चंद्रमा जब कुंडली में अस्त अवस्था में होता है तो मानसिक तनाव को बढ़ाता है. ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से स्थिर नहीं हो पाता है और उसके जीवन में अशांति रहने लग जाती है. चंद्रमा मन और माता का कारक भी होता है. यही वजह है कि व्यक्ति की माता के सुख में कमी आती है. उनका स्वास्थ्य खराब होता है या फिर उनसे व्यक्ति की नहीं बनती है. अधिक स्थिति खराब होने पर व्यक्ति मानसिक अवसाद या मानसिक रोगों का शिकार भी हो सकता है. इसके अतिरिक्त चंद्रमा से संबंधित शारीरिक समस्याएं जैसे कि खून की कमी, फेफड़ों के रोग, डिप्रेशन, अस्थमा, मानसिक तनाव जैसी समस्याएं परेशान कर सकती हैं. जातक के जीवन में जन सहयोग का अभाव होता है उसे मिर्गी के दौरे आने की संभावना भी होती है और कई बार उसे किसी बीमारी के लिए लंबे समय तक दवाई खाने की आवश्यकता पड़ती है. यदि अस्त चंद्रमा का संबंध कुंडली के अष्टम भाव से हो जाए तो व्यक्ति बहुत लंबे समय तक डिप्रेशन में रहता है. इसके अतिरिक्त यदि चंद्रमा पर पाप प्रभाव हो या द्वादश भाव से संबंध बने तो व्यक्ति नशे का आदी हो सकता है. चंद्रमा यदि अस्त अवस्था में है तो जातक को माता के सुख में कमी आती है. पैतृक संपत्ति मिलने में समस्या होती है और मानसिक अशांति जैसी समस्याएं भी समय-समय पर आती रहती हैं.
मंगल ग्रह बल का कारक है. यदि मंगल ग्रह अस्त है तो व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का चिड़चिड़ा और डरपोक हो जाता है. उसका अपने भाइयों से तनाव होता है और भूमि और संपत्ति संबंधित विवाद बढ़ने लगते हैं. व्यक्ति का रक्त दूषित हो जाता है और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव आते हैं. कैंसर जैसे रोग भी परेशान कर सकते हैं. व्यक्ति को रक्त संबंधित समस्याएं ज्यादा परेशान करती हैं. उसे कोर्ट कचहरी के मामलों में भी परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं. यदि मंगल का संबंध कुंडली के छठे या आठवें भाव से या अथवा अशुभ ग्रहों के साथ हो तो उसको दुर्घटना होने की संभावना या किसी ऐसी ही समस्या की संभावना रहती है, जिसमें खून बहे. ऐसा मंगल व्यक्ति को कर्ज का शिकार बना देता है और द्वादश भाव से संबंध होने पर व्यक्ति नशे का आदी बन जाता है. उच्च अवसाद और भ्रष्टाचार से युक्त व्यक्ति अथवा घोटाले करने वाला व्यक्ति मंगल के अस्त हो जाने के कारण हो सकता है. यदि ऐसे मंगल का संबंध राहु अथवा केतु से हो तो व्यक्ति किसी मुकदमे में भी पड़ सकता है और उसको नुकसान उठाना पड़ सकता है.
बुध ग्रह को वाणी और व्यापार का कारक कहा जाता है. यदि कुंडली में बुध ग्रह अस्त हो तो व्यक्ति बुद्धि का काम सही प्रकार से नहीं कर पाता या फिर आवश्यक समय पर बुद्धि काम नहीं आती है. वह बातों को अच्छे से याद नहीं रख पाता है. उसको वाणी दोष होता है और गले में खराबी हो सकती है. ऐसा जातक विश्वास की कमी से जूझता है और शरीर में त्वचा संबंधित समस्याएं, चर्म रोग, गले के रोग, श्वास रोग होने की संभावना रहती है. यही बुध द्वादश भाव से संबंध होने पर भी व्यसनी भी बना देता है. यदि इस बुध का संबंध मंगल के साथ हो या किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव हो तो जातक को मानसिक अवसाद की शिकायत या किसी अपने प्रिय की मृत्यु के समाचार को सहन करना पड़ सकता है. बुध के अस्त होने की स्थिति में व्यक्ति को धोखा मिल सकता है और इस वजह से वह मानसिक अशांति का शिकार हो सकता है.
