कांग्रेस की सत्ता में वापसी के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा पर निकले राहुल गांधी की अमेठी में पार्टी की क्या स्थिति है। पिछले पैंतालीस सालों से गांधी परिवार का अमेठी से गहरा नाता रहा है. 2019 में पराजय के पहले राहुल गांधी ने लगातार तीन बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी. 1991 में आखिरी बार मतगणना से पहले उनका दुखद अंत हो चुका था. अमेठी से गांधी परिवार का जुड़ाव संजय गांधी के जरिए हुआ था. 1977 में वे यहां से हारे थे, जबकि 1980 में उनकी जीत हुई थी.
2019 में वे अमेठी के साथ वायनाड (केरल) से भी चुनाव लड़े. अमेठी ने उन्हें निराश किया, जबकि वायनाड से उन्होंने जीत दर्ज की. इस हार के बाद राहुल गांधी अमेठी को ओर से उदासीन हो गए. लोकसभा चुनाव की हार के कुछ दिन बाद और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पूर्व केवल दो मौके थे , जब राहुल गांधी अमेठी पहुंचे. लोकसभा चुनाव के बाद की यात्रा में उन्होंने अमेठी के पार्टी कार्यकर्ताओं को बताया था कि वे अब वायनाड से सांसद हैं और वहां के प्रति अब उनकी पहली जिम्मेदारी है. विधानसभा चुनाव के मौके पर अमेठी ने उन्हें जबाब दिया. इस मौके पर उनकी अमेठी यात्रा कोई अनुकूल नतीजे नहीं दे सकी थी.
रायबरेली जिले का एक विधानसभा क्षेत्र सलोन, अमेठी लोकसभा सीट का हिस्सा है. प्रदेश में कांग्रेस की उपस्थिति का संदेश यही दो क्षेत्र देते रहे हैं. इन्हें गांधी परिवार का गढ़ भी बताया जाता रहा है. 2019 में इसमें एक अमेठी यह भ्रम तोड़ चुकी है. इसी चुनाव में रायबरेली में सोनिया की सिकुड़ती लीड खतरे की घंटी बजा चुकी है. भाजपा वहां भी लगातार श्रम कर रही है. सोनिया गांधी की अस्वस्थता के कारण उनके रायबरेली के दौरों का अंतराल बढ़ता जा रहा है. प्रियंका वाड्रा सिर्फ चुनाव के मौके पर इन पारिवारिक इलाकों की सुध लेती हैं. रायबरेली सोनिया के प्रतिनिधि किशोरी लाल शर्मा के हवाले है. पार्टी की कहीं सरकार नहीं है. इसलिए उनकी भी कोई सुनता भी नहीं. अधिकांश स्थानीय नेता – कार्यकर्ता निराश और निष्क्रिय हो चुके हैं.
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