अभिमनोज. बिहार के सियासी प्याले में बयानी तूफान जरूर आया हुआ है, लेकिन इससे सीएम नीतीश कुमार को नहीं, उपेंद्र कुशवाहा को सियासी खतरा ज्यादा है, क्योंकि नीतीश कुमार का बहुत बड़ा राजनीतिक आधार है, जबकि उपेंद्र कुशवाहा के पास इतना बड़ा राजनीतिक आधार नहीं है!
खबरों पर भरोसा करें तो- उपेंद्र कुशवाहा को लेकर जो बयान आ रहे हैं, वे भी कम दिलचस्प नहीं हैं....
जेडीयू राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का कहना है कि- नीतीश कुमार के दोस्त कम हैं, लेकिन उनसे जलने वाले काफी हैं. इसलिए जेडीयू के लोगों को सावधान रहने की जरूरत है!
इसी तरह बिहार के मंत्री अशोक चौधरी का कहना है कि- उपेंद्र कुशवाहा की हैसियत जेडीयू में किराएदार की है, किराएदार कभी भी हिस्सेदार नहीं बन सकता है. नीतीश कुमार ने हमेशा उनका सम्मान किया है!
याद रहे, उपेंद्र कुशवाहा पहले भी 2007 और 2013 में जेडीयू छोड़ चुके हैं, लेकिन इस बार छोड़ना भारी पड़ सकता है, क्योंकि उनकी सियासी विश्वसनीयता को बड़ा धक्का लगा है?
पहली बार जब उपेंद्र कुशवाहा पार्टी छोड़कर गए तो 2009 का चुनाव हार गए, फिर जेडीयू में आए तो राज्यसभा के सांसद बनाए गए.
इसके बाद 2013 में नीतीश कुमार का विरोध करके जेडीयू से वापस चले गए, अपनी पार्टी बनाई, बीजेपी से गठबंधन किया और मोदी सरकार में मंत्री भी बने, परन्तु कॉलेजियम और संस्थानों में ओबीसी आरक्षण की मांग को लेकर 2018 में वहां से भी अलग हो गए.
सियासी सयानों का मानना है कि सियासी धैर्य के अभाव में और अपने राजनीतिक आधार से ज्यादा की चाहत में उपेंद्र कुशवाहा, जो उनकी राजनीतिक जगह है, उसको भी खो सकते हैं?
बिहार में होना-जाना कुछ नहीं है, लिहाजा.... दिलचस्प बयानबाजी का मजा लें?
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