बृहस्पति ग्रह एक अत्यंत शुभ ग्रह है. यदि यह ग्रह अस्त हो जाए तो अपने शुभ प्रभावों में कमी कर देते हैं. व्यक्ति का मन पूजा पाठ में नहीं लगता है. व्यक्ति को धन, विवाह और संतान से संबंधित समाचार मिलने में समस्या होती है. विवाह में विलंब होता है. संतान होने में कष्ट होता है या संतान को समस्याएं रहती हैं. परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को समस्याएं रहती हैं और व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की मार्ग में बाधाएं आती हैं. ऐसा व्यक्ति नास्तिक भी हो सकता है. गुरु बृहस्पति के अस्त होने पर व्यक्ति को आमाशय के रोग, टाइफाइड बुखार, साइनस की समस्या, मधुमेह का रोग, जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं. इसके अतिरिक्त कोर्ट कचहरी के कामों में समस्या, गुरुजनों और शिक्षकों से मतभेद और पढ़ाई में मन ना लगना जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. यदि बृहस्पति अस्त होने के साथ पाप ग्रहों के अधिक प्रभाव में हों तो व्यक्ति को संतान सुख का अभाव भी हो सकता है अथवा अष्टम भाव से संबंध होने पर किसी प्रिय जन के वियोग का समाचार सुनना पड़ सकता है. यदि यही बृहस्पति द्वादश भाव से संबंध बनाए तो व्यक्ति अनैतिक संबंधों का शिकार हो जाता है और मानहानि उठानी पड़ती है.
शुक्र ग्रह को काम और भोग तथा भौतिक सुख का कारक माना जाता है. यदि कुंडली में शुक्र ग्रह अस्त अवस्था में है तो ऐसे व्यक्ति को विवाह में समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यदि वह जातक कोई महिला है तो उसे गर्भाशय का रोग हो सकता है या स्त्री रोग जैसी समस्याएं हो सकती हैं. अस्त शुक्र ग्रह स्थिति व्यक्ति को जननांगों के रोग या यौन रोग भी प्रदान कर सकती है. ऐसा व्यक्ति चरित्रहीन हो सकता है. उसको गुर्दों के रोग, आंखों की समस्या, मूत्राशय के रोग और त्वचा संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं. यदि शुक्र का संबंध राहु अथवा केतु से हो तो वह व्यक्ति के मान सम्मान को हिला देता है. इसके अतिरिक्त कुंडली के छठे या आठवें भाव से संबंध होने पर व्यक्ति को बड़े रोग हो जाते हैं. यदि व्यक्ति विवाहित है तो जीवन साथी को भी स्वास्थ्य कष्ट काफी परेशान कर सकते हैं. यदि शुक्र का संबंध अस्त अवस्था में अष्टम भाव से हो जाए तो दांपत्य जीवन में समस्याएं आने लगती हैं और द्वादश भाव से संबंध होने पर व्यक्ति विभिन्न प्रकार के व्यसनों में पड़ सकता है तथा जीवन में सुख सुविधाओं से वंचित हो सकता है.
शनि ग्रह कर्म फल दाता माने जाते हैं. यदि कुंडली में शनि देव अस्त अवस्था में हों तो जातक को अपने कर्म में समस्याएं आती हैं. वह जहां नौकरी या व्यापार करता है, वहां परेशानी उठानी पड़ती है. वरिष्ठ अधिकारियों या समाज के गणमान्य लोगों से तालमेल नहीं बैठ पाता और उनसे अनबन हो जाती है. सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आती है और कई बार व्यक्ति नशीली वस्तुओं के सेवन में लग जाता है. शनि के अस्त होने पर व्यक्ति को पैरों में दर्द, जोड़ों में दर्द, कमर दर्द तथा स्नायु तंत्र के रोग परेशान कर सकते हैं. यदि ऐसा शनि छठे भाव के स्वामी के साथ संबंध बनाए तो रीढ़ की हड्डी में समस्या दे सकता है या फिर जोड़ों के दर्द भी हो सकते हैं. यदि शनि का प्रभाव अष्टम के स्वामी के साथ हो जाए या फिर अष्टम भाव से हो जाए तो व्यक्ति का रोजगार भी जा सकता है और द्वादश भाव से ऐसे शनि का संबंध होने पर व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है और उसको मानसिक अशांति घेर लेती है. उसे अपने जीवन में सफलता पाने के लिए अत्यंत ही कठोर श्रम करना पड़ता है और कई बार नीच प्रवृत्ति के लोगों के साथ उसकी संगति हो जाती है, जो बाद में उसके लिए दुखदायी साबित होती है.
Khushi Soni Verma
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जन्म कुंडली के द्वादश भावों मे शनि का सामान्य फल
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