*भगवान शंकर के गण नंदी द्वारा जिस ज्योतिष विधा को जन्म दिया गया उसे नंदी नाड़ी ज्योतिष के नाम से जाना जाता है. इस ज्योतिष विधा में ताड़ पत्र पर लिखे भविष्य के द्वारा ज्योतिष शास्त्री फल कथन करते हैं जो मूल रूप से दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय और प्रचलित है।*
*1. घटनाओं का जिक्र :– माना जाता है कि इस विद्या के जानकार लोग ताड़पत्री पर लिखे भविष्य अनुसार नंदी नाड़ी ज्योतिष में दिन और निश्चित समय में होने वाली घटनाओं का जिक्र भी कर सकते हैं. निश्चित समय में होने वाली घटनाओं को आधार मानकर इससे पंचांग की सत्यता की भी जांच की जा सकती है. अगर अन्य ज्योतिष विधि से प्राप्त फलादेश का नंदी नाड़ी ज्योतिष विधि से मिलान करें तो भविष्य में आपके साथ होने वाली घटनाओं के विषय में आप निश्चित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
*2. ग्रहों की पीड़ा का निदान :– उक्त विद्या अनुसार ग्रहों की पीड़ा का निदान भी किया जाता है. जो भी हो भारत में नंदी नाड़ी ज्योतिष विज्ञान के जानकार भले ही कम हों, लेकिन दक्षिण भारत में इस विद्या में विश्वास रखने वाले लोग अधिक हैं.
* 3. कुंडली की जरूरत नहीं :– अगर आपको अपनी जन्मतिथि एवं जन्म समय की जानकारी नहीं होती है तब भी इस शास्त्र विधि अनुसार आप अपना भविष्य जान सकते हैं.
* 4. इस विद्या से बन सकती है सही कुंडली :– इस विधि से आप यह भी जान सकते हैं कि आपकी जन्मतिथि एवं समय क्या है. इस ज्योतिष विद्या के अनुसार कुंडली भी बनाई जाती है और यदि आपको अपने जन्मतिथि, नक्षत्र, वार, लग्न आदि का पता है तो जानकार ताड़पत्री तलाश कर आपकी कुंडली बना सकता है.
* 5. कैसे देखते हैं भविष्य :– इस विधा में सबसे पहले पुरुष से उनके दाएं हाथ के अंगूठे का निशान और महिलाओं से बाएं हाथ के अंगूठे का निशान लेते हैं. इसके बाद कुछ ताड़पत्र आपके सामने रखा जाता है और आपसे नाम का पहला और अंतिम शब्द पूछा जाता है. आपके नाम से जिस जिस ताड़पत्र का मिलाप होता है उससे कुछ अन्य प्रश्न और माता-पिता अथवा पत्नी के नाम का मिलाप किया जाता है. जिस ताड़पत्र से मिलाप होता है उसे ज्योतिषशास्त्री पढ़कर आपका भविष्य कथन करते हैं.
*6. बारह नहीं 16 भाव होते हैं:-
अन्य ज्योतिष विधि में बारह भाव होते हैं जिनसे फलादेश किया जाता है जबकि नंदी नाड़ी ज्योतिष विधि में सोलह भाव होते हैं.
1. प्रथम भाव अर्थात लग्न से शरीर, स्वास्थ्य और बारह भावों पता चलता है.
2. द्वितीय भाव से धन की स्थिति, पारिवारिक स्थिति, शिक्षा एवं नेत्र संबंधी विषयों का पता चलता है.
3. तृतीय भाव से पराक्रम और भाई-बहन के विषय में जानकारी मिलती है.
4. चतुर्थ भाव से मातृ सुख, जमीन-जायदाद, वाहन सहित सांसारिक सुख के बारे में जाना जा सकता हैं.
5. पंचम भाव से संतान संबंधी जानकारी मिलती है.
6. छठे भाव से रोग एवं शत्रुओं के बारे में जाना जाता है.
7. सातवां भाव जिससे जीवनसंगिनी के बारे में पता चलता है.
8. आठवें भाव से आयु, जीवन में आने वाले संकट, दुर्घटना के बारे में जानकारी मिलती है.
9. नौवें भाव से धर्म, पैतृक सुख एवं भाग्य को जाना जाता है.
10. दसवां भाव नौकरी एवं कारोबार की सफलता और असफलता के बारे में बताता है.
11. ग्यारहवें भाव से दूसरी शादी के विषय में जानकारी मिलती है.
12. बारहवें भाव से व्यय, मृत्यु एवं पुनर्जन्म के विषय में जानकारी मिलती है.
13. तेरहवें भाव से पूर्व जन्म के कर्म और उनसे मुक्ति के उपाय का ज्ञान मिलता है.
14. चौदहवें भाव से शत्रु से बचाव के उपाय एवं उपयुक्त मंत्र जप की जानकारी मिलती है.
15. पंद्रहवें भाव से रोग और उनके उपचार के विषय में जानकारी मिलती है.
16. सोलहवें भाव से ग्रहों की दशा, अंतरदशा, महादशा में मिलने वाले परिणाम को जाना जाता है.
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जन्म कुंडली में सिर्फ विंशोत्तरी दशा ही महत्वपूर्ण क्यों?
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