पॉक्सो एक्ट के तहत सहमति की उम्र पर फिर से विचार करने की आवश्यकता: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़

पॉक्सो एक्ट के तहत सहमति की उम्र पर फिर से विचार करने की आवश्यकता: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़

प्रेषित समय :09:35:49 AM / Sun, Dec 11th, 2022

दिल्ली. पॉक्सो एक्ट के तहत सहमति की आयु सीमा पर पुनर्विचार करने की बात कहते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सहमति से बने रोमंटिक रिलेशनशिप के मामलों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में शामिल करने पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि विधायिका को साल 2012 में अमल में आए अधिनियम के तहत तय सहमति की उम्र पर विचार करना चाहिए. गौरतलब कि पॉक्सो एक्ट के तहत सहमति की उम्र सीमा फिलहाल 18 साल तय की गई है. 18 साल से कम उम्र में बने संबंध इस कठोर कानून के दायरे में आते हैं, फिर चाहे ऐसे रिश्ते आपसी सहमति से ही क्यों न बने हों.

पॉक्सो एक्ट पर आयोजित एक कार्यक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस कानून के तहत तय सहमति की उम्र पर फिर से विचार करने की बात कही. सीजेआई ने कहा कि आप जानते हैं कि पॉक्सो एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच सभी प्रकार के यौन संबंध अपराध हैं, भले ही नाबालिगों के बीच सहमति से ही ऐसे संबंध क्यों न बने हों. ऐसा इसलिए है कि कानून की धारणा है कि 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के बीच कानूनी अर्थ में कोई सहमति नहीं होती है. एक जज के तौर पर मैंने देखा कि ऐसे मामले जजों के समक्ष कठिन प्रश्न खड़े करते हैं. इस मुद्दे पर चिंता बढ़ रही है. बेहतर रिसर्च के आधार पर विधायिका को इस मसले पर विचार करना चाहिए.

गौरतलब है कि विगत दिनों पहले मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि न्यायालय किशोरों के रिश्तों से संबंधित मामलों को उचित रूप से निस्तारित करने के लिए कानून में संशोधन की प्रतीक्षा कर रहा है. ऐसे में सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है. मद्रास हाईकोर्ट के फैसला के कुछ दिनों बाद तमिलनाडु पुलिस महानिदेशक ने एक सर्कुलर जारी कर पुलिस अधिकारियों को पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों में युवकों को गिरफ्तार करने में जल्दबाजी न दिखाने का निर्देश दिया था. दरअसल, पॉक्सो मामले में कई ऐसे मामले शामिल होते हैं, जिनमें आपसी सहमति से बने रोमांटिक रिश्ते शामिल होते हैं.

वहीं महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि पॉक्सो मामलों के निस्तारण में औसतन 509 दिन का समय लगता है. उन्होंने न्यायाधीशों से सुझाव मांगे कि बच्चों के मामले को निपटाने में तेजी लाने के लिए आधारभूत ढांचे में क्या होना चाहिए. पॉक्सो कानून 2012 का उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीडऩ, यौन दुव्र्यवहार, बाल अश्लीलता समेत अन्य अपराधों से बचाना है और ऐसे अपराधों के सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान है.

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