजों ने गोलियां चला कर मार दिया था.
मानगढ़ के विकास के लिए उनके अनेक ज्ञात-अज्ञात अनुयायियों ने प्रयास किए जिनमें राजस्थान में कांग्रेस के पूर्व एमएलए नाथूराम भगत प्रमुख हैं, जिन्होंने तत्कालीन राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष पं. लक्ष्मीनारायण द्विवेदी से अनेक जगह पत्र लिखवा कर मानगढ़ धाम की संपूर्ण जानकारी देते हुए इसके विकास के लिए शुरूआती प्रयास किए. यही नहीं, तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी से चर्चा कर इसे विकसित करने की शुरूआत भी की.
मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय-प्रादेशिक स्तर पर प्रकाश में लाने के लिए बीसवीं सदी में ईश्वरलाल प. वैश्य, नरेन्द्रदेव त्रिवेदी, नंदकिशोर पटेल, शैलेन्द्र उपाध्याय, गोपेन्द्रनाथ भट्ट, दीपक दत्त आचार्य, पन्नालाल मेघवाल, नागेन्द्र डिंडोर आदि लेखकों-पत्रकारों का उल्लेखनीय योगदान रहा, तो एक्कीसवीं सदी में वरूण भट्ट, कमलेश शर्मा आदि ने मानगढ़ धाम के ऐतिहासिक महत्व को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया.
इसके बाद राजस्थान में जो भी सरकार रही, मानगढ़ धाम के विकास के प्रयास लगातार जारी रहे. मानगढ़ धाम की शहादत और गोविन्द गुरु की स्मृति में वर्ष 2008 में अशोक गहलोत सरकार द्वारा 93 लाख रुपयों की प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति से गोविन्द गुरु स्मृति उद्यान का निर्माण कराया गया था. निर्माण कार्य हेतु एक हेक्टेयर वन भूमि का प्रत्यावर्तन वन विभाग से कराया गया.
सरकारी जानकारी के अनुसार परियोजना के अन्तर्गत गोविन्द गुरु की धातु की 9 फुट ऊंची प्रतिमा, तथा 20’ गुणा 6’ के 2 गनमेटल के रिलीफ पैनल, लगाये गए.
मानगढ़ धाम पर हर साल 17 नवंबर को बलिदान दिवस मनाया जाता है. जिसमें भाजपा, कांग्रेस और अन्य संगठनों के बड़े नेता, कार्यकर्ता आदि जाकर धूणी पर श्रीफल होम कर पुष्पांजलि देते रहे हैं.
इस क्षेत्र के विकास में राजस्थान के वरिष्ठ मंत्री और मानगढ़ धाम फाउंडेशन के अध्यक्ष महेंद्रजीत सिंह मालवीया का योगदान उल्लेखनीय रहा है.
कुछ समय पहले श्री मालवीया के विशेष आग्रह पर सीएम अशोक गहलोत मानगढ़ आए थे और तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की थी.
श्री गहलोत ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में अवगत कराया था कि वर्ष 1913 में बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ में गोविन्द गुरू के नेतृत्व में एकत्रित वनवासियों पर ब्रिटिश सेना द्वारा फायरिंग की गई, जिसमें 1500 से अधिक वनवासियों ने अपना बलिदान दिया. वनवासियों के बलिदान एवं गोविन्द गुरू के योगदान को रेखांकित करने के लिए राज्य सरकार ने मानगढ़ धाम में जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय बनाया है, साथ ही, मानगढ धाम तक मार्ग एवं इस स्थल के विकास के कार्य किये गए हैं.
उल्लेखनीय है कि जनजाति/आदिवासी बहुल क्षेत्र बांसवाड़ा, डूंगरपुर आदि जिलों के जनप्रतिनिधियों द्वारा मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किये जाने की मांग लम्बे समय से की जा रही है.
श्री गहलोत ने प्रधानमंत्री से मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने का आग्रह किया, जिससे कि अमूल्य बलिदान देने वाले वनवासियों एवं नवचेतना के संचार में योगदान देने वाले महान संत गोविन्द गुरू को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की जा सके!
* लेखक भंवर पंचाल, सेवानिवृत्त सहायक अभियंता है और पहली वागड़ी फिल्म तण वाटे के मुख्य अभिनेता हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